राहुल कुमार गुप्त
जब तक धरती में मानव व मानवता जीवंत रहेगी तब तक समाजवाद का सूरज अस्त नहीं होगा। समाजवाद को अपना आदर्श मानकर कई लोग एक सामान्य श्रेणी से ऊपर से उठकर महापुरुषों की श्रेणी में अपना स्थान कायम कर समाज को हमेशा विकास व शांति की एक नई दिशा प्रदान की है। देश में आज भी कई ऐसी शख्सियत हैं जो गंगा-जमुनी तहजीब को एकसूत्र में पिरोने का कार्य करती हैं और ऐसी भी हस्तियां हैं जो साम्प्रदायिकता की आग में मानवता को दहन करने के लिए प्रयासरत रहती हैं। अंधकार व प्रकाश का युद्ध तो आदिकाल से चलता आया है और चलता रहेगा। किंतु यह युद्ध शांतिपूर्ण व आलौकिक है। अंधेरा खुद-ब-खुद उजाले(ज्ञान) की राह से हट जाता है। किंतु यह दुनिया ऐसी नहीं है, यहां मानवता को जोड़ने वाले धर्म व मजहब के नाम से ही इसे हर क्षण तोड़ा जाता है।
समाज में कई तरह की विभिन्नताएं वाजिब हैं। पर मानव को मानव न समझने वाली विचारधारायें समाज में केवल कुंठा व रक्त क्रांति पैदा करती हैं। हमारा समाज ऐसी है कुंठित विचारधाराओं से ग्रसित है। सामंतवाद, पूंजीवाद, सम्प्रदायवाद, जातिवाद, वर्गवाद और न जाने ऐसे कितने वाद जो मानव को मानव से जोड़ने का अवरोधक का कार्य करते हैं। किंतु समाजवाद एक ऐसा वाद है ऐसी क्रांति है जिसमें मानव को मानव दर्जा का मिला है। मानवों में विभिन्नताएं पूरे विश्व में थीं, पर इतनी नहीं जितनी भारत में। समानता के लिए कई क्रांतियों ने समय-समय पर जन्म लिया। कहीं हजारों साल लगे तो कहीं सैकड़ों साल। कहीं न कहीं रूसी क्रांति के जनक समाजवादी लेनिन की विचारधाराओं ने भारत में जड़वत असमानता की खाई को झकझोरा जरूर है। महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, आचार्य नरेंद्र देव, जय प्रकाश नारायण, डा. राम मनोहर लोहिया, आदि कई महापुरुषों ने समाज में समानता के लिए समाजवाद की आवश्यक्ता पर बल दिया।
समाजवाद के इन पुरोधाओं के आदर्शों को आत्मसात कर सैफई गांव का एक किसान पुत्र आमजन में नेताजी व धरती पुत्र के नाम से ख्याति पा रहा है। उत्तर प्रदेश की अवाम ने समाजवाद के इस पुरोधा मुलायम सिंह को प्रदेश की बागडोर प्रथम बार सन 1989 में दी। नेताजी की नीतियां, जमीनी कार्रवाई, कथनी और करनी में समानता, आमजन के दु:ख का कारगर उपाय ही सपा मुखिया मुलायम सिंह को आमजन से अलग हटकर धरतीपुत्र की श्रेणी में लाता है। भारतीय संस्कृति, भारतीय भाषाएं, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, शोषितों के हितों को समाजवाद की माला में पिरोने का कार्य मुलायम सिंह व उनके सिपहसलार व समाजवादी सिपाहियों ने कर दिया। समाजवाद से प्रदेश में रामराज की चाह लिए नेताजी का पूरा कुनबा भी उनके साथ हो लिया। विचारधाराओं की लड़ाई की वजह से रामराज की राह आसान नहीं, आसान होता तो समाजवाद क्रांति की आवश्यक्ता ही नहीं पड़ती।
समाजवाद की विचारधाराओं को जन-जन तक पहुंचाने व समझाने के लिए कई समाजवादी सिपाही व सिपहसलार जमीनी रूप से लगे हैं और कई खानापूर्ति भी करते हैं। संगठन में कुछ ही लोग कर्त्तव्यनिष्ठ, ईमानदार व संगठन के लिए आजीवन समर्पित होते हैं। समाजवाद के अध्याय में एक ऐसा ही नाम है नरेश चंद्र उत्त्तम का। सादगी, समाजवाद व कर्त्तव्यनिष्ठता जिनके जीवन का पर्याय है। यह नाम हो सकता है अन्य नेताओं की तरह बहुचर्चित न हो। किंतु अपने छात्र जीवन से ही नेताजी की विचारधाराओं से प्रभावित हो, समाजवाद को ही अपना आदर्श मानकर जन-जन में समाजवादी विचारधाराओं को प्रसारित कर रहे हैं। सात जनवरी 2015 को सपा में इनकी कर्त्तव्यनिष्ठता को देखकर संगठन में प्रदेश उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
बचपन से ही समानता व सादगी के प्रति इनका रूझान रहा। फतेहपुर जिला के बिंदकी विधानसभा क्षेत्र के लहुरी सराय गांव के किसान श्री रोशन लाल के पुत्र नरेश चंद्र उत्तम को आज तक छू नहीं पायी। मां श्रीमती बृजरानी की धार्मिक प्रवृत्तियों व उनकी शिक्षाओं ने इन्हें सदैव कर्त्तव्य के प्रति तटस्थ रखा। इनका जन्म 10 जनवरी 1956 को बिंदकी के लहुरी सराय गांव में हुआ। इन्होंने प्राथमिक शिक्षा गांव में ही ग्रहण की। स्रातक की शिक्षा के डीएवी कानपुर में ग्रहण की। यहीं से राजनीति की दिशा में जाने की प्रेरणा मिली। यह वही वक्त था जब मुलायम सिंह प्रदेश में समाजवाद की बयार से रामराज लाने का स्वप्न संजो रहे थे। सन 1980 में डीएवी कालेज के छात्रसंघ के अध्यक्ष का चुनाव जीता। यह चुनाव जीतने के बाद से लगातार आज तक नेताजी के बतायी गयी राह व उनके द्वारा दी गयी जिम्मेदारियों का पूरी तरह से तन्मयता के साथ निभा रहे हैं। 1981 में लोकदल की राष्ट्रीय समिति के सदस्य चुने गये। 1982,83 व 84 में युवा लोकदल के प्रदेश सचिव भी रहे। लोकदल के विभाजन से बने जनता दल से 1989 में जहांनाबाद विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर उत्तर प्रदेश की विधानसभा में कदम रखा। यह वही वक्त था जब नेताजी को यूपी की बागडोर प्रथम बार मिली थी।
सन 1990 में इन्हें वन उपमंत्री बनाया गया। 1991 व 1996 में जहांनाबाद विधानसभा क्षेत्र से सपा से चुनाव भी हारे। किंतु जनमत का सम्मान करते हुए समाजवाद की विचारधाराओं के साथ वो आगे बढ़ते गये। 1996-2000 तक सपा संसदीय बोर्ड के सदस्य बनाये गये। 2003-05 तक पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य भी रहे। