भारत में लुप्तप्राय: हो चुके चीतों को दोबारा से संरक्षित करने के प्रयास ने वन्यजीव के प्रेम को एक बार फिर से उत्साहित किया। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक सकारात्मक पहल की अच्छी शुरुआत से नामीबिया से चीते भारत लाये गए जिन्हें मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में स्वछंद विचरण के लिए छोड़ा गया। जिसे देश ही नहीं विदेश से भी सराहा गया। उद्देश्य यह भी था कि उनकी नस्ल को वहां विकसित किया जाय, लेकिन हाल के दिनों वहां एक के बाद एक कई चीतों की मौत हो गई है।
यह तथ्य वन्य जीव संरक्षण के समर्थकों के लिए चिंता का विषय बन गया। कहा जा रहा है कि चीतों को जो रेडियो कालर लगाया गया, उससे उनके भीतर संक्रमण फैल गया और यही उनकी मौत का कारण था ? हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस तथ्य का अभी अध्ययन किया जा रहा है लेकिन छह चीतों में से रेडियो कालर को स्वास्थ्य परीक्षण के उद्देश्य से निकाल दिया गया है।
कई वन्यजीवों के शरीर की बनावट काफी नाजुक होती है और जलवायु के परिवर्तन का उस पर असर पड़ता है। किसी पशु पर नजर रखने के लिए कोई यंत्र उसके शरीर की संरचना के अनुकूल या प्रतिकूल भी साबित हो सकता है।
ऐसे में यह कहना कई बार मुश्किल हो जाता है कि इस तरह के यंत्र किस पशु के लिए कितना अनुकूल साबित होंगे। ऐसा भी होता रहा है कि चीते या बाघ जैसे संरक्षित पशु प्राकृतिक कारणों से बीमार हो जाते हैं और समय पर चिकित्सा न मिल पाने की वजह से उनकी मौत हो जाती है।
कूनो में लाए गए चीते निश्चित रूप से देश में पारिस्थितिकी संतुलन की दिशा में एक ठोस पहल है लेकिन इसके साथ ही चीतों के संरक्षण का भी विशेष रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए। विदेशों से लाए गए चीतों में से कुछ के लिए शायद यहां के वातावरण से तालमेल बिठा पाना कठिन हो रहा है और इसीलिए उनके जीवन के सामने कई तरह की कठिनाइयां खड़ी हो रही हैं। ऐसे में इस बात पर गंभीरता के साथ विचार किया जाना चाहिए कि इस समस्या का हल क्या है।