शीतलाष्टमी (बासोड़ा) : सोमवार 17 मार्च 2020 शीतला माता की कथा:
होली के सात दिन बाद शीतला अष्टमी आती हैं प्राचीन कथा के अनुसार एक बार की बात है किसी नगर में नगरवासियों ने माता शीतला देवी के लिए गरमा गरम खाना बनाया है किसी ने गरमा – गरम हलवा बनाया तो किसी ने गरम लापसी हलवा बनाया, तो किसी ने खीर बनाई और उन्हें उपहार स्वरुप भेंट किया।
नगर वासियों द्वारा दिया गया गरमा गरम खाना खाने से माता के शरीर में तीव्र जलन हो रही थी। इससे बचने के लिए नगर में वह एक कुम्हार के घर गई और उन्होंने कुम्हार से कहा कि मेरा शरीर का अंग- अंग जल रहा है कुछ खाने को दे दो?
कुम्हार से यह सब देखा न गया तो कुम्हार ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप लगा दिया और उनको रात का बचा हुआ खाना दे दिया। जिससे कि उनका शरीर जो तप रहा था वह थोड़ा सा शांत हुआ और उनको राहत मिली तो माता ने फिर उनको आशीर्वाद दिया कि तुम रातों रात धनवान बन जाओं!
पूरे नगर में त्राहि मच जाए और तुम्हारा ही घर खाली बचा रहे! इस प्रकार सारे नगरवासी त्राहि-त्राहि करने लगे और खाली कुम्हार का ही घर बचा रहा तो सभी नगर वासी कुम्हार के यहां आकर उसे पूछने लगे कि तुमने ऐसा क्या किया कि माता ने सिर्फ तुम्हारा ही घर छोड़ दिया और बाकी पूरे नगर में त्राहि-त्राहि मच रही है।
तो कुम्हार ने कहा कि मैंने माता को शीतल देवी को रात का बचा हुआ खाना खिलाया था जिससे कि उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया।
कुमार ने कहा कि तुम लोगों ने माता को गरम- गरम खाना खिलाया जिससे उनके पूरे शरीर पर छाले निकल आये और मुंह में भी छाले निकल आए थे उनका अंग- अंग जलने लगा तो माता ने मेरे पास आकर कहां कि मेरा शरीर का पूरा अंग अंग जल रहा है। आप मुझे शीतलता प्रदान करने के लिए कोई उपाय बताएं!
मैंने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप लगा दिया और रात का बचा हुआ खाना उनको दे दिया जिससे उनके शरीर की जलन शांत हुई। इस पर सभी नगर वासियों ने पूछा कि अब माता जी कहां है तो कुम्हार ने कहा कि वह नीम के पेड़ के नीचे बैठी हैं। सभी नगरवासी नीम के पेड़ के नीचे जाकर माता से पूछने लगें, हम ऐसा क्या करें जिससे कि नगर में त्राहि-त्राहि कम हो सके?
माता ने बताया कि तुम सभी लोग हमें ठंडे खाने का भोग लगाओ जिससे कि मेरी अंग में जलन शांत हो! इस प्रकार नगरवासियों ने माता को एक दिन पहले का बना हुआ खाना शीतला माता को चढ़ाया और पूरे नगर को शांति प्राप्त हुई।
इस प्रकार करें शीतला माता कि पूजन विधि:
इस दिन सबसे पहले अष्टमी से एक दिन पहले सूर्यास्त होने के बाद तेल और गुड़ में मीठे चावल, मीठी रोटी, गुलगुले, आदि मीठा खाना माँ के भोग के लिए बनाया जाता हैं। इसके बाद अष्टमी वाले दिन प्रात:काल उठकर मंदिर जाकर गाय के कच्चा दूध से बनी लस्सी और सभी मीठे भोजन का माँ को भोग लगाना होता हैं। इसके बाद मंदिर के पंडित और सभी भगवान् को प्रसाद का भोग लगाया जाता हैं। इसके बाद गाय और कुत्ते को भी प्रशाद खिलाया जाता हैं।