चुनावी व्यंग : अजीत कुमार सिंह
जब चुनाव के नतीजे आते हैं तो तमाम वरिष्ठ कनिष्ठ विश्लेषक अपनी विवेचना करने लगते हैं वास्तव में सब निरर्थक है भारतीय मतदाता इतना गुणा गणित नहीं करता जितना आप चैनलों पर करते हो पुरनिया एक चलन चलाते थे हमारे यहां पूरब मे अब भी जारी है जब बिटिया की शादी होकर वो ससुराल जाती थी तो उसके मायके से उसके सास के लिए एक अलग बक्शा या अटैची का उपहार जाता था उसमें तमाम समान होता था उन्हें पता था कि अगर सास खुश रहे या महिला वर्ग खुश रहे तो स्थितियां बेहतर बनने में सहायक होंगी इसके साथ साथ कुछ चालाक बिचौलिये ( बरखोजा) कजईता जब शादी तय होने पर मिलना या नेग दिलाते थे वर पक्ष के महिलाओं का खास सम्मान नगदी के माध्यम से किया जाता था शादी ब्याह की किसी रस्म का ये हिस्सा नहीं था पर अलिखित नियमावली बरसों बरस से चली आ रही है।
अब चुनाव पर आइये आपको याद होगा कि जब मध्य प्रदेश का चुनाव जब हो रहा था तो सब चुनावी पंडित कांग्रेस को ही सरकार बनाने का दावेदार मान रहा था बेरोजगारी ..घोटाला व्यापम वाला कर्मचारियों का असंतोष एंटी एनकंबैसी और न जाने क्या क्या फिर सरकार ने एक अभूतपूर्व मास्टर स्ट्रोक मारा “लाडली बहना” योजना की धनराशि बढ़ाई और महिलाओं के खाते में खटा खट पैसो की बारिश हो गयी फिर क्या था सारे मुद्दे धराशयी हो गये।

ठीक ऐसा ही महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में हुआ लोकसभा चुनाव जो प्रधानमंत्री जी के चेहरे पर लड़ा गया एक ऐसा चेहरा जिससे बड़ा चेहरा अभी वर्तमान के राजनैतिक परिदृश्य में भारत में तो नहीं है लेकिन भाजपा गठबंधन का प्रदर्शन लोकसभा में कमतर रहा फिर वहां की सरकार ने ” लाड़की बहना” योजना लागू की और करोड़ों महिलाओं को सीधे आर्थिक लाभ दे दिया कड़ा मुकाबला …कांटे की टक्कर ऐसा ऐसा कयास लगाने वाले सब धराशायी हो गये ठीक ऐसी ही योजना झारखंड मे भी है माई सम्मान योजना राज्यों के बोली भाषा नाम अलग है पर सब एक ही है यही अमोघ शस्त्र चुनावी फार्मूला बिहार में महिलाओं के खाते दस दस हजार भेजना और वृद्धावस्था पेंशन ४०० से एक हजार करना।
मूल मंत्र यही रहा बाकी संप्रदायिक ध्रवीकरण शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार हिंदू मुस्लिम आदि आदि सब मुद्दे बेमानी हैं बाद में आप चाहें जो गढ़ लीजिए असम के मुख्यमंत्री जो बोली भाषा मे इसी फन के माहिर हैं झारखंड के चुनाव में इन विषयों पर ही बोले पर कुछ खास नहीं हुआ।
योजना उसी की मानी जाएगी जिसकी सरकार हो आखिरकार सरकारों को ऐसी योजनाएं लाने और महिलाओं लुभाने की जरूरत एक रामबाण सिद्ध हो रहा है इसके प्रमुख सूत्र धार श्री केजरीवाल भी रहे दिल्ली मे अब तक सर्वाधिक विकास शायद स्व शीला दीक्षित जी ने कांग्रेस कार्यकाल में किया पर वो योजनाएं विकास केजरीवाल के फ्री फ्री वाली स्कीम के आगे धराशायी हो गयी और वो खुद अपना भी चुनाव हार गयी थी।
भ्रष्टाचार हर सरकार में है और खूब हैं नौकरी चाकरी अब कोई उतनी नहीं दे पायेगा टेक्नोलॉजी का भस्मासुर सब खा गया अब लें दे के यही उपहारी योजनाएं हैं जिसने पहले लपक लिया चुनाव उसी का है सुशासन बाबू कुशासन बाबू जंगल राज में सब काम चलाऊ मुद्दे हैं जो चुनाव के जीत हार के मनगढ़ंत ढंग से आप को बहलाने के लिए है….







