महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष:
लोधेश्वर महादेवा में स्थापित द्वापर युगीय शिवलिंग पर कांवर चढ़ाने की परंपरा महा बली भीम से जुड़ी हुई है। महाभारत काल से चली आ रही इस परंपरा का निर्वहन करते हुए आज भी यहां लाखों की संख्या में शिव भक्त सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा तय कर कावड़ चढ़ाने आते हैं कांवर लेकर आने के ही कारण इन्हें कांवरिया कहा जाता है।
उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के रामनगर स्थित सुप्रसिद्ध स्थल लोधेश्वर महादेवा में यूं तो वर्ष में कई मेले लगते हैं लेकिन प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि पर्व पर लगने वाला कांवरिया मेला पूरे देश में प्रसिद्ध है महाशिवरात्रि पर्व से 10 दिन पूर्व से ही यहां पूरे उत्तर भारत के कोने कोने से हिंदू धर्म के मानने वाले लाखों-करोड़ों की संख्या में शिव भक्त कावड़ चढ़ाने एवं जलाभिषेक कर शिव अर्चन करने आते हैं
जनश्रुति के मुताबिक कौरवों द्वारा बनवाए गए लाक्षागृह से बच निकलने के बाद अपने अज्ञातवास के समय पांडवो जब इस क्षेत्र में थे तो उनके गरु ऋषि याज्ञवल्क्य संकट से मुक्ति पाने के लिए रूद्र महायज्ञ कराने की प्रेरणा दी महा यज्ञ अनुष्ठान की सफलता के लिए उन्होंने भगवान की शिव स्थापना का प्रस्ताव रखा। जिसे स्वीकार करते हुए पांडवों की ओर से शिवलिंग लाने की जिम्मेदारी महाबली भीम को सौंपी गई।
बताते हैं कि महाबली भीम पर्वतीय अंचलों से जब शिवलिंग लेकर वापस आ रहे थे तो उन्हें रास्ते में व्यवधान उत्पन्न हुआ जिस पर उन्होंने उसी प्रस्तर भार का दूसरा शिवलिंग खोज कर बहंगी, (कांवर) बनाकर उन्हें यज्ञ स्थल तक लाए थे। यज्ञ में मौजूद ऋषियो ने जब एक ही समान दो शिवलिंगों को देखा तो एक को यज्ञ स्थल पर ही ( कुलाछत्र नामक स्थान पर)धर्मराज युधिष्ठिर के हाथों तथा दूसरा यहां से कुछ दूरी पर स्थित किंतूर नामक गांव में माता कुंती के द्वारा स्थापित करवा दिया। बताते हैं कि कुछ समय बाद घाघरा में भयंकर बाढ़ आई और महादेवा के इस क्षेत्र में बालू और मिट्टी के ढेर लग गए। इसके बाद घाघरा नदी ( अब सरयू नदी) धीरे-धीरे उत्तर की
ओर चली गई तो लोगों ने इस क्षेत्र में रहना और खेती करना आरंभ कर दिया। कहा जाता है कि लोथे राम अवस्थी नामक एक कृषक जो तहसील रामसनेहीघाट के ग्राम खजुरिया के रहने वाले थे अपने खेत को सीखने के लिए गड्डा खोद रहे थे अचानक उनका फावड़ा पत्थर से टकराया और फावड़े में खून लग गया। खून लगा देख वह घबरा गया, आसपास की मिट्टी हटाई तो शिवलिंग के दर्शन हुए उन्होंने उसका स्थान परिवर्तित करने का काफी प्रयास किया लेकिन जब वह उसे हिला तक ना सके। तो उन्होंने घास फूस की कुटिया बनाकर रहना और पूजन अर्चन करना प्रारंभ कर दिया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दे आशीर्वाद दिया कि आज से उनका नाम उनसे पहले (भगवान शंकर) से पहले लिया जाएगा तभी से यह शिवलिंग लोधेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हो गया। बाद में बाबा बेनी सागर जी महाराज जो सिलौटा के रहने वाले थे उनके द्वारा यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया।
शिव के जयकारों से गूंज रहा लोधेश्वर महादेवा:
लोधेश्वर धाम में जलाभिषेक कर पूजा अर्चना करने वाले शिव भक्तों का तांता लगा हुआ। लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आवागमन जारी है। जगह-जगह लोगों के द्वारा शिव भक्तों के लिए भंडारे चलाये जा रहे हैं। ब्लॉक परिसर में खण्ड विकास अधिकारी अमित त्रिपाठी प्रधान सहायक विनोद कुमार मिश्रा एडीओ पंचायत राम आसरे के द्वारा कांवरियों के लिए विशाल भंडारा शुरू किया गया जिसका शुभारंभ ब्लॉक प्रमुख संजय तिवारी ने प्रसाद वितरण करके किया इस भंडारे में हजारों की संख्या में प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं।
महाशिवरात्रि पर्व पर श्रद्धालुओं ने किये भगवान् शिव की सबसे ऊंची प्रतिमा के दर्शन
महाशिवरात्रि पर्व पर श्रद्धालुओं ने भगवान् शिव की सबसे ऊंची प्रतिमा के दर्शन किये। गुजरात में नर्मदा नदी पर सरदार वल्लभ भाई पटेल की विशाल प्रतिमा के अनावरण के बाद अब राजस्थान के नाथद्वारा में भगवान शिव की 351 फीट ऊंची प्रतिमा बन रही है। ये दुनिया में अपनी तरह की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा साबित होगी।
बता दें कि उदयपुर से 50 किलोमीटर की दूरी पर श्रीनाथद्वारा के गणेश टेकरी में सीमेंट कंकरीट से बनाई गयी है विश्व की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा का 85 प्रतिशत निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है।