जी के चक्रवर्ती
अभी पिछले कुछ महीनों पूर्व 22 फरवरी 2022, मंगलवार के दिन कुर्सी विधानसभा क्षेत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैली जिस मैदान में होना सुनिश्चित था वहां सोमवार के दिन इस क्षेत्र के किसानों ने रैली मैदान से 500 मीटर की दूरी पर सैकड़ों गाय, बैल, सांड जैसे आवारा पशुओं को छोड़ दिये ऐसे में आखिरकार यह प्रश्न उठता है कि यहां ग्रामीणों ने सैकड़ों की संख्या में आवारा पशुओं को क्यों छोड़ा?
दरअसल किसानों ने एक बार फिर से सरकार का ध्यान इस ओर खींचने के लिए कि यहां आवारा पशुओं को छोड़ा था, क्योंकि एक लम्बे समय से राजधानी से सटे इस जिले में नीलगाएं और आवारा पशु किसानों को लगातार दो तरफा नुकसान पहुंचा रहे हैं, एक तरफ तो यह छुट्टा जानवर यहां के खेतों में खड़ी फसलों को तबाह कर रहे हैं तो दूसरी ओर उन्हें खेतों में घुसने से रोकने के लिए तारबंदी पर भी पैसा खर्च करने के बावजूद फसलों के बचाने के लाले पड़े हुए हैं।
ऐसे में अभी 22 सितम्बर वर्ष 2022 में एक शासनादेश द्वारा किसानों को खेतों में कटीले तार ब्लेड दार तारो से खेतों को घेरने पर रोक लगा दिए जाने पर इस क्षेत्र के सभी किसानों में सरकार के प्रति असंतोष व्याप्त हैं।
राजधानी से सटे मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बाराबंकी जिले में आवारा पशुएं किसानों के लिए बहुत बड़ी समस्या बन चुके हैं।
जहां एक तरफ किसान खाद जुताई और पानी के दामों में हुई बढ़ोतरी से पहले ही त्रस्त थे और वहीं यहां के कच्चे-पक्के रास्तों और यहां से होकर निकलने वाली हाईवे पर आवारा पशुओं का दिखना तो आम बात है। यहां के सड़कों पर से गुजरते हुए आप खेतों के किनारे रंगबिरंगी धोतियों, रस्सियों, और कंटीले तारों की बाड़, और रात में पहरा देने के लिए बने मचानों को बखूबी देख सकते हैं।
सर्दी की ठिठुरन भरी रातों में जब हम और आप अपने अपने घरों में रजाइयों में दुबके रहने के लिए मजबूर होते हैं उस वक्त किसान अपने – अपने खेतों में बने मचानों पर बैठे नीलगाय और आवारा पशुओं से अपने फसलों की रक्षा करने के लिए पूरी रात जग कर पहरा देते रहते हैं और अकसर उन्हें अपने मचानों या खटिया से उठकर रात के अंधेरे में जानवरों के पीछे भागना पड़ता है।
राजधानी लखनऊ से लगभग 25 से 30 किलोमीटर दूर अपने खेतों में पहरा देते 45 साल के हरेंद्र सिंह पूर्व प्रधान “दियानत नगर” का दिल खेती से उकता गया है। वे कहते हैं, “जानवर इस खेत से उस खेत में फसले चरा करते हैं। गन्ना बोया नहीं, गेहूं है नही और धान की फसल की अग्गा खेती किया था लेकिन सितम्बर के अंतिम सप्ताह में पानी बरसते रहने से कटे धान बारिश पड़ने से सड़ गए हैं। जिन किसानों के धान की फसल बची हुई भी थी उन फैसलों के आधे से अधिक हिस्से की फसल जानवर चर गए हैं।
यहां ध्यान देने योग्य बात है की उत्तर प्रदेश राज्य में योगी सरकार के पशुधन मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने वर्ष 2019 में किसानों को इस समस्या से छुटकारा दिलाए जाने के लिए “अस्थाई गोवंश आश्रय स्थलो की स्थापना” कर इन आवारा पशुओं को इसमें रखे जाने का उल्लेख किया था, लेकिन यहां यह प्रश्न उठता है कि यह तो उन आवारा घुमंतू पशुओं को फौरी तौर पर आप चारागाह में रोक लेंगे, लेकिन नीलगायों का क्या होगा? जब आज तक चरागाहें ही ठीक ढंग से नही बन पाई है और यदि कुछ जगहों पर बने भी हैं तो वे आज तक अधूरे पड़े हुए हैं वहीं जब वर्ष 2021 में इससे सम्बन्धित किसी नीति को बनाए जाने के विषय पर बात की गई तो उनका रुख इस प्रकार की किसी भी योजना से बिल्कुल स्पष्ट रूप से मना कर दिया।
वर्तमान समय में विशेष कर उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में आवारा पशुओं और नीलगायों के प्रकोप से यहां के किसान बुरी तरह से त्रस्त होने के बावजूद आज तक प्रशासन की ओर से कोई समुचित कार्यवाही कर कोई स्थाई व्यवस्था नही बनाई गई है, एसे में गरीब किसान के पास आत्महत्या के अलावा कोई दूसरा उपाय शेष नही बचता है। अब कोई यह बताए कि आखिरकार किसान क्या करें? और किधर जाए?