स्वाती सिंह
किसी भी अभियान की सफलता उसको चलाने वाले की मंशा के ऊपर निर्भर करता है। यह भी जरूरी नहीं कि मंशा ठीक हो तो वह सफल ही हो जाय, लेकिन पहली प्राथमिकता तो मंशा ठीक होने की ही होती है। नदी, तालाबों के साथ ही स्वच्छता अभियान को वर्तमान में उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता अभियान शुरू किया तो बहुतेरे विपक्षी इसकी खिल्ली उड़ाने में लगे रहे। आज स्थिति बदल चुकी है। हर व्यक्ति चाय पीने के लिए कुल्हड़ फेंकने के लिए डस्टबिन ढुढता है। यह बदलते मनोभाव का ही तो प्रतिक है। समझ में नहीं आया और सबकुछ बदल गया।
यही स्थिति नमामि गंगे परियोजना की है। गंगा को साफ करने के नाम पर बहुत सरकारें आयी और गयीं। करोड़ों बजट खर्च हुए लेकिन गंगा की स्थिति नहीं सुधरती थी। आज मां गंगा पूरे उत्तर प्रदेश में गंगा साफ हो चली है। यह मैं नहीं कह रही। यह आंकड़े कह रहे हैं, कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गंगा को साफ करने के लिए मन से काम किया और प्रधानमंत्री के सपनों को साकार करने के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर परियोजनाओं को पूरा किया, जिसका परिणाम है कि आज यूपी में 20 स्थानों पर गंगाजल का पीएच (पानी कितना अम्लीय है) स्नान के लिए पानी की गुणवत्ता के मानदंडों को पूरा करता है। यहां गंगा नदी 1000 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में बहती है। उत्तर प्रदेश में 2014 से अब तक पूरी हुई 23 परियोजनाओं के द्वारा 460 एमएलडी से अधिक सीवेज को गंगा में प्रवाहित होने से रोका जा रहा है।
नमामि गंगे मिशन के तहत सितंबर 2022 से दिसंबर 2022 के बीच झांसी, कानपुर, उन्नाव, शुक्लागंज, सुल्तानपुर, बुढाना, जौनपुर और बागपत में 2304.55 करोड़ रुपये की लागत से लगभग 333 एमएलडी ( दुरुस्त किये गए 130 एमएलडी सहित) की अतिरिक्त उपचार क्षमता भी बनाई जाएगी। उम्मीद जताई गई कि दिसंबर 2022 तक पूरे गंगा बेसिन में प्रति दिन 1336 मिलियन लीटर की उपचार क्षमता का निर्माण किया जाएगा। अकेले वर्ष 2022 में कुल सीवेज शोधन क्षमता निर्माण 2109 एमएलडी होगा, जो दर्शाता है कि नमामि गंगे के तहत युद्ध स्तर पर कार्य किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में 20 स्थानों पर 2014 से 2022 की अवधि के दौरान नदी के पानी की गुणवत्ता के आकलन से पता चला है कि घुलित ऑक्सीजन (डीओ), बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और फेकल कोलीफॉर्म (एफसी) जैसे मापदंडों में काफी सुधार हुआ है। जांच में पाया गया कि 20 स्थानों पर पीएच (पानी कितना अम्लीय है) स्नान के लिए पानी की गुणवत्ता के मानदंडों को पूरा करता है। जबकि डीओ, बीओडी और एफसी में 20 में से क्रमशः 16, 14 और 18 स्थानों पर सुधार हुआ है। कन्नौज से वाराणसी तक नदी के प्रदूषित खंड की बात करें तो, बीओडी में वर्ष 2015 में 3.8-16.9 मिलीग्राम / एल के मुकाबले 2022 में 2.5-4.3 मिलीग्राम / एल तक का बेहतरीन सुधार दर्ज किया गया है। बीओडी जितना कम होगा, पानी की गुणवत्ता उतनी ही बेहतर होगी।
उत्तर प्रदेश के शहरों में कुछ प्रमुख उपलब्धियों में संगम में प्रदूषण को कम करने के लिए अर्ध कुंभ 2019 से पहले मिशन मोड पर प्रयागराज में पहले से स्वीकृत परियोजनाओं को पूरा करना शामिल है। अर्धकुंभ में 20 करोड़ से अधिक लोगों ने गंगा नदी में डुबकी लगाकर पाया कि पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। वाराणसी में भी, दीनापुर में 140 एमएलडी एसटीपी की लंबे समय से लंबित परियोजना को समयबद्ध तरीके से पूरा किया जा चुका है। रमना में 50 एमएलडी एसटीपी भी हाइब्रिड एन्युटी मोड के तहत रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया था और अब इसे चालू किया जा चुका है। कानपुर में, 80 एमएलडी अनुपचारित सीवेज को गंगा नदी में ले जाने वाले कुख्यात सीसामऊ नाले को टैप किया जा चुका है और इसे एनएमसीजी द्वारा उचित योजना और निष्पादन के माध्यम से मौजूदा एसटीपी में जोड़ दिया गया है।
नमामि गंगे मिशन के बेहतरीन प्रयास गंगा की डॉल्फ़िन को उन हिस्सों में वापस लाने में सहायता कर रहे हैं जहाँ से वे गायब हो गई थीं। डॉल्फ़िन अब उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में प्रजनन करते देखी जाती हैं, खासकर बृजघाट और नरोरा, कानपुर, मिर्जापुर और वाराणसी के बीच। किशोरों की बीच नदी संरक्षण के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता एक स्वच्छ नदी के संकेतक है, जिसमें जलीय प्रजातियां गंगा में अपनी ऐतिहासिक वितरण सीमा को पुनः प्राप्त करने की कोशिश कर रही हैं। उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा डॉल्फिन की कुल आबादी लगभग 600 होने का अनुमान है।
नमामि गंगे कार्यक्रम 2015 में एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाकर गंगा नदी को फिर से जीवंत करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। स्वच्छ गंगा मिशन को देखने के तरीके में आमूलचूल परिवर्तन लाने के लिए नीतिगत निर्णय लिए गए। गंगा नदी में बहने वाले नालों को टैप करके सीवेज के अवरोधन और डायवर्जन पर ध्यान केंद्रित किया गया था। पुनर्वास और नवनिर्मित सीवरेज बुनियादी ढांचे दोनों के लिए संचालन और रखरखाव की अवधि को 15 वर्ष तक बढ़ा दिया गया है। भारत में जल क्षेत्र के इतिहास में एक वाटरशेड हाइब्रिड एन्युटी मोड और वन-सिटी-वन-ऑपरेटर के तहत एसटीपी का निर्माण किया जा रहा है ताकि प्रदर्शन और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके। जबकि एचएएम के तहत भुगतान संपत्ति के प्रदर्शन से जुड़ा हुआ है, वन-सिटी-वन-ऑपरेटर एक ऑपरेटर द्वारा पूरे शहर के लिए संपत्ति के रखरखाव, पुनर्वास, नए निर्माण आदि की परिकल्पना करता है।
(लेखिका- पूर्व मंत्री, समाजसेविका है।)