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    Home»राजनीति

    इतिहास के पन्नों में अमर हो गए ‘धरती पुत्र’ मुलायम सिंह यादव

    ShagunBy ShagunOctober 17, 2022 राजनीति No Comments6 Mins Read
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    गौतम चक्रवर्ती

    समाजवादी विचार धारा के पुरोधा रहे मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता “नेताजी” जिससे उनकी लोकप्रियता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वे जन जन के दिलों में रहने वाले एक राजनीतिक नेता थे।

    मुलायम सिंह यादव के जीवन-यात्रा की एक प्रमुख विशेषता यह रही है कि वे उत्तर प्रदेश की राजनीति के समानांतर अपने विचारों को मूर्त रूप देते रहे और बहुत चतुराई से तीन विचार धाराओं-सह-रणनीतियों को एक साथ लागू किया जिससे समाजवाद, पिछड़ी जाति की लामबंदी और वंचितों के लिए सामाजिक न्याय के द्वार खोल दिए।

    कॉलेज में पढ़ाई – लिखाई के दौरान वे राम मनोहर लोहिया के समाजवाद से बहुत प्रभावित थे इसीलिए उन्होंने अपनी जिंदगी में उनके विचार धारा को उतारने का कोशिश करते हुए वे 1967 में वे पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) के टिकट पर उत्तर प्रदेश में विधायक बने थे।

    मुलायम सिंह यादव को अपने पढ़ाई लिखाई के दौरान पहलवानी करने का बहुत शौक था। एक बार तो उन्होंने अखाड़े में लड़ने के लिए अपनी परीक्षा तक छोड़ दी थी। उनके गृह राज्य सैफई उत्तर प्रदेश में उनकी खांटी राजनीति के कारण ‘धरती पुत्र’ की संज्ञा दी जाती है।

    वैसे तो उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं, लेकिन उनमें से एक किस्सा ऐसा है, जिसमें कहा जाता है कि उन्होंने मंच पर ही एक पुलिस इंस्पेक्टर को उठाकर पटक दिया था। बताया जाता है कि वह पुलिस इंस्पेक्टर मंच पर एक कवि को उसकी कविता नहीं पढ़ने दे रहा था।

    उनका दूसरा प्रमुख प्रभाव जिसमे सन 1960 के दशकों में जब देश में हरित क्रांति का दौर चल रहा था जिससे पिछड़े वर्गों का उत्थान हुआ। मुलायम सिंह यादव1974 और1977 में इटावा के जसवंतनगर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीतकर चरण सिंह के बीकेडी / एलडी में शामिल हो गए।

    मुलायम सिंह यादव समाज के गरीब और पिछड़े वर्गों के एक दिग्गज नेता थे। उत्तर प्रदेश में वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल के हिस्से के रूप में कांग्रेस द्वारा खाली की गई जगह पर उन्होंने ने कब्जा कर 1989 में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर सत्तारूढ़ हुए। उनके शासन काल में पुलिस ने 30 अक्टूबर, 1989 को अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलाई, जिसमें उन्हें आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था, लेकिन मुलायम ने देश की अखंडता को कायम रखने के लिए आवश्यक रूप से की गई इस कार्रवाई को उचित ठहराते हुए अपने प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया। उनके इस राजनीतिक रुख ने भाजपा को उनकी ओर आकर्षित किया और जिसने यूपी के सीएम को “मुल्ला मुलायम” तक कह दिया, लेकिन इससे उन्हें मुस्लिम- यादवों का जनाआधार बनाने में ही मदद मिली और 1992 में अपनी पार्टी – समाजवादी पार्टी (सपा) को उत्तरप्रदेश में स्थापित करने में सफल हुए।

    मुलायम सन 1996 से 98 तक देश के रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। उनके लिए एक वक्त ऐसा भी आया कि वे देश के प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी माने जाने लगे थे। मुलायम कई दशकों तक एक राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित रहे लेकिन उनका राजनीतिक अखाड़े का केंद्र मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश ही रहा।

