जीके चक्रवर्ती
अयोध्या राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद लगा था कि अब धार्मिक स्थलों को लेकर हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच का विवाद हमेशा के लिए समाप्त हो गया, लेकिन सही कहा जाये तो वह फैसला कई और नए विवादों की जननी साबित होती हुई दिखाई दे रही है। इस फैसले के बाद से देश मे कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जहां पर ज्ञानवापी जैसा ही विवाद है। वही बात करें तो कर्नाटक के मंगलौर में मस्जिद के अंदर मंदिर जैसी सरंचना मिलने की बात कही जा रही है तो दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में एक मस्जिद के विषय में ऐसा दावा किया जा रहा है कि उसे शिव मंदिर तोड़कर बनाया गया है लेकिन यहां हम ज्ञानवापी के विषय मे आप से बात करने के लिए उद्धत हैं।
हमारे भारत मे यह आम मान्यता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को मुगल शासक औरंगज़ेब ने तुड़वा कर वहां मस्जिद का निर्माण करवाया था, लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज़ों को देखने और समझने के बाद ज्ञानवापी मस्जिद या मंदिर का मामला इससे कहीं अधिक जटिल है, क्योंकि उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में काशी विश्वनाथ मंदिर और उससे सटी ज्ञानवापी मस्जिद, दोनों के निर्माण एवं पुनर्निमाण को लेकर हमारे समाज मे अनेको प्रकार की धारणाएँ प्रचलित हैं लेकिन सही कहा जाये तो स्पष्ट और पुख़्ता ऐतिहासिक साक्ष्य एवं जानकारीयों का अभाव है हाँ यह बात अवश्य है कि इस सम्बंध में दावों और क़िस्से कहानियां अनेको है।
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के तीन दिनों तक चला सर्वे में कमिश्नर की अगुवाई वाली 52 सदस्यीय एक टीम द्वारा परिसर के तहखाने से लेकर ऊपरी हिस्से तक का सर्वेक्षण किया गया।
इस सर्वे के खत्म होने के बाद हिंदू पक्ष ने यह दावा किया है कि मस्जिद में शिवलिंग पाया गया है तो दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष के लोगों का कहना है कि यह शिवलिंग नही बल्कि वज़ूख़ाने में लगा एक फ़व्वारा हैं।
वैसे इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि ज्ञानवापी मस्जिद को 14वीं सदी में जौनपुर के शर्की सुल्तानों ने यहां पहले से मौजूद रहे विश्वनाथ मंदिर को तुड़वा दिया था लेकिन इस कथन से कई इतिहासकार इनकार भी करते हैं, तो इस तरह के दावे साक्ष्यों की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं।
जहां तक विश्वनाथ मंदिर के निर्माण का प्रश्न है तो इसका श्रेय अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल को जाता है उन्होंने वर्ष 1585 में अकबर के आदेशानुसार दक्षिण भारत के विद्वान नारायण भट्ट की मदद से इसका निर्माण करावाया था।
जहां तक इसकी साक्ष्य की बात करें तो काशी विद्यापीठ में इतिहास विभाग में रिटायर्ड प्रोफ़ेसर का कहना हैं कि “विश्वनाथ मंदिर का निर्माण राजा टोडरमल ने ही कराया था, जिसके ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं और टोडरमल ने इस तरह के कई और भी निर्माण कराये थे। यह बात अलग है कि यह निर्माण उन्होंने अकबर के आदेश से ही करावाया था, इस बात की पुष्टि करने के लिये कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है।
ज्ञानवापी मस्जिद की देख-रेख करने वाली एक संस्था अंजुमन इंतज़ामिया मसाजिद के संयुक्त सचिव सैयद मोहम्मद यासीन का कहना हैं कि आमतौर पर यही माना जाता है कि मंदिर और मस्जिद दोनों को अकबर ने वर्ष 1585 के आस-पास नये मज़हब “दीन-ए-इलाही” के अंतर्गत बनवाए थे लेकिन इसके दस्तावेज़ी साक्ष्य नही है और जो कुछ है भी तो वे बहुत बाद के हैं, वहीं अधिकतर लोगों का ऐसा मानना है कि मस्जिद अकबर के शासन कालीन में बना था। औरंगज़ेब ने मंदिर को तुड़वा दिया था।
काशी विश्वनाथ मंदिर मामले में दावे का समर्थन करने वाले लोग कहते हैं कि औरंगज़ेब ने अपने शासन काल मे काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का फ़रमान तो जारी किया था, लेकिन उन्होंने मस्जिद बनाने का फ़रमान नहीं दिया था। एसे लोगों के अनुसार मस्जिद को बाद में मंदिर के ध्वंसावशेषों पर ही बनाई गई है।
वाराणसी में एक वरिष्ठ पत्रकार ने ज्ञानवापी मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के विषय में बहुत शोध करने के पश्चात यह स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि “अकबर के समय में टोडरमल ने मंदिर बनवाया। इसके लगभग सौ वर्षो के पश्चात औरंगज़ेब के समय मंदिर ध्वस्त हुआ और फिर आगे लगभग 125 वर्षो तक यहां कोई विश्वनाथ मंदिर नहीं था। वर्ष 1735 में इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई ने वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया।”
ज्ञानवापी के पास बने आदिविश्वेश्वर मंदिर के विषय में यह अवश्य कहा जाता है कि यह वही मंदिर है, जिसका उल्लेख पुराणों में किया गया है। मंदिर टूटने के बाद ही मस्जिद बनी और ज्ञानवापी कूप के नाम पर मस्जिद का भी नाम ज्ञानवापी पड़ा। ज्ञानवापी कूप आज भी मौजूद है।”
यदि हम सही बात कहें तो आज जो यह बात कही जा रही है कि यहां कुआँ है और उसमें शिवलिंग है, तो यह बात बिल्कुल ग़लत है क्योंकि वर्ष 2010 में जब इस कुएँ की सफ़ाई करवाई गयी थी उस वख्त तक यहां कुछ भी मौजूद नहीं था।”