जी के चक्रवर्ती
भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां फसलें तीन प्रकार की होती है जिसमे से पहला रवि, दूसरा खरीफ और तीसरा जायद की फसले होती है लेकिन इन तीन फसलों के अतरिक्त कुछ फसल जो पूरे एक वर्ष की होती है जैसे गन्ना, अरहर इत्यादि फसलें।
भारत पूरे विश्व में गन्ना एवम चीनी उत्पादन के मामले में दूसरे नम्बर पर आने वाला एक देश है यदि हम जिसमे से पहले स्थान पर आने वाले देश की बात करें तो वह ब्राजील है, वहीं सम्पूर्ण विश्व में प्रति वर्ष कुल 1,889,268,880 टन गन्ने का उत्पादन होता है। जिसमे से ब्राजील प्रति वर्ष 768,678,382 टन गन्ने का उत्पादन कर पहले नम्बर पर आता है, तो वहीं भारत प्रतिवर्ष 348,448,000 टन गन्ने का उत्पादन कर दुनिया में दूसरे स्थान पर है। यहां हम आपको बता दें कि विश्व के कुल गन्ना उत्पादन का 59% तक का हिस्सा अकेले यही दोनो देश भारत और ब्राजील मिल कर उत्पादन करते हैं।
हमारे देश में अधिकांश गन्ने की खेती, देश के उत्तर प्रदेश राज्य में की जाती है, इसलिए इसलिए इस राज्य को ‘भारत के चीनी का कटोरा’ भी कहा जाता है। देश का यह राज्य 155 चीनी मिलों के साथ, भारत में दूसरे सबसे बड़े चीनी प्रसंस्करण उद्योग का एक स्थान है। चीनी, यहां के स्थानीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है।
जैसा कि हम सभी लोगों को यह पता है कि चीनी गन्ने से ही बनता है और बता दें कि चीनी बनाने की प्रकिया में गन्ने के रस में “सल्फर डाई आक्साइड” (वायु प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार गैसों में SO2 का अहम भूमिका है, क्योंकि इसके कारण आंख, नाक, गले और सांस की नलियों में तकलीफ होती है।) और “फोस्फोरिक एसिड” (फोस्फोरिक अम्ल एक खनिज अकार्बनिक अम्ल है। इसके प्रयोग से जंग लगी वस्तुओं को साफ किया जाता है क्योंकि जंग इसमें घुल जाता है। दंतचिकित्सक इसका उपयोग दांतो के सफाई करने में प्रयोग करते हैं।) आदि जैसे खतरनाक कैमिकलाे को मिलाकर साफ (रिफाइन) किया जाता है और उसके बाद मटमैले रंग के चीनी को साफ करने के लिए उसमें मरे हुए जानवरों की हड्डियों से बने कोयले द्वारा उसे साफ कर सफेद बना दिया जाता है।
इस प्रक्रिया से गुजरने के दौरान गन्ने के रस में स्थित बहुत सारे विटामिन्स, मिनिरल्स नष्ट हो जाते है और सभी प्रक्रियाओं से होकर गुजरने के बाद जब अंत में चीनी निकलती है तो उस चीनी में केवल ग्लूकोस ही अवशेष बचता है। चीनी की रासायनिक नाम C12H2OH है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाइजेशन (WHO) के अनुसार एक व्यक्ति को पूरे दिन भर में 6 से 7 चम्मच चीनी का ही प्रयोग करना चाहिए यानिकि इसका सीधा सा अर्थ है कि एक दिन में एक व्यक्ति को मात्र 25 से 30 ग्राम ही चीनी खाना चाहिए।
हम मनुष्यों के शरीर को जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है उसे हमारे रक्त कोशिकाओं में ग्लूकोज़ की मात्रा यानि शक्करा पहुंचा कर शरीर को ऊर्जावान बनाता जरूर हैं लेकिन यदि सही कहें तो हमे अपने रोजमर्र की जिंदगी में शक्कर यानिकि चीनी का प्रयोग बहुत कम या नहीं के बराबर करना चाहिए। इसके उदाहरण स्वरूप हमे एक घटना का उल्लेख करना पड़ रहा है कि शाहजहां पुर के एक चीनी मिल से सटी हुई एक किसान के खेत में जब चीनी बनने के बाद अपशिष्ट रूप में बचा हुआ पानी को उस किसान के खेत में बहा दिया जाता था कुछ दिनों के बाद जब किसान ने अपने खेत में फसल बोने के तैयारी करने के लिए आया तो उसे पता चला कि उसका खेत अब बंजर हो चुका था। जब किसान ने अचानक उसके खेत के बंजर होने का कारणों को पता लगाया तो उसे पता चला कि उसके खेत में चीनी मील के बेकार पानी को लगातार बहाया जाता था।
इस बात से आप स्वयं यह अनुमान लगा सकते हैं कि जब चीनी बनने में प्रयोग हुआ अपशिष्ट पानी इतना जहरीला हो सकता है तो चीनी कितना जहरीला होता होगा। खैर हमारे रोजमार्रे की जिंदगी में चीनी की एक महत्वपूर्ण भूमिका है इसलिए हम चीनी का उपयोग करना बिल्कुल से छोड़ नही सकते हैं, लेकिन जितना हो सके हमे इसका उपयोग कम कर देना चाहिए।