    उनके द्वारा उठाया गया तीसरा कदम निर्णायक रूप से राजनीति को गहराई तक प्रभावित किया। दरअसल बसपा के संस्थापक कांशी राम के साथ हाथ मिलाने का उनका निर्णय, “बहुजन समाज” या निचली जातीय लोगों के लिए सामाजिक न्याय दिलाने के लिए गठबंधन का प्रयास करना था। वास्तव में कहा जाए तो उनका यह कदम भाजपा को “रोकने” का एक प्रयास था। वैसे देखा जाए तो राजनीतिक रूप से, उनकी यह एक सही रणनीति थी जिससे हिंदुओं की ताकत पिछड़ी जातियों और दलितों के मध्य टकराव होने से सांप्रदायिक तनाव का माहौल पैदा होते देर नहीं लगी जिसके फलस्वरूप 6 दिसंबर 1992 को उत्तरप्रदेश के फैजाबाद में स्थित बाबरी मस्जिद को उन्मादी भीड़ ने ध्वस्त कर दिया।

    वहीं उत्तरप्रदेश में1993 के विधानसभा चुनावों में, सपा पार्टी ने 106, बसपा 66, सीटें जीतीं तो वहीं बीजेपी की सन1991 में जीती गई 221 सीटों से गिरकर 177 सीटों तक सिमट कर रह गई थी।

    आप लोगों को शायद याद हो कि जब मनमोहन सिंह ने प्रथम बार अपने 72 वर्ष की आयु 2004 में देश के प्रधानमंत्री का पदभार संभाल रहे थे उसी दरमियान भारत की साल 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु करार होने के बाद वामपंथी दलों ने यूपीए सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया एसे में मुलायम सिंह यादव ही संकटमोचन के रूप में केंद्र की यूपीए सरकार को गिराने से बचा लिया था। मुलायम ने बाहर से समर्थन देकर उस समय मनमोहन सरकार को बचा कर कल्याण सिंह से हाथ मिलाकर भाजपा को चौंका दिया था इसी तरह मुलायम सिंह अपने विरोधियों को इस बात की भनक तक लगने नही देते थे और अपने राजनीतिक दांव के सहारे अच्छों अच्छों को पटखनी देते रहे।

    कुछ एसी ही घटना उस वक्त भी हुई थी जब मुलायम सिंह ने ऐसा ही एक और कदम साल 2003 में उठाया था। जब कल्याण सिंह को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था तो मुलायम सिंह ने उनसे हाथ मिला लिया, हालांकि इससे पहले ही कल्याण सिंह ने साल 1999 में अपनी एक अलग पार्टी बना ली थी।
    मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह के साथ गठबंधन कर उत्तरप्रदेश में सरकार बनाई और उनके बेटे राजवीर सिंह को अपनी सरकार में महत्वपूर्ण पद देकर दोस्ती का फर्ज अदा किया था।

    मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में विरोधियों को चारो खाने चित किया और 403 सीटों में से 223 सीटों पर जीत हासिल कर बहुमत की सरकार बनाई। उस वक्त ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि मुलायम उत्तरप्रदेश में चौथी बार मुख्यमंत्री का पद भार संभालेंगे, लेकिन तभी मुलायम सिंह यादव ने एक और राजनीतिक दांव चल कर अपने पुत्र अखिलेश यादव के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की रह सुगम कर दी।

    मुलायम सिंह अपने सियासी निपुर्णता वाली विरासत अखिलेश के हाथों सौंपकर राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया लेकिन जीवित रहने तक अखिलेश के पथ प्रदर्शक रहे, हालांकि यह अलग मुद्दा है कि बाद में अखिलेश के नेतृत्व पर स्वयं उनके चाचा शिवपाल यादव ने प्रश्न उठाते हुए अलग राह पकड़ ली और कुछ ही दिनों पश्चात अखिलेश अपने पिता को किनारे करके अखिलेश स्वयं पार्टी के अध्यक्ष बन गए।

    वैसे यदि आप बारीकी से देखें तो मुलायम सिंह की एक खाश आदत यह रही है कि वे बहुत नाराज होने के बावजूद अपने चेहरे पर उसका भाव उभरने नही देते थे अखिलेश पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक संरक्षक मुलायम सिंह यादव का 10 अक्टूबर बुधवार के दिन सुबह गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर हो जाने के कारण समाजवादी “धरती पुत्र” ने अपने जीवन की अंतिम सांस ली।

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