संस्मरण अनुराग प्रकाश के
कल दोपहर को लंगूरों का झुंड मेरे क्रॉक कैम्प पर आ धमका । दिनभर खूब धमा चौकड़ी मचाई लंगूरों ने, अंधेरा होने से पहले सब लंगूर पेड़ो पर जाकर गायब हो गए।
अब वक्त था पीपल पर रहने वाले बिज़्ज़ू व गोह के पानी पर आने का। आसपास रहने वाले सियार अंधेरा होते ही हमारे पानी के छोटे तालाब पर आ जाते है अपनी प्यास बुझाने।
फिर कुछ देर बाद रोज की तरह सियारों का संगीत सुरु होता है, जिसमे हर सियार अपनी उपस्तिथि दर्शाने के लिए अपने अपने स्थान से ” हुआ हुआ ” कि जोरदार आवाज़ निकालता है। ये आवाज़ पूरे एरिया में गूंज जाती है।
इसी सब मे कब रात के 10 बज जाते है पता ही नही चलता । अब वक्त हो जाता है सोने का और मैं अपने कमरे में सोने चला जाता हूं ।
आधी रात को करीब 2 बजे अचानक हाथियों की जोरदार चिंगाड से मेरी आंख खुल जाती है। आवाज़ इतनी तेज मानो कमरे के पीछे ही हो हाथी। 10 से 15 मिनट तक वो आवाज़े रुक रुक कर आती है फिर शांत हो जाती है । कुछ देर बाद मैं फिर सो जाता हूं ।
सुबह उठ कर जब मैं अपने कैम्प के पीछे घूमने जाते हूं तो उस वक्त हवा में काफी ठंडक होती है । शरीर को बड़ा शुकून देती है ये सुबह की ठंडी हवा । कुछ आगे जाने पर जब हम एक तालाब पर पहुचते है , तो वहा दो बड़े मगरमच्छ पानी के किनारे पड़े होते है । पानी के तालाब के पास ही हमे हाथियों के पगमार्क भी मिल जाते है।
फसलो को बचाने वाले चौकीदार बताते है कि हाथी सामने ही जंगल मे है….. अभी कुछ देर पहले उनकी आवाज़े आई थी। जंगल किनारे हर दिन रोमांच से भरा होता है। व्यस्त जिंदगी से कभी 2-4 दिन निकाल कर आप लोग भी प्रकृति का आनंद ले सकते हैं।