संस्मरण : अनुराग प्रकाश
मगरमच्छ को पहली बार मैंने कितने वर्ष की उम्र में देखा, ये मुझे भी ठीक से याद नहीं हा ……. हा ये याद है कि पहले हमारे लखीमपुर खीरी में दशहरे के मेले में एक अस्थायी ज़ू लगता था। पहले वही मैंने एक छोटे से केज में शायद वो 4×7 से ज्यादा नही होगा आधा बॉक्स जैसा था जिसमे पानी भरा था और ऊपर केज बना हुआ था उसी में, पहली बार मगरमच्छ को देखा था। उसके बाद से इस जानवर को और जानने की व देखने की इच्छा थी।
कुछ फिल्में जैसे खून भरी मांग व शान ने इस जानवर की छवि और खतरनाक बना दी थी मेरे मन मे। शान का वो डायलाग ” अजीब जानवर है जितना भी खा ले भूखा ही रहता है” ने इसे देखने व जानने को और उतावला कर दिया।
जब करीब 16 साल पहले मैंने दुधवा टाइगर रिजर्व के पास बंसिनगर गांव में अपने रहने के लिए एक कमरा बनवाया तो उसका काम पूरा होते ही बंसिनगर में बाढ़ आ गई।
बाढ़ का पानी मेरे कमरे के चारो ओर भर गया और जब मैं वहाँ पहुँचा तो देखा कि एक बड़ा मगरमच्छ मेरे कमरे के सामने ही तैर रहा है । उसे देखते ही मैं बाढ़ की सारी बात भूल कर मगरमच्छ का तैरना एन्जॉय करने लगा । ये देख कर गावं वाले भी अजीब तरह से मुझे देखने लगे। तब मुझे पता चला कि मगरमच्छ तो हमारे सबसे करीबी पड़ोसी है और बड़ी अच्छी तादात में हमारे आसपास मौजूद है।
ये जानकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। उसके बाद तो हर ऋतु में इन्हे देखना व उनकी हरकतों को नोटिस करना मेरी दिनचर्या बन गई। आज भी लगभग रोज़ ही मैं इन्हें देखने नजदीक की नदी व तालाबों पर जाता हूँ।
इनके छोटे बच्चों से लेकर विशालकाय मगरमच्छ तक को मैंने इनके प्राकृतिक पर्यावास में खेलते, लड़ते व शिकार करते हुए देखा है। जब इस जानवर ने मुझे अपने इतने पास आने दिया व अपनी दुनिया मे झांकने का मौका दिया, तो मैं उसके नाम पर अपने कैम्प का नाम तो रख ही सकता हूँ।मगरमच्छ से अपने इसी प्रेम के कारण मैं अपने होम स्टे का नाम भी CROC CAMP रखा है ।