कोणार्क सूर्य मंदिर बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित पुरी जिले के छोटे से नगर कोणार्क में स्थित है, ओडिशा इन सबका एक शानदार प्रमाण है। मान्यता के अनुसार इस मंदिर को 13वीं शताब्दी में पूर्वी गंगा वंश के राजा नर सिंह देव (1238-1255) ने बनवाकर सूर्य देव को समर्पित किया था। कोणार्क सूर्य मंदिर को यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में शामिल किया जा चुका है, इसके अलावा लाखों पर्यटक देश विदेश से इसे देखने आते है।
मुगल काल में कई हमलों और प्राकृतिक आपदाओं के चलते मंदिर की खराब हुई हालत को देख 1903 में तत्कालीन गवर्नर जॉन वुडबर्न ने जगमोहन मंडप के चारों दरवाजों पर दीवारें उठवा दीं और इसे पूरी तरह से रेत से भर दिया गया। इस काम में तीन साल लगे थे।
अधिकांश प्राचीन शब्दों की तरह, कोणार्क की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दो कोना (अर्थ कोण) और अर्का (अर्थ सूर्य) से हुई है। वैज्ञानिक और वास्तुकला के विकास के संदर्भ में प्राचीन भारत वर्तमान भारत से बहुत आगे था। कोणार्क मंदिर की बनावट ना केवल दोष रहित बल्कि प्रभावशाली भी है । पूरे मंदिर की बनावट भगवान सूर्य के रथ के रूप में है जो सात घोड़ों द्वारा खींचा जा रहा है।
क्या देखें:
सटीक समय की गणना:
मंदिर का मुख्य आकर्षण मंदिर के आधार पर स्थित उसके बारह जोड़ी पहिये हैं। ये पहिये साधारण पहिये नहीं हैं, बल्कि समय भी बताते हैं। कोई भी जानकार इन पहियों की छाया को देखकर दिन के सटीक समय की गणना कर सकता है। क्या यह महान नहीं है? पहिये सुंदर रूप से सजे हुए हैं।
52 टन चुंबकीय शक्ति अनूठी विशेषता:
इस मंदिर की एक और अनूठी विशेषता यह है कि हर दो पत्थरों के बीच एक लोहे की चादर उपस्थित है। मंदिर की ऊपरी मंजिलों के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर लोहे की बीमों का उपयोग किया गया है। मुख्य मंदिर की चोटी बनाने के लिए 52 टन चुंबकीय लोहे का उपयोग किया गया था। ऐसा माना जाता है कि पूरा ढाँचा इस चुंबक की वजह से समुद्र की कठोर परिस्थितियों को सहन कर पाता है। पहले, मुख्य चुंबक के साथ अन्य चुंबकों की अनूठी व्यवस्था से मंदिर की मुख्य मूर्ति हवा में तैरती रहती थी।
चुंबकीय पत्थर:
मंदिर तट पर इतना उन्मुख था कि सूर्य की पहली किरण सीधे मुख्य प्रवेश द्वार पर पड़ती हैं। सूरज की किरणें सूर्य मंदिर से पार होकर मूर्ति के केंद्र में हीरे से प्रतिबिंबित होकर चमकदार दिखाई देती हैं। हीरा मुख्य मूर्ति के मध्य में स्थापित था। औपनिवेशिक काल के दौरान चुंबकीय पत्थर प्राप्त करने के लिए अंग्रेजों द्वारा इन चुंबकों को मंदिर से निकलवा लिया गया था।
शेर गर्व का प्रतीक:
इसके अलावा, मंदिर मृत्यु दर के बारे में सिखाने के लिए एक रास्ता प्रस्तुत करता है। कोणार्क सूर्य मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों तरफ दो विशाल शेर स्थापित हैं। प्रत्येक शेर द्वारा हाथी को कुचलते हुये दिखाया गया है प्रत्येक हाथी के नीचे मानव शरीर है। शेर गर्व का प्रतिनिधित्व करता है और हाथी पैसे का प्रतिनिधित्व करता है। इन्हें देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि ये दोनों दोष एक इंसान को कैसे कुचल सकते हैं।
विशिष्ट आकर्षण नक्काशी:
कलिंग स्थापत्य कला के प्रमाण इस कोणार्क मंदिर में लाल बलुए पत्थर पर सूर्यदेव के रथ की बेहतरीन नक्काशी देखने को मिलती है। इस मंदिर को सूर्य देव के बारह जोड़ी पहियों वाले रथ के रूप में बनाया गया है जिसे खींचने के लिए सात घोड़े भी बने थे। इनमें से अब एक ही घोड़ा बचा है। कोणार्क की पहचान बन चुके रथ के पहियों में बहुत से चित्र दिखाई देते हैं।
