कई बार हम स्वयं की दूसरे से तुलना करके अपने अंदर हीन भावना को जन्म देते हैं, जो अंदर ही अंदर हमें खोखला करने लगती है। हम अपने गणों से ज्यादा अपने अवगुणों पर ध्यान देने लगते हैं और गुणों को देख ही नहीं पाते। एक समय आता है कि हम सोचने लगते हैं कि हमारा जीवन तो व्यर्थ ही है, लेकिन ऐसा नहीं है। हर व्यक्ति का अपना गुण है, उसका अपना एक महत्व है। दूसरे से तुलना करके अपने महत्व को खत्म होने बचाएं। आप इसे कथा के माध्यम से समझ सकते हैं जिसके महत्व को एक चींटी समझाती है।
एक समय की बात है। एक सरोवर के तट पर एक बगीचा था। इसमें तमाम तरह के गुलाब के पौधे थे। लोग वहां आते, तो वे वहां खिले गुलाब के फूलों की तारीफ करते। एक बार एक बहुत सुंदर गुलाब के पौधे के एक पत्ते के भीतर यह विचार जन्मा कि सभी लोग फूल की ही तारीफ करते हैं, पत्ते की कोई तारीफ नहीं करता। इसका मतलब है कि मेरा जीवन व्यर्थ है। पत्ते के अंदर हीन भावना घर करने लगी और वह मुरझाने लगा। एक दिन बहुत तेज तूफान आया। जितने भी फूल थे, वे पंखुड़ी पंखुड़ी होकर हवा के साथ न जाने कहां चले गए। चूंकि पत्ता अपनी हीनभावना से मुरझा कर कमजोर पड गया था. इसलिए वह भी टूटकर, उड़कर सरोवर में जा पड़ा। पत्ते ने देखा कि सरोवर में एक चींटी भी आकर गिर पड़ी थी, और वह अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी।
चींटी को थकान से बेदम होते देख पत्ता उसके पास आ गया और उससे कहा-घबराओ मत, तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। चींटी पत्ते पर बैठ गई और सही सलामत किनारे तक आ गई। चींटी इतनी कृतज्ञ हो गई कि पत्ते की तारीफ करने लगी। उसने कहा – मुझे तमाम पंखुड़ियां मिलीं, लेकिन किसी ने भी मेरी मदद नहीं की, लेकिन आपने तो मेरी जान बचा ली। आप बहुत ही महान हैं। यह सुनकर पत्ते की आंखों में आंसू आ गए। वह बोला धन्यवाद! धन्यवाद तो मुझे देना चाहिए कि तुम्हारी वजह से मैं अपने गुणों को जान सका। अभी तक तो मैं अपने अवगुणों के बारे में ही सोच रहा था, लेकिन आज अपने गुणों को पहचानने का अवसर मिला।
कथा का सार किसी से तुलना करके हीन भावना पैदा करने के बजाय सक्रिय होकर अपने भीतर के गुणों को पहचानना चाहिए।
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