अयोध्या समेत पूरे मंडल में बीजेपी के क्लीनस्वीप से अचंभित और आक्रोशित हैं समर्थक
राहुल गुप्ता
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अयोध्या समेत आस पास की कई सीटों पे बीजेपी को मिली शिकस्त के कारण तमाम समर्थक अयोध्यावासियों समेत प्रभु श्री राम को भी निशाना बनाने से बाज नहीं आ रहे। अयोध्यावासियों के लिए अभद्र भाषाओं का प्रयोग कर कोई वीडियो डाल रहा है तो कोई इनके खिलाफ अभद्र पोस्टें डाल रहा है। सोशल मीडिया यूज करने वाले भी ये सब देख सुन रहे हैं। इतना विरोध अयोध्यावासियों का! एक जैसा बना बनाया मैटेरियल संभावित हैकि यह कुछ लोगों की शरारत है।
अयोध्यावासियों को घेरने के लिए सोशल प्लेटफार्मों में हुजूम सा आ गया है। इसको लेकर अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी खबरें आना शुरू हुई है। उम्मीद है अब जल्द ही इस तनावपूर्ण माहौल को विराम लगेगा। ये कैसे समर्थक हैं? और कैसे सनातनी? सनातन की शान, पुरुषों में उत्तम, आदर्शों और नैतिकता की खान प्रभु श्री राम को भी नहीं बख्श रहे।
उन पर भी अहसानफरामोश होने का लांछन लगाने जैसी दुस्साहस करने वाली पोस्टें सोशल मीडिया में वायरल हो रही हैं। तो प्रभु श्री राम के सर्वदा प्रिय अयोध्यावासियों की इनके आगे क्या बिसात? धर्म का राजनीतीकरण जब होगा तो ऐसे ही हालात उत्पन्न होते हैं। अयोध्या समेत पूरे मंडल से बीजेपी की हार समर्थकों को अचंभित जरूर करती है। तो इसका मतलब ये कतई नहीं है की ये प्रभु श्री राम और उनके प्रिय अयोध्यावासियों के खिलाफ आक्रोश दिखाएं। आत्ममुग्धता से इतर जब आप देखेंगे तो वहां पूर्व में की गईं बहुत सी गलतियों से भी पर्दा उठेगा। सनातन की परिभाषा के मायने खुद को सनातनी कहने वाले ही बदल देंगे। राजनीति क्या धर्म से बढ़कर हो गई है? क्या पावन ग्रंथ श्री राम चरित मानस में अयोध्या और अयोध्यावासियों के लिए कही गईं बातों का इन सनातनियों के समझ से परे थीं।
“अब जाना मैं अवध प्रभावा। निगमागम पुरान अस गावा॥
कवनेहुँ जन्म अवध बस जोई। राम परायन सो परि होई॥”
हिंदुओं के पावन ग्रंथ श्री रामचरित मानस में ही दिए है की हर जन्म में हर अयोध्यावासी श्री राम का चहेता है किंतु कुछ राजनीतिक स्वार्थी, अयोध्यावासियों को ही राम द्रोही कह रहे हैं। हां! वो किसी दल के द्रोही हो सकते हैं। न वो रामद्रोही हैं न हिंदूद्रोही। अयोध्या से दलित हिंदू ही जीता है। तो इसमें हाय तौबा क्यों? हार और जीत तो राम ने ही रच रखी है।
केवल मोदी और योगी चेहरे के सहारे बैठे जनप्रतिनिधि और पदाधिकारियों की निष्क्रियता और मनमानी की तरफ इन लोगों का ध्यान क्यों नहीं गया। एक बड़ी वजह तो यह भी है हार की। और इनका ध्यान इधर भी नहीं गया की तमाम अयोध्यावासियों की दुकानें और घर विकास के नाम पर भेंट चढ़ गए। उनके दर्द में मरहम रखने का भी कार्य होता तो ऐसी नौबत शायद नहीं आती। जाने
ये कौन से हिंदू और सनातनी हैं जिन्हें राम पर ही विश्वास नहीं?
प्रभु राम जी ने सुंदरकांड के एक प्रसंग में कहा है कि
“निर्मल मन जन सो मोहि पावा
मोहि कपट छल छिद्र न भावा”
पर ऐसे लोगों ने आंखें मूंद रखी हैं, उन्हें धर्म का इस्तेमाल अपने तरीके से केवल राजनीति के लिए करना है। हां! राजनीति में तात्कालिक लाभ है, नेता को प्रसन्न करने में आपको लगता है आपका कद बढ़ता है। पर हर चीज क्षणिक है। ईश्वर ही शाश्वत है। लेकिन राजनीतिक स्वार्थ और लाभ के लिए ये सब बातें ये लोग जानते हुए भी शर्म की दहलीज भी पार कर दिए हैं।
शर्म है कि इनको आती नहीं।
सही बात बतानी आती नहीं ।।
विनाश की नींव पे विकास।
सैलानियों को भाता होगा।।
जिनका बहुत कुछ छिना।
उन्हें हंसी भी अब आती नहीं।।
राम को प्रिय हैं अयोध्यावासी।
रामद्रोहियों को ये भाते नहीं।।
हम जन अपेक्षाओं में खरा उतरकर फिर से पहले से भी बेहतर और बड़ी शाख बना सकते हैं। जब लोकतंत्र में हर पांच साल में चुनाव होते ही रहना है तो आक्रोश, और अभद्रता से अच्छा आगे की बेहतर तैयारी क्यों नहीं?