लखनऊ, 10 जनवरी 2019: सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण दिये जाने का बिल पास हो गया। वैसे ही जैसे पप्पू पास तो हो गया. लेकिन रहेगा पप्पू का पप्पू ही। संसद से लेकर सड़क तक इस बिल का मजाक कुछ इस तरह उड़ाया जा रहा है। दिलचस्प बात ये है कि संसद में विपक्षियों ने इस प्रस्ताव का मजाक भी बनाया और समर्थन भी किया। किसी सांसद ने इसे झुनझुना कहा तो किसी ने मोदी सरकार की आखिरी बाल का छक्का कहा। बसपा सांसद सतीश चंद्र मिश्र ने तो कुछ इस तरह कहा- ये ऐसा चुनावी छक्का मारने का प्रयास है जो बाउंड्री पार तो नहीं कर सकता, हां कैच होकर चुनाव में भाजपा की सत्ता का विकेट गिरा देगा।
ऐसे चंद मजाक संसद में गूंजे लेकिन सड़क पर इस बिल को लेकर अनगिनत मजाहिया (हंसाने वाली) बाते हो रही हैं। गली मोहल्ले और नुक्कड़ों का आई चौक बने सोशल मीडिया पर दस प्रतिशत सवर्ण आरक्षण पर दिलचस्प ओपिनियन सामने आ रही हैं। हास्य-परिहास और व्यंग्य के साथ कहीं-कहीं गुस्सा भी फूट रहा है। तमाम अपर कास्ट युवा भी ये कह रहे हैं कि आरक्षण का क्या अचार डालेंगे। देना ही है तो नौकरी दो। जब नौकरी ही नहीं तो आरक्षण का झुनझुना बजाकर क्या हासिल होगा !
कोई लिखता है कि पकौड़े का ठेला लगाने के लिए फुटपाथ ही आरक्षित कर दी जाये।
साढ़े तीन वर्ष से रोजगार की तलाश में भटक रहे विवेक वर्मा लिखते हैं कि उन्होंने अपने परम मित्र अजय शुक्ला के साथ कंप्यूटर साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन किया था। शुक्ला ताना देता था कि तुम तो आरक्षण की लाठी से नौकरी का फल हासिल कर लोगो। आज शुक्ला मुझसे (वर्मा से) बोला- अमां नौकरी तो छोड़ो आज के हालात में हम दोनों मित्र बेरोजगारी से तंग आकर जेब भी काटने लगें तो हर जेब खाली मिलेगी। विवेक वर्मा की इस पोस्ट पर किसी तीसरे ने टिप्पणी की- मोदी जी ये भी लागू करें कि यदि कोई आरक्षणधारी जेबकतरा पाकेटमारी में पकड़ लिया जाये तो उसे सजा के बजाय जेब की रकम की उतने प्रतिशत रकम दे दी जाये जितने प्रतिशत उसको आरक्षण हासिल है।
फैज़ान मुसन्ना लिखते हैं- जो पहले से रिजर्वेशन का कोटा हासिल किये हैं जब उनके पास रोजगार नहीं है तो सवर्ण वर्ग वाले रिजर्वेशन हासिल करके क्या कद्दू में तीर मार लेंगे।
इसी तरह ममता कपूर अपनी पोस्ट में लिखती हैं- कुछ हासिल नहीं होना, क्योंकि बेरोजगारी के सुनामी में सब बह रहे हैं। इस तेज धारा के आगे आरक्षण का ट्यूब भी बच नहीं पा रहा है।
मनदीप सिंह के खयालात सबसे जुदा थे। वो एक वीडियो शेयर कर कहते हैं- ऊंची जाति के अमीर लोग डर गये हैं। आठ लाख सालाना कमाने वाले ऊंची जाति के लोग ही इकलौते बचे हैं जिनके पास आरक्षण का हथियार नहीं हैं। । इस बिरादरी को अपनी दोलत कचोटने होगी। मन करता होगा कि ऊंची जाति या दौलत इन दोनों में से किसी एक को त्यागकर मैं भी आरक्षण का अधिकार ले लूं। नहीं तो हमारे बच्चे अब आरक्षण वालों की पंक्ति में सबसे पीछे, तन्हा, असहाय और अछूत बनकर खड़े रहेंगे।
अनामिका ट्यूशन पढ़ाती हैं। लिखती हैं कि वो इस बात से कुंठित रहती हैं कि लोग अपने बच्चों का भविष्य संवारने वाले ट्यूटर को इतना कम पैसा क्यों देते हैं। अनामिका खुश हैं कि आरक्षण का दायरा और भी बढ़ गया। उनका माना है कि अब भारतीय समाज में चंद लोग ही बचे हैं जो आरक्षण से वंचित हैं। उंची जाति के साथ ऊंची आमदनी वाले इन चंद लोगों को अपने बच्चों के भविष्य की फिक्र बढ़ गयी होगी। इनकी संतानों को आरक्षण वाली लम्बी चौड़ी जमात बहुत पीछे रहना होगा। केवल अपनी योग्यता के पंखों से ही इन्हें पहले से आगे खड़े लोगों के आगे निकलना होगा। यानी अतिरिक्त योग्यता हासिल करनी होगी। एक्स्ट्रा आॅडनरी बनना होगा। अन्न आरक्षण वालों से चार गुनी ज्यादा मेहनत करनी होगी। इसके लिए ट्यूशन पढ़वानी ही पड़ेगी। ऐसे में ट्यूशन पढ़ाने वाले मनमानी फीस पर ट्यूशन पढ़ाएंगे।
अनामिका आगे लिखती हैं-अब बताइए कि कौन कम्बख्त कहता है कि खाली आरक्षण से कुछ फायदा नहीं, क्योंकि आरक्षण रोजगार तो देगा नहीं !
मैं कहती हूं क्यों नहीं मिलेगा रोजगार। अभी देखियेगा। बिना आरक्षण वाले अमीर लोग अपने बच्चों के भविष्य के खतरों को देखते हुए उन्हें दिनों-रात पढ़वायेंगे। आगे खड़ी आरक्षण वाली भीड़ को चीर कर आगे निकलने के लिए चंद बचे खुचे सामान्य वर्ग के लोग अपने बच्चों को योग्यता की शक्ति प्रदान करने की तैयारी करेंगे। ऐसे में आरक्षण की अति रोजगार यानी ट्यूशन पढ़ाने के अवसर प्रदान करेगा।
-नवेद शिकोह
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