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    मोदी की विदेश नीति

    ShagunBy ShagunNovember 2, 2021 ब्लॉग No Comments5 Mins Read
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    डॉ दिलीप अग्निहोत्री

    नरेंद्र मोदी देश में लोकप्रियता के शिखर पर कायम है। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनका करिश्मा दिखाई देता है। विदेश यात्रा और वैश्विक संगठनों में वह अत्यंत प्रभावी रूप में भारत का प्रतिनिधित्व करते है। अक्सर ऐसे वैश्विक सम्मेलन उनके ही इर्द गिर्द सिमट जाते है। उनके विचारों को बहुत महत्व दिया जाता है।

    साझा घोषणा पत्र में उनके प्रस्ताव प्रमुखता से शामिल होते है। वैटिकन सिटी और इटली की उनकी यात्रा से एक बार फिर यह प्रमाणित हुआ। भारत में अपने को सेक्यूलर बताने वालों को मोदी की विदेश नीति पर गौर करना चाहिए। वह अरब जगत से लेकर वेंटिकन सिटी तक समान रूप में सम्मानित है। वेंटिकटन सिटी में पोप से उनकी मुलाकात शानदार रही। पोप उनसे मिलकर भावुक और प्रसन्न हुए। रोमन कैथोलिक धर्म गुरु पोप फ्रांसिस से मुलाकात सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई।

    वार्ता के लिए निर्धारित समय बीस मिनट की बजाय मुलाकात करीब एक घंटा चली। यह एक निजी मुलाकात थी, जिसमें प्रधानमंत्री और अपने अपने दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियां पर विचारों का आदान प्रदान किया। मोदी ने उन्हें भारत आने का निमंत्रण दिया। जिसे शीर्ष इसे धर्मगुरु ने स्वीकार किया। पहले यह कहा जा रहा था कि अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में भारत के रिश्ते मजबूत नहीं रहेंगे। लेकिन मोदी उनसे जब वाशिंगटन में मिले, तो माहौल बदल गया। इटली में भी ऐसा लगा जैसे नरेंद्र मोदी और जो बाइडेन पुराने दोस्त है। दोनों ही भारत अमेरिका संबन्ध मजबूत बनाए रखने के लिए कटिबद्ध है। यहां द्विपक्षीय वार्ताओं के अलावा जी ट्वेंटी सम्मेलन में नरेंद्र मोदी की सहभागिता महत्वपूर्ण रही। जी ट्वेंटी विश्व का सर्वाधिक मजबूत वैश्विक संगठन माना जाता है।

    वैश्विक मामलों में ऐसे संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इन संगठनों में भी पांच छह देश अधिक शक्तिशाली हैं। इसी के अनुरूप सम्मेलनों में इन्हें स्थान मिलता था। भारत विकसित देशों में शामिल नहीं है। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे सम्मेलनों में भारत की गरिमा को बढ़ाया है। इस बार जी ट्वेंटी के शिखर सम्मेलन में नरेंद्र मोदी के विचारों को सबसे अधिक प्राथमिकता दी गई।

    मोदी ने वैश्विक समस्याओं को टालते रहने की नीति को गलत बताया था। अब तक जी ट्वेंटी में कुल मिलाकर यही चल रहा था। विकसित देशों के अपने निहित स्वार्थ थे। वह उनसे बाहर नहीं निकलना चाहते थे। भविष्य की चिंता को दरकिनार कर वर्तमान को ही देखा जा रहा था। वैसे यही पश्चिमी देशों की उपभोगवादी सभ्यता है। इसके चलते यह संगठन भविष्य के प्रति लापरवाह रहा है। मोदी ने यह नजरिया बदल दिया। गरीब देशों की सहायता पर इन देशों ने सहमति जताई है। विकासशील देशों की जरूरतों पर सबसे पहले ध्यान देने की आवश्यकता है। विश्व के सामने आतंकवाद और पर्यावरण संरक्षण सबसे बड़ा मुद्दा है। इसके साथ विकसित देशों को विकासशील देशों की जरूरतों को ध्यान में रखना होगा।

    सम्मेलन से इतर ब्रिक्स नेताओं की एक अनौपचारिक बैठक में मोदी ने कहा कि इस समूह की अगुवाई विकासशील देश द्वारा की जा रही है। यह एक अच्छा अवसर है, विकासशील देशों की प्राथमिकताओं को भी जी ट्वेंटी के एजेंडा में प्राथमिकता मिलेगी।वैश्वीकरण और बहुपक्षवाद में सुधार के लिए भारत प्रतिबद्धता है। संयुक्त राष्ट्र के आतंकवादरोधी नेटवर्क को मजबूत बनाने का भी प्रयास होना चाहिए। तभी विश्व में शांति सौहार्द कायम होगा। चीन एक खलनायक की तरह है। उसका जितना विरोध होना चाहिए, वह नहीं होता। यही कारण है कि वह समुद्री सीमा में विस्तार कर रहा है। आतंकवाद का समर्थन करता है। यह समस्या बढ़ रही है। इन सबकी तरफ सम्मेलन ने ध्यान दिया।

    नरेंद्र मोदी ने घरेलू मोर्चे पर कोरोना महामारी से निपटने का उल्लेख किया। अन्य देशों को उसकी ओर से दी गई सहायता की भी जानकारी दी। शिखर वार्ता का पहला सत्र विश्व अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य पर केंद्रित था। इसमें उन्हों कहा कि भारत अगले वर्ष के अंत तक पांच अरब कोरोना वैक्सीन का उत्पादन करेगा। जिससे घरेलू मांग को पूरा करने के साथ ही पूरी दुनिया में महामारी से निपटने में मदद मिलेगी। भारत ने आशा व्यक्त की है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत में विकसित को-वैक्सीन को आपातकालीन प्रयोग की शीघ्र अनुमति देगा। विभिन्न देशों द्वारा एक दूसरे के टीकाकरण प्रमाण पत्रों को मान्यता देने पर जोर दिया।

    प्रधानमंत्री ने जी ट्वेंटी देशों को अर्थव्यवस्था की बहाली तथा आपूर्ति श्रृंखला के संबंध में भारत को साझीदार बनाने का आह्वान किया। कहा कि महामारी की चुनौतियों का सामना करते हुए भारत में आर्थिक सुधारों को जारी रखा तथा व्यापार निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाया। भारत का सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र महामारी के दुष्परिणामों से अछूता रहा।

    शिखर वार्ता में न्यूनतम पन्द्रह प्रतिशत कॉरपोरेटर टैक्स लगाने को औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया। यह भारत के लिए संतोष का विषय है। न्यूनतम कॉर्पोरेट टैक्स का सुझाव नरेन्द्र मोदी ने सात वर्ष पहले दिया था। इसके द्वारा सेफ हैवंस यानी दूरदराज के देशों में धन जमा कर चोरी करने तथा धन शोधन जैसी अवैध गतिविधियों पर नियंत्रण हासिल करने के लिए किया जा सकेगा।नरेंद्र मोदी ने शिखर वार्ता के इधर फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों और सिंगापुर के प्रधानमंत्री से द्विपक्षीय विचार विमर्श किया। हिंद प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय संघ के देशों की सक्रियता का स्वागत किया। महामारी की दूसरी लहर के दौरान सिंगापुर से उपलब्ध कराई गई चिकित्सा सामग्री के लिए आभार व्यक्त किया।

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