प्रभु! तुमने प्रार्थना
नहीं सुनी
ज़िन्दगी मैंने
रेशा-रेशा ही सही
पर, बुनी
मेरी प्रार्थनाओं की
विगलित व्यर्थता ही तो
मुझे देती रही अड़ना,
सहना और
प्रतिकूल परिस्थितियों में बहना
सब छिनने पर भी
राह
यही चुनी
झूठ, पाप, छल, कपट, वंचना
अगर सब
जाने-अनजाने किया
तब सत्य, विश्वास, पुण्य
प्रायश्चित भी
तुम्हारे संग-सहारे किया
जैसे बन पड़ा मरा-जिया
पर सत्ता
तुम्हारी गुनी
प्रभु! तुमने प्रार्थना
नहीं सुनी
– आनंद अभिषेक