हमारे देश मे एक कहावत प्रचलित है कि भारत में पूरे वर्ष भर में जितने दिन होते हैं लगभग उतने ही त्यौहार मनाये जाते हैं। फिलहाल इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 7 अक्टूबर से शुरू हो चुके हैं।
ऐसी मान्यता है कि नवरात्र के 9 दिन में मां दुर्गा को प्रसन्न करने के उपायों में से एक नृत्य भी है। हिन्दू शास्त्रों के मतानुसार नृत्य साधना को ईश्वर प्राप्ति का एक मार्ग बताया गया है। इसलिये हम आप में से अधिकतर लोगों ने यह अवश्य देखा होगा कि जहां जहां दुर्गा पूजा के पंडाल सजाये जाते हैं वहां शाम के समय दुर्गा मां के प्रतिमा की आरती की जाती है जिसमे स्त्री एवं पुरुषों दोनों के द्वारा नृत्य करने करने की परम्परा कायम है। जिसमें नृत्य करते हुए मां दुर्गा के प्रतिमा की आरती उतारी जाती है। इस नृत्य मे गरबा नृत्य जो कि मुख्यतः गुजरात, राजस्थान और मालवा प्रदेशों में प्रचलित एक लोकनृत्य है जिसका मूल उद्गम देश के गुजरात राज्य को माना जाता है, लेकिन आजकल इसे पूरे देश में आधुनिक नृत्यकला में स्थान प्राप्त हो जाने से यह लोगों के बीच
ऐसे अवसरों के लिये प्रचलित हो गया है।
वैसे वर्णलोप से यही शब्द गरबा बन गया। आजकल गुजरात में नवरात्रों के दिनों में लड़कियाँ कच्चे मिट्टी के सचित्र घड़े को फूलपत्तियों से सजाकर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं लेकिन अब मां दुर्गा की स्तुति के रूप में इसका प्रचलित आयोजन होने लगा है।
गरबा का शाब्दिक अर्थ है गर्भ दीप। गर्भ दीप को स्त्री के गर्भ की सृजन शक्ति के प्रतीक के रूप में मान्यता है। इसी शक्ति की मां दुर्गा के स्वरूप में पूजा अर्चना करने का प्राविधान है।
गरबा नृत्य शुरू करने से पहले एक मिट्टी के कई छिद्रों वाले एक चपटे घड़े के अंदर एक दीप प्रज्वलित करके मां दुर्गा की शक्ति स्वरूपणी रूप में आह्वान कर इस ‘गरबा’ के चारों ओर नृत्य करती हैं।
गरबा नृत्य में आपने यह अवश्य देखा होगा कि महिलाएं 3 तालियों का प्रयोग करती हैं। ये 3 तालियां पूरे ब्रह्मांड के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूपों को समर्पित हैं। गरबा नृत्य में ये तीन तालियां बजाकर इन तीनों देवताओं का आह्वान किये जाने की परम्परा है।
पहले पहल गरबा का आयोजन केवल गुजरात तक ही सीमित हुआ करती थी। क्योंकि यह नृत्य का उद्भव स्रोत गुजरात राज्य ही है। आजादी के पश्चात यह नृत्य गुजरात प्रांत से निकल कर सम्पूर्ण देश में फैल गयी। आज यह केवल हमारे देश में ही नही बल्कि विदेश तक में भी किया जाने लगा है।
- प्रस्तुति: जी के चक्रवर्ती