जी के चक्रवर्ती
बता दें कि यह मीडिया सर्वे भाजपा और कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी करने वाले हैं, हालाँकि बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इन सर्वे पर यकीन नहीं करते, उनका कहना हैं कि यह काम के दम पार्टी साबित कर देंगें कि किसकी सरकार बनेगी।
दिल्ली में जिस तरह से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इन बीते पांच सालों में काम किया उससे वहां कि जनता का उन्होंने दिल जीत लिया है लोग उनकी जीत इस बार भी पक्की मान रहे हैं, लेकिन उनके मुकाबले भाजपा के मनोज तिवारी मैदान में हैं जिससे मुकाबला और भी कड़ा होने कि उम्मीद है क्योंकि भाजपा के पास उनके पालनहार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह और पूरी बीजेपी टीम है।
फिलहाल आपको तो याद ही होगा पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी किसी भी मुकाबले में नहीं थी लेकिन उसने जिस तरह फाइट किया राजनीति के विशेषज्ञों के सारे समीकरण को धराशायी करते हुए बड़ी -बड़ी पार्टियों को सोचने पर मजबूर कर दिया था।
अब एक बार फिर इधर दिल्ली विधानसभा का चुनाव 8 फरवरी के दिन होने के घोषणा होते ही देश की मुख्य तीन पार्टियां आप (सत्तासीन पार्टी) भाजापा और कांगेस सभी अपने -अपने उम्मीदवारों को लेकर तटस्थ नजर आ रहे हैं क्योंकि इससे पहले वर्ष 2015 में हुये दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम आने वाले कई दशकों तक देश के लोग भुला नही पाएंगे, क्योंकि यह चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए तबाही को लेकर आया था।
अरविंद केजरीवाल की तूफानी सुनामी ने आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव में ऐसा एतिहासिक प्रदर्शन किया कि जिसने कांग्रेस की पूरी राजनीति ही ताश के पत्तों के समान ढहा दी थी। उस चुनावी मंजर में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पार्टी की ऐसी हालत कर दी कि दिल्ली विधानसभा के वर्ष 2015 में हुये चुनाव में उसे एक भी वोट न मिलने से सूपड़ा ही साफ हो गया था, जबकि इससे पूर्व शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने इस राज्य पर 15 वर्षों तक यहां शासन किया। अब दिवंगत शीला दीक्षित की इस हार से सहज ही यह अंदाजा लगाया जा सकता था कि दिल्ली में उस वक्त से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी का वह चेहरा था, जिसे चुनाव में टक्कर देना इतना आसान नही था और वही स्थिति आज भी बरकरार है। बता दें कि इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल की भाजपा प्रतिद्वंदी किरण बेदी भी बुरी तरह से हार गयी थीं।
वैसे तो देश के इस राज्य में शीला दीक्षित को छोड़कर कई पार्टियों की सरकारें आयी और चली जाती रही थीं। यदि किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री के कामकाज से वहां की जनता यदि खुश है तो किसी भी अन्य पार्टी के द्वारा उसे सत्ता से उखाड़ फेंकना नामुमकिन सी बात है। किस भी राज्य में वहां पर पूर्व रहे सरकार के कामकाज से यदि राज्य की जनता खुश नही है तो वहां पर पुनः चुनाव जीत कर किसी भी पार्टी के सत्ताशीन होना बहुत दुष्कर बात है इस मामले में यदि हम देश के पश्चिम बंगाल राज्य की बात करें तो वहां पर इससे पूर्व सत्ता पर काबिज रहे ज्योति बासु की सरकार एक लम्बे अर्से तक वहां पर एकक्षत्र राज किया। वे केवल पशिम बंगाल के ही नही वल्कि उस वक्त के एशिया के सबसे प्रिय नेताओं में से एक हुआ कारते थे।
यहां पर एक और बात का उल्लेख करना आवश्यक हो जाता है कि दिल्ली विधानसभा का गठन सर्वप्रथम 7 मार्च वर्ष 1952 को उस समय हुआ था जब वहां पर मात्र 48 सदस्यों की संख्या ही हुआ करता था। वहीं पर वर्ष 1956 में इस राज्य के पुनर्गठन आयोग की अनुसंशाओं के क्रियान्वयन के पश्चात इसे केंद्रशासित प्रदेश बना कर यहां की मंत्रिपरिषद को खत्म कर दिया गया। इसके बाद से विधानसभा के स्थान पर दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल ने ले लिया। अंत मे पुनः वर्ष 1991 में इस काउंसिल के स्थान पर दिल्ली विधानसभा हो गया। अभी मौजूदा समय में यहां पर विधान सभा चुनाव की बिगुल बजने के साथ ही यहां पर 8 फरवरी 2020 को वोट डाले जाएंगे और 11 फरवरी को उसके नतीजे भी आ जायेंगे।
यहां पर पिछले समय हुये विधानसभा के चुनावों में यहां के चुनावी परिणाम एक तरफा आम आदमी पार्टी के पक्ष में गया था लेकिन इस दफे यहां पर भाजपा और कांग्रेस के भी मुकाबले में उतरने से त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है।