प्राचीन लोग अपनी इमारतों को मूर्तियों और नक्काशियों के साथ सजाना पसंद करते थे। कोणार्क सूर्य मंदिर के हर एक भाग में मूर्तिकला, देवता, नर्तक, प्रांगड़ में जीवन के दृश्य आदि शामिल हैं। इन आकृतियों को अलग करने के लिए पौराणिक प्राणियों के साथ पक्षियों और जानवरों की सुंदर नक्काशियां हैं। कटावदार डिज़ाइन और मानव एवं जानवरों की आकृतियों की नक्काशी कोणार्क मंदिर को एक विशिष्ट आकर्षण प्रदान करती है।
आज भी सुनाई देती है नर्तकियों के पायलों की आवाज़:
यह मंदिर सूर्य देव की भव्य यात्रा को दिखाता है। प्रवेश द्वार पर नट मंदिर है। यह वह स्थान हैए जहां मंदिर की नर्तकियांए सूर्यदेव को अर्पण करने के लिए नृत्य किया करतीं थीं। साथ ही मानवए देवए गंधर्वए किन्नरों की आकृतियां ऐंद्रिक मुद्राओं में हैं और कामसूत्र से ली गई हैं।
ऐसा माना जाता है कि यहां आज भी नर्तकियों की आत्माएं आती हैं। अगर कोणार्क के पुराने लोगों की माने तो आज भी यहां आपको शाम में उन नर्तकियों के पायलों की झंकार सुनाई देगी जो कभी यहां राजा के दरबार में नृत्य करती थीं।
18 वीं शताब्दी आते.आते इस मंदिर में पूजा बंद हो गई थी। अगर हम यहां के स्थानीय लोगों की मानें तो ये एक वर्जिन मंदिर है और ऐसा माना जाता है कि मंदिर के प्रमुख वास्तुकार के पुत्र ने राजा द्वारा उसके पिता के हत्या के बाद इस निर्माणाधीन मंदिर के अंदर ही आत्महत्या कर ली थी। जिसके बाद से ही इस मंदिर में पूजा या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान पर पूर्णतरू प्रतिबंध लगा दिया गया था।
कोणार्क पतन पर अलग-अलग मिथ:
- एक सिद्धांत के अनुसार कोणार्क मंदिर का हिस्सा इसकी अपूर्ण संरचना के कारण टूट गया था। राजा लंगुला नरसिंह देव, जिन्होंने मंदिर के निर्माण की शुरुआत की थी, की अकाल मृत्यु के कारण कोणार्क सूर्य मंदिर का कार्य पूरा नहीं हो पाया था।
- अगला सिद्धांत मंदिर के शीर्ष पर स्थित चुंबकीय पत्थर (खनिज मैग्नेटाइट का टुकड़ा जो स्वाभाविक रूप से चुम्बिकीय है) का है। चुंबकीय पत्थर के स्थानांतरण ने मंदिर को भारी नुकसान पहुँचाया क्योंकि कोणार्क सागर से गुजरने वाले कई जहाज इसकी ओर आकर्षित होते थे। इसके अलावा, यह चुंबक समुद्र में लगभग सभी जहाजों के कम्पास को खराब कर देती थी। इस परेशानी से बचने के लिये पुर्तगाली यात्रियों ने चुंबकीय पत्थर को चुरा लिया। चुंबकीय पत्थर के विस्थापन के कारण मंदिर में बहुत असंतुलन हुआ और कोणार्क मंदिर गिर गया। लेकिन इस घटना या कोणार्क मंदिर में इस तरह के एक महान चुंबकीय पत्थर की उपस्थिति का कोई भी ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं है।
- एक और बहुत लोकप्रिय सिद्धांत के अनुसार मंदिर कलपहाद (बंगाल के मुस्लिम गवर्नर सुल्तान सुलेमान कर्राणी को कलपहाद का शीर्षक दिया गया था) द्वारा नष्ट किया गया था, जिन्होंने 1508 में उड़ीसा पर आक्रमण किया था। उसने उड़ीसा में कोणार्क सूर्य मंदिर के साथ कई अन्य हिंदू मंदिरों को भी नष्ट कर दिया था। 1568 में मुसलमानों ने उड़ीसा पर शासन करना शुरू किया और कई हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया।
https://youtu.be/2zlbeTlbAxk
साभार:youtube
कैसे पहुँचे?
कोणार्क तक पहुँचना मुश्किल नहीं है क्योंकि यह कस्बा सड़क, रेल और वायु मार्ग द्वारा अच्छी तरह से भारत के सभी प्रमुख भागों से जुड़ा हुआ है। भुवनेश्वर हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है जो अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और यहाँ से देश के सभी हिस्सों के लिये नियमित उड़ानें हैं। यह हवाई अड्डा कोणार्क से 64 कि.मी. की दूरी पर है। कोणार्क के निकटतम रेलवे स्टेशन पुरी और भुवनेश्वर दोनों शहरों में हैं।
https://shagunnewsindia.com/wah-taj/
1 Comment
रोचक जानकारी है।