लखनऊ। संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से संत गाड्गेजी महाराज प्रेक्षागृह, संगीत नाटक अकादमी परिसर लखनऊ में संस्था यूनिक विकास संस्थान द्वारा सेमिनार एवं नाटक मदारीपुर जंक्शन का मंचन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के निदेशक प्रो0 डॉ0 शोभित कुमार नाहर एवं पूर्व आई ए एस अतिरिक्त मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह तथा सेवा भारती अवध प्रान्त के अध्यक्ष रबीन्द्र सिंह गंगवार ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
बालेंदु द्विवेदी के उपन्यास पर आधारित नाटक मदारीपुर जंक्शन का निर्देशन चंद्रभाष सिंह द्वारा एवं प्रस्तुतीकरण नाट्य संस्था “विजय बेला एक कदम खुशियों की ओर” द्वारा किया गया जिसे मुख्य अतिथियों एवं गणमान्य दर्शकों द्वारा खूब सराहा गया।
नाटक अपने ग्रामीण कलेवर में कथा प्रवाह के साथ विविध जाति- धर्म के ठेकेदारों की चुटकी लेता और उन पर कटाक्ष करता है। नाटक में मदारीपुर गांव ने संपूर्ण भारत की राजनीति और जाति आरक्षण पर सवाल उठाएं गांव में एक और जहां मदारी मिजाज क्षेत्र का बोलबाला है तो दूसरी ओर समस्त विद्रूपताओं का सम्मेलन स्थल मदारीपुर जंक्शन सामाजिक विसंगतियों विचित्रताओं का जंक्शन है गांव में पनप रही उच्च नीच की खाई को पूरी ईमानदारी के साथ रोचक भाषा शैली में मंचित किया गया है।
नाटक में जहां एक ओर परंपराओं का ढकोसला सर पर उठाए पतन की और उच्च कहा जाने वाला तबका है, तो दूसरी ओर उच-नीच की बेडियो को तोड़ता कथित मकजोर वर्ग। मदारीपुर गांव उत्तर प्रदेश के नक्शे में ढूंढे तो यह शायद आपको कही नही मिलेगा लेकिन निश्चित रूप से यहा हजारों लाखों गांव से ली गयी विश्वसनीय छवियों से बना एक बड़ा गांव है।
मदारीपुर में रहने वाले छोटे बड़े लोग अपने गांव को अपनी संपूर्ण दुनिया मानते हैं। मदारीपुर में सभी बिरादरी के लोग पाए जाते हैं फिर भी गांव में ब्राह्मणों का दबदबा है, जिनके निवास स्थान को सभी लोग अपनी देसी भाषा में पट्टी कहते हैं। पट्टी के लोग एक से बढ़कर एक तीरंदाज मगजमार, हेकड़ीबाज है । पट्टियाँ कई उप पट्टियों में बटी हुई है । चवन्नी पट्टी , अठन्नी पट्टी , दुवन्नी पट्टी , भुरकुस पट्टी और न जाने क्या क्या संभवत किसी जमाने में यह बंटवारा भूमि पर उनकी हैसियत के मुताबिक किया गया होगा , पर अब उनके लिए यह केवल एक दूसरे को नीचा दिखाने का माध्यम भर बनकर रह गया है अठन्नी वाले अपने को श्रेष्ठ बताते हैं और चवन्नी वाले अपने को । बाकी पट्टी वाले अवसर के हिसाब से दोनों में से किसी के साथ चिपक कर संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं । पट्टियों के चारों ओर झोपड़िया है जिनमें तथाकथित निचली जातियों के पिछड़े लोग रहते हैं । जिन्हें पट्टी के लोग अपने हिसाब से चलाते है और उनका शोषण करते हैं ।
गांव में चवन्नी पट्टी के छेदी बाबू और अठन्नी पट्टी के बैरागी बाबू का इतना जलवा है उनके सामने निचली जाति के लोग सर तक नहीं उठा सकते । छेदी बाबू और बैरागी बाबू एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं , यहां तक कि किसी की जान भी ले सकते हैं । जब गांव में प्रधानी का माहौल आता है तो इन दोनों में कलह मच जाती है । प्रधानी का चुनाव जीतने के लिए दोनों अपने – अपने दांव चलते हैं , और एक दूसरे को हराने के लिए वोट काटने के लिए अन्य प्रत्याशी भी खड़े करते हैं । इधर निचली जाति के लोगों में अपने अधिकारों के लिए धीरे – धीरे जागरूकता बढ़ रही है । जागरूकता और समझ बढ़ने के साथ ही निचली जाति के लोग भी अपना एक प्रत्याशी मैदान पर उतारते हैं । निचली जाति के प्रत्याशी को प्रधानी का चुनाव जीतते देख उसे रास्ते से हटाने के लिए षड्यंत्र करके उसे मरवा देते हैं । इतना होने के बाद भी निचली जाति के लोग हार नही मानते और मृतक की पत्नी मेघिया का प्रधानी का चुनाव लड़वाते हैं , और अंततः मेघिया प्रधानी जीत जाती है । अंत में नाटक यह सीख देकर जाता है कि हमें अपने अधिकारों के लिए स्वयं लड़ना होगा, दूसरे पर निर्भर रहकर हम कभी अपना भला नही कर सकते ।
नाटक में सभी रंग उपस्थित है , नाताक कभी हँसाता है तो कभी रुलाता है तो कभी सोचने पर मजबूर करता है । नाटक का आखिरी दृश्य बहुत कुछ कहा जाता है। मेघिया प्रधान बन चुकी है , और वह गांव के विकास के लिए काम कर रही है । उसके बिरादरी के लोग उसे बदले की भावना से काम करने के लिए प्रेरित करते हैं , लेकिन मेघिया जवाब देती है कि मैं प्रधान पूरे गांव की हूं सिर्फ अपनी जाति की नही , चाहे मुझे लोगों ने वोट दिया हो या चाहे न दिया हो पर मैं पूरे गांव का विकास करूंगी , और अगर मैं दूसरे लोगों की तरह सोचने लगूंगी तो फिर मुझमें और उनमें कोई फर्क नही रह जाएगा । मेघिया की बातें सुनकर बड़की बिरादरी के छेदी बाबू को एहसास होता है कि हम सदियों से पंडित , ठाकुर , बनिया , हरिजन में उलझे रहे और इस बात को भूल गए कि इश्वर ने तो केवल एक ही जाती बनाई है , और वह है मनुष्य और हम मनुष्यता को ही भूल गए। नाटक अंत में मनुष्यता पढ़ाकर खत्म होता है ।
नाटक में जूही कुमारी,निहारिका कश्यप, नीलम श्रीवास्तव,अनामिका रावत,प्रियांशी मौर्या, शिवानी गुप्ता,कंचन शर्मा, प्रणव, सुन्दरम, अजय कुमार,बृजेश कुमार, अग्नि सिंह, आयुष,अभय, आशीष , आदर्श, विपिन,हरप्रीत, प्रियांशु, अंश शर्मा, आशुतोष, पीयूष राय, रामचरण, राम कृष्ण, कोमल प्रजापति, श्रेयांश यादव, रवि विश्वकर्मा, सूरज एवं शुभम कुमार ने अपने अभिनय से सभी दर्शकों का मन मोह लिया।