डॉ दिलीप अग्निहोत्री
विदेशी शासकों ने भारतीय सभ्यता संस्कृति नष्ट करने के सभी संभव प्रयास किए। वह जानते थे कि ऐसा करने से यहां के लोगों का राष्ट्रीय स्वाभिमान भी समाप्त हो जाएगा। लेकिन इसी अवधि में भारतीय गौरव की अलख जगाए रखने के प्रयास भी चलते रहे। हिंदी भाषा में ‘उदन्त मार्तण्ड’ के नाम से पहला समाचार पत्र 30 मई, 1826 में निकाला गया था। उनका यह प्रयास स्वदेशी भावना और विचार के अनुरूप था। इसमें देश की सांस्कृतिक चेतना की अभिव्यक्ति भी थी। जुगल किशोर कानपुर के थे।
उन्होंने हिंदी समाचार पत्र का शुभारंभ बंगाल से किया था। उस दिन देवर्षि नारद जयंती थी। ऐसे ही अनगिनत प्रयासों से राष्ट्रिय स्वाभिमान को कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया गया। आधुनिक वामपंथी खेमे पत्रकारों ने भारतीय संस्कृति की घोर अवहेलना की। उदारीकरण और वैश्वीकरण ने नया संकट पैदा किया है। ऐसे में राष्ट्रवादी पत्रकारिता के महत्व को बनाये रखने की चुनौती है। इसमें धीरे धीरे सफलता भी मिल रही है।भारतीयता को विशेष महत्व देते हुए सत्य, संवाद और सेवा को अपना ध्येय मानाना चाहिए। वर्तमान समय में पत्रकारिता कई चुनौतियों का समाना कर रही है।
पत्रकारिता को धर्म मानकर काम करने वाले ही सफल होते है। पत्रकारिता के क्षेत्र में आदर्श अपेक्षित हैं। उनके पालन से ही समाज व राष्ट्र का हित सुनिश्चित होता है। इन आदर्शों की अवहेलना नहीं होनी चाहिए। समाचार सम्प्रेषण में स्पष्टता व गुणवत्ता रहनी चाहिए। इससे प्रामाणिकता कायम होती है। साथ ही समाज का भी कल्याण होता है। उसी के आधार पर देश का लोकतंत्र स्वस्थ बना रहेगा। देश के लोकतंत्र का स्वस्थ बने रहना समग्र विकास के लिए आवश्यक शर्त है।
समाज जागरूक होकर सही दिशा में चलता है तभी लोकतंत्र सफल होता है। वस्तुतः भारतीय पत्रकारिता का वामपंथी विचारों ने नुकसान किया है। इसके लिए वामपंथियों ने अपना स्वरूप भी बदला है। कार्ल मार्क्स ने आर्थिक आधार समाज की व्याख्या की थी। उसने समाज को दो वर्गों में बांटा था। पहला पूंजीपति और दूसरा सर्वहारा। पूंजीपति सदैव सर्वहारा का शोषण करता है। दोनों में संघर्ष चलता रहता है। यह वामपंथियों, मार्क्सवादियों, माओवादियों, नक्सलियों का मूल चिंतन रहा है। इसमें अनेक बदलाव भी होते रहे। भारत के वामपंथियों ने मीडिया में अपना सांस्कृतिक विचार चलाया है। इसमें मार्क्स का आर्थिक चिंतन बहुत पीछे छूट गया।
पूंजीपति और सर्वहारा की बात बन्द हो गई। उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों की बात करना शुरू कर दिया। लेकिन वर्ग संघर्ष के चिंतन को बनाये रखा। ये कथित प्रगतिशील पत्रकार हिन्दू और मुसलमानों के संघर्ष की रचना करने लगे। इन्होंने यह मान लिया इनका वर्ग संघर्ष चलता रहेगा। आज ऐसे ही नेरेटिव चलाए जाते है। इनसे सावधान रहने, इनका प्रतिकार करने की आवश्यकता है।