डॉ दिलीप अग्निहोत्री
भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की ताशकंद यात्रा महत्त्वपूर्ण हुई शंघाई सहयोग संगठन के राष्ट्राध्यक्षों का शिखर सम्मेलन अगले माह पंद्रह और सोलह सितंबर को उज्बेकिस्तान के समरकंद में प्रस्तावित है। इस शिखर सम्मेलन में भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान, कजाखस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिजस्तान के राष्ट्राध्यक्ष हिस्सा लेंगे। उससे पहले ताशकंद में इन देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक हो रही है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि एससीओ के सभी सदस्य देशों को मिलकर आतंकवाद का सामना करना चाहिए। यूक्रेन की स्थिति पर भारत भी चिंतित हैं. भारत ने पहले भी कहा है शांतिपूर्ण वार्ता से विवादों और समस्याओं का समाधान किया जा सकता है.लेकिन इसके लिए दोनों ही पक्षों को सकरात्मक दिखाना चाहिए. भारत ने चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों को भी यही संदेश दिया था.लेकिन इन देशों की हिंसक आतंकी और अविश्वसनीय मानसिकता सीमा समस्या के समाधान में बाधक हैं. शंघाई सहयोग संगठन में चीन पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देश शामिल हैं.
अफगानिस्तान में अतिवादियों की सरकार है. पाकिस्तान आतंकी संगठनों को संरक्षण देता है. चीन आतंकी मुल्कों का समर्थन है.इसके बाबजूद राजनाथ सिंह ने बहुत बेबाकी से आतंकवाद का मुद्दा उठाया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्तराष्ट्र संघ में आतंकवाद के विरोध में साझा रणनीति बनाने का प्रस्ताव किया था. क्योंकि आतंकवाद किसी एक देश की समस्या नहीं है. यह विश्वव्यापी समस्या बन चुकी है.
राजनाथ ने कहा कि भारत एक शांत, सुरक्षित और स्थायित्व वाले अफगानिस्तान की परिकल्पना करता है। अफगानिस्तान की जमीन का प्रयोग आतंकवाद के लिए नहीं होने दिया जाना चाहिए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अन्य सदस्य देशों के रक्षा मंत्रियों से मुलाकात की। राजनाथ सिंह ने अपने उज्बेक समकक्ष लेफ्टिनेंट जनरल बखोदिर कुर्बानोव के साथ द्विपक्षीय बैठक की। इसके अलावा उन्होंने कजाकिस्तान और बेलारूस के समकक्षों के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं।
बैठकों के दौरान तीनों देशों के साथ रक्षा सहयोग की समीक्षा की गई और आपसी हित के मुद्दों पर भी चर्चा की गई। शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की मुलाकात की संभावना व्यक्त की जा रही है। यह संयोग था लगभग इसी समय भारत ने संयुक्तराष्ट्र संघ में चीन की विस्तारवादी नीतियों का विरोध किया. भारत ने कहा कि साझा सुरक्षा तभी संभव है जब एक देश दूसरे देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करें। सुरक्षा तभी संभव है,जब सभी देश आतंकवाद जैसे आम खतरों के खिलाफ एक साथ खड़े हों.
संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहा था कि प्रतिक्रियाओं,प्रक्रियाओं और संयुक्त राष्ट्र के चरित्र में सुधार समय की आवश्यकता है। हम सामान्य सुरक्षा की आकांक्षा कैसे कर सकते हैं, जब विकासशील देशों को निर्णय लेने के प्रतिनिधित्व से वंचित रखा जाता है। भारत के लिए सबसे जरूरी सुरक्षा परिषद को विकासशील देशों का अधिक प्रतिनिधि बनाना है। ताकि इन देशों को भी अधिक प्रतिनिधित्व का अवसर मिल सके। अफ्रीकी महाद्वीप का सुरक्षा परिषद में स्थायी प्रतिनिधित्व नहीं है। हम अफ्रीका में सामान्य सुरक्षा की आकांक्षा कैसे कर सकते हैं, जब निकाय उन्हें स्थायी रूप से प्रतिनिधित्व से वंचित करता है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य और दस गैर-स्थायी सदस्य देश शामिल हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा दो साल के कार्यकाल के लिए चुना जाता है। पांच स्थायी सदस्य रूस, ब्रिटेन,चीन,फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं और ये देश किसी भी मूल प्रस्ताव को वीटो कर सकते हैं। भारतीय एस जयशंकर ने कहा कि चीन से तीस साल पहले समझौता किया था, जिसके मुताबिक सीमा क्षेत्रों में सेनाओं का लाना प्रतिबंधित है, लेकिन चीन इसका पालन नहीं कर रहा है। गलवान घाटी में उसने तनाव बढ़ाने का कार्य किया. लोग चाहते हैं कि पड़ोसियों के साथ रिश्ते अच्छे हों। लेकिन हर रिश्ते की एक मूलभूत शर्त होती है। सभी देशों में परस्पर सम्मान की भावना होनी चाहिए.
भारतीय परिकल्पना नियम आधारित व्यवस्था,टिकाऊ और पारदर्शी बुनियादी ढांचा निवेश पर आधारित है। भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की सदस्यता वाला क्वॉड हिंद-प्रशांत क्षेत्र की समकालीन चुनौतियों और अवसरों पर नजर बनाए रखने वाला सर्वाधिक मुखर संगठन है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र की भारतीय परिकल्पना में संप्रभुता के लिए पारस्परिक सम्मान के साथ विवादों का शांतिपूर्ण समाधान और सभी राष्ट्रों की समानता शीर्ष पर है। इसके अलावा भारत की विचार प्रक्रिया दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ आसियान को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के केंद्र में रखने की है. पूरा हिंद-प्रशांत क्षेत्र क्वॉड की गतिविधियों से लाभान्वित होगा। वैश्विक व्यवस्था की संभावनाएं सत्ता और संसाधनों के अधिक न्यायसंगत और लोकतांत्रिक वितरण पर निर्भर करती हैं।
भारत विश्व शांति का हिमायती है. रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री ने अपनी अपनी विदेश यात्रा में इसी विचार को रेखांकित किया. इसके साथ ही संयुक्तराष्ट्र संघ में भारत ने विश्व शांति के लिए आतंकवाद की समाप्ति पर बल दिया.इसके लिए पाकिस्तान अफगानिस्तान और चीन जैसे देशों पर नकेल कसना आवश्यक है.