गौतम चक्रवर्ती
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है यहां पर 29 भाषाएं और लगभग 1650 बोलियां बोली जाती हैं। इतनी बड़ी जातीय व्यवस्था किसी अन्य देश में आपको देखने को नहीं मिलेगी।
देश के संविधान ने लोगों को अभियक्ति की आजादी दी है और इसके लिए हमे सोशल मीडिया जैसा एक मजबूत स्तंभ मिला है जिससे समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति की भी अभिव्यक्ति की आजादी को और भी मजबूत करता है। संख्या की दृष्टिकोण से देखें तो आज हमारे देश में लगभग 46 करोड़ से अधिक लोग सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं और अब लोग सोशल मीडिया पर औसतन 2 घंटा 27 मिनट प्रतिदिन व्यतीत कर रहे हैं जिसके कारण सोशल मीडिया का दुरुपयोग आए दिन चर्चा का विषय बनता रहता है।
सोशल मीडिया के माध्यम से हम आसानी से जानकारी और समाचार प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी सामाजिक कारणों के विषय में जागरूकता पैदा करने के लिए निश्चित रूप से सोशल मीडिया एक सशक्त माध्यम है। निश्चित रूप से इसका उपयोग हमारे साथ ही साथ सम्पूर्ण विश्व को एक संचार व्यवस्था के अंतर्गत आपस में जोड़ने का काम तो करता ही है साथ ही अनेक लोगों की आवाज बन कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से भी जोड़ने का काम करता है।
इसके माध्यम से समाज के लोग रोजमर्रे की जरूरी सूचनाएं प्राप्त तो करते ही हैं साथ ही सबसे बड़ी बात यह है कि इससे आम नागरिकों के मध्य सूचनाओं का आदान चुटकी बजाते ही प्रसारित हो जाता हैं वैसे देखा जाए तो इसके कई सकारात्मक पहलुओं के साथ- साथ नकारात्मक पहलूयें भी हैं जो वर्तमान समय में एक जटिल समस्या बन कर उभरा है, क्योंकि कई स्तरों पर आजकल इसका प्रयोग सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने और सकारात्मक सोच के स्थान पर समाज के लोगों को आपस में बांटने वाली सोचों को बढ़ावा देने का ही काम किया है, इस सबके अतिरिक्त ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर लोगों में परोसने और आधी- अधूरी जानकारियों के अतिरिक देश की आजादी के सूत्रधार रहे क्रांतिकारियों और समाज के अगुवा नेताओं के विषय में भी गलत जानकारीयां बड़े स्तर पर साझा करने जैसी हरकतों के कारण समाज में विद्रूप स्थितियां पैदा करने का कार्य ही अधिक होता है। दरअसल, कुछ लोगों या उनके समूह को अपने विद्वेष से भरे और उन्हे आंदोलित करने वाले विचारों को प्रसारित करने का एक सहज मंच प्रदान कर रहा है।
दरअसल सही बात की जाए तो आज सोशल मीडिया एक जटिल समस्या के रूप में उभर कर सामने आने लगा है यदि हम इसके कारणों की बात करें तो सोशल मीडिया को ठोस तरीके से विनियमित करने का कोई कानून हमारे देश में अभी तक नहीं बन पाया है कि जिससे इस पूर्णतः नियंत्रित किया जा सके। हमारे देश में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, वर्ष 2008 और सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) वर्ष 2021 जैसे कुछ एक कानून अवश्य बनाए गए हैं लेकिन यह कानून पूर्णतः सोशल मीडिया पर नियंत्रण करने का काम नहीं कर पा रही हैं कि जिससे आने वाले भविष्य में सोशल मीडिया जैसे मंच समाज के लिए खतरा न बन।जाए।
आज हमे सोशल मीडिया में अक्सर ट्रोल शब्द सुनाई पड़ता है वैसे आपको बता दें कि अंग्रेजी भाषा में ‘ट्रोल’ शब्द संज्ञा और क्रिया दोनों ही तरह से प्रयोग में लाया जाता है, परंतु साहित्यिक व्याकरण से अलग हट कर सोशल मीडिया के लिए ट्रोल शब्द का अर्थ ‘अपमान’ से जुड़ा है। वैसे ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो स्केंडिनेविया (स्केंडिनेविया प्रायद्वीप में उत्तरी यूरोप के आने वाले देशों को स्कैंडिनेवियाई देश कहते हैं इनमें नॉर्वे, स्वीडन व डेनमार्क आते हैं।) की लोक कथाओं में एक भयानक और बदसूरत जीव का वर्णन मिलता है जिससे डरकर राहगीर अपना रास्ता भटक जाया करते थे। इस विचित्र जीव का नाम ‘ट्रोल’ था। किसी पर अश्लील या भद्दी टिप्पणी करना ट्रोलिंग की सीमा में आता है।
वैसे समाज के लोगों को इसके सकारात्मक नकारात्मक हानियों और लाभों के विषय में जागरूक अवश्य किया जाना चाहिए। वहीं सोशल मीडिया को यदि विनियमित किया जाता है तो इसके साथ यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे अभिव्यक्ति की आजादी बाधित न हो और इसके साथ ही सत्ता को भी व्यक्ति पर नियंत्रण के निरंकुश और असीमित अधिकार न मिल जाएं।
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बहुत उपयोगी जानकारी