जब मैं स्कूल में था तो एक दिन मैने बड़े उत्साह से अपने पिता को अपनी अंकसूची दिखाई, जिसमें मुझे गणित के पेपर में 100 में से 90 अंक मिले थे ।
पिताजी ने आव देखा ना ताव और लगे मुझे पीटने, दे दनादन °°°°
और बोले, तुम इतने समझदार
कब से हो गए ? तुम बेईमान हो 9 को 90 बना दिया है ..
तुम 9 के आगे 0 लगाते हो कमीने, निकम्मे, #*$€£π∆°¢$..
मैं झार झार रो रहा था और अपने दोनों हाथ जोड़कर पुरजोर इसरार कर रहा था कि मैने 0 नहीं लगाया..
लेकिन वे सुनने के मूड में नहीं थे..
उन्होंने मुझे बहुत मारा,
जबकि मैं सच बोल रहा था..
मैने 0 नहीं लगाया था,
मैने 9 लगाया था..