दूसरे देश से हजारों मील उड़ान भर कर आने वाले पक्षियों का स्वर्ग कहे जाने वाले हिन्दुस्तान के भरतपुर के महल, किले एवं मन्दिर यहां के शासकों के स्थापत्य प्रेम का प्रतीक हैं। सैलानियों के अनेक आकर्षण के साथ-साथ यहाँ पुरूषों द्वारा किये जाने वाला बम नृत्य जिसे बम रसिया भी कहा जाता है, होली के अवसर पर किये जाने वाला प्रसिद्व लोक नृत्य है। इसमे नगाड़ा बजाने के लिये मोटे डंडो का प्रयोग किया जाता है।
भरतपुर में हाथरस शैली की नौटंकी के लिये भी मशहूर है। इसमे सारंगी, ढोलक, शहनाई, ढपली वाघों का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रदर्शन मांगलिक अवसरों, विवाह, नुमाइशों, पर्वो एवं सामाजिक उत्सवों पर किया जाता है। यहाँ का ढप्पाली ख्याल, भुटनी, हुंरगी और लांगुरिया भी जनमानस मे रचे बसे हैं।
शिव शक्ति की महिमा का बखान करते हुरंगो का आयोजन होली के बाद पंचमी से लेकर अष्टमी तक किया जाता है। बृजक्षेत्र से जुड़ा होने से यहाँ चित्रकार कृष्णलीला से जुड़े बारहमासा एवं राग माला के चित्र प्रधानता से बड़े पैमाने पर बनते हैं।
भारत में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान ही एक मात्र ऐसा स्थान है, जहाँ साइबेरियन क्रेन सर्दियां बिताने आते हैं। ये करीब अक्टूबर के अंत या नवम्बर के प्रारम्भ में आते हैं और फरवरी के अंत या मार्च के प्रारंभ में साइबेरिया के लिए वापस प्रस्थान कर जाते हैं।
केवला देव राष्ट्रीय उद्यान:
भरतपुर के दक्षिण-पूर्व में गम्भीरी एवं बाणगंगा नदियों के संगम पर स्थित विश्वविख्यात केवला देव राष्ट्रीय उद्यान विश्व के सबसे अधिक आकर्षित करने वाले जलपक्षी की शरणस्थलियों में से एक है। उद्यान के बीच में बनेकेवलादेव (शिव) के मंदिर पर इसका नाम रखा गया है। करीब 28173 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस उद्यान को पहले ‘घाना बर्ड सेन्चुरी’ के नाम से जाना जाता था। यह राष्ट्रीय उद्यान एक प्राकृतिक छिछली तश्तरी के रूप में है।
बता दें कि राज्य सरकार ने 27 अगस्त 1981 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया। उसी वर्ष केवला देव राष्ट्रीय उद्यान को रामसर साइट की सूची में शामिल किया गया एवं इसके जैविक एवं पारिस्थितिकीय महत्व को देखते हुए इसे वर्ष 1985 में ‘विश्व प्राकृतिक धरोहर’ की सूची में सम्मिलित किया गया।
भारत में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान ही एक मात्र ऐसा स्थान है, जहाँ साइबेरियन क्रेन सर्दियां बिताने आते हैं। ये करीब अक्टूबर के अंत या नवम्बर के प्रारम्भ में आते हैं और फरवरी के अंत या मार्च के प्रारंभ में साइबेरिया के लिए वापस प्रस्थान कर जाते हैं। पक्षियों के स्वर्ग में 390 से अधिक प्रजाति के पक्षियों को सूचीबद्ध किया गया है। इनमें से करीब 120 प्रजाति के प्रवासी पक्षी तथा शेष आवासी पक्षी हैं।
प्रत्येक वर्ष की शुरूआत होते ही देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों आवासी पक्षी यहाँ आकर अपने नीड़ का निर्माण करते हैं। प्रति वर्ष ओपेन बिल्ड स्टार्क, पेन्टेड स्टार्क, इग्रेट, स्पूनबिल, कार्मोरेन्ट, स्नेक बर्ड, व्हाईट आईबिस, ग्रेहीरान आदि प्रजाति के हजारों पक्षी यहाँ आकर अपने जोड़े बनाकर प्रजनन करते हैं। इन विभिन्न पक्षियों द्वारा बनाए गए घोंसले कुशल कारीगरी का परिचय देते हैं। यहाँ के जलीय क्षेत्र में करीब 100 जलीय वनस्पति की प्रजातियां पाई जाती हैं।
पक्षियों की सेवा करते है सेवाराम:
ये सेवाराम है, मजदूरी करते हैं और साथ ही जोधपुर के खींचन गाँव में ही कुरजाँ पक्षियों की सेवा करके जैव विविधता को संरक्षण करने का अत्यंत प्रेरणादायी कार्य करते हैं। कजाकिस्तान व मंगोलिया से उड़ान भर साइबेरियन क्रेन कुरजां पक्षी हजारों मील का सफर तय कर हर साल खींचन पहुंचते है।