भय
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मैं डरता रहा और
प्रेम करता रहा –
कहीं नफरत न उग आए
मैं डरता रहा और
हंसता रहा-
कहीं उदासी न छा जाए
मैं डरता रहा और
भीड़ में भागता रहा-
कहीं अकेलापन न खा जाए
मैं डरता रहा और
दोस्ती करता रहा-
कहीं दुश्मनी न पैदा हो जाए..
अंततः
फिर वही हुआ
जिससे मैं डरता रहा.
– आनंद अभिषेक