गौतम चक्रवर्ती
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन दूसरे ऐसे प्रमुख शासनाध्यक्ष हैं जो अभी 21,22 अप्रैल के दिन भारत दौरे पर आए हुए थे उनके दौरे से अभी चंद दिनों पहले ब्रिटिश विदेश मंत्री लिज़ ट्रस भारत दौरे पर आई थीं। ब्रिटिश विदेश मंत्री की भारत यात्रा से इन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्तों में सुधार के अलावा कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में जैसे खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, रक्षा एवं ऊर्जा क्षेत्र शामिल हैं। इसके पहले जापान के प्रधानमंत्री भी भारत आए थे। इसके अतिरिक्त भारतीय प्रधानमंत्री की आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री के साथ आभासी वार्ता पहले ही हो चुकी है। इन सबके अतिरिक्त चीनी विदेश मंत्री जो अभी हाल में भारत आए थे। एसे सभी अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक नेताओं से लेकर राष्ट्र अध्यक्ष्यों के भारत मे आना हमारे देश का बढ़ते प्रभाव का ही परिचायक है।
सवाल उठना स्वाभाविक है कि आज चाहे वह अमेरिका हो या आस्ट्रेलिया, जापान हो या ब्रिटेन विश्व के इन सभी देशों का ध्यान भारत पर केंद्रित क्यों हुआ है? अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक राजनयिकों के भारत आने वाली बात में ऐसा क्या खास है?
वैश्विक स्तर पर भारत के प्रधानमंत्री के साथ पुतिन का निकट आना और भारत के उसके पक्ष में वैश्विक मंच पर खड़े रहने से कहीं न कहीं इसका प्रभाव विश्व स्तर पर पड़ना तो निश्चित था इसके साथ ही आज विश्व के अनेक देश भारत के इस दृष्टिकोण से भी सहमत होने पर विवश हैं कि भारत उनके देश की तरह रूस से दूरी बना कर नहीं चल सकता है क्योंकि पहली बात तो यह है कि रूस भारत के सबसे पुराना मित्र देशों में से एक है और वह समय -समय पर भारत के साथ वैश्विक मंच पर दृढ़ता के साथ खड़ा रहा है। और जब -जब भारत को हथियारों की आवश्यकता हुई तब -तब उसने भारत को हथियार भी दिये। इसके अतिरिक्त सबसे बड़ी बात यह है कि भारत हमेशा से एक गुटनिर्पेक्षय देश रहा है जिसका जीता-जागता प्रमाण सरूप हम रूस यूक्रेन के मध्य चल रही युद्ध में देख सकते हैं, भारत यदि रूस से दूरी नहीं बना रहा तो यूक्रेन पर उसके हमले का समर्थन भी नहीं कर रहा। हैं यह भारत ने इस हमले को न केवल यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन बताया है, बल्कि बातचीत से समस्या के समाधान पर लगातार जोर भी देता रहा है।
भारत इस युद्ध मे तटस्थता का रुख अपनाये हुये है। क्योंकि भारत हमेशा से गुटनिर्पेक्षय नीति पर चला और आज भी चल रहा है, शायद यही कारण है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने भारत के स्वतंत्र रुख पर कोई प्रतिकूल प्रतिक्रिया देने या कुछ बोलने के स्थान पर इस बात पर चुप्पी साधे रहना ही अच्छा समझा।
आज अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को यह बात अच्छी तरह से समझ में आ गया है कि भारत अपने हितों की अनदेखी कर किसी अन्य देश के साथ खड़ा होने वाला नही है और नही अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के मुद्दे पर किसी के दबाव में आने वाला नही है। भारत यदि रूस से दूरी नहीं बना रहा तो यूक्रेन पर उसके हमले का समर्थन भी नहीं कर रहा है।
जहां तक ब्रिटिश पीएम की भारत यात्रा की बात है तो जिसकी एक लंबे समय से प्रतीक्षा हो रही थी, लेकिन यह मुद्दा सर्वथा अलग है कि किसी न किसी कारण अभी तक उनकी भारत यात्रा टलती रही। इस यात्र का जितना इंतजार भारत को था, उतना ही ब्रिटेन को भी, क्योंकि यूरोपीय समुदाय से अलग होने के बाद उसे भारत जैसी विश्व की एक बड़ी आर्थिक शक्ति में से एक से अपने संबंध सुदृढ़ करने की इच्छाशक्ति रखने के फलस्वरूप उनकी भारत यात्रा संभव हो सका। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन ने भारत का लोहा मानते हुए कहा कि भारत दुनिया की फार्मेसी है।