झील होती आंखें
धीर, गंभीर, झील होती आंखें
विरह की बेला में, हैं रोती आंखे
गहराई, नाप नहीं सकते कभी
तन मन सब, डुबो देती हैं आखें
प्रीत,प्रेम,सहज बोल देती हैं आखें
राज के परदे , खोल देती हैं आंखे
आंखों में, बात करती है आंखें
क्रोध में पीली लाल, होती हैं आंखे
मोहित करतीं है, मोह भंग करतीं
अजीब सी होतीं, बदलती रंग हैं आंखें
मुड़ मुड़ कर देखतीं, कभी तरेरती आंखे
ब्रज, सामने न होकर भी,मन को घेरती आंखे
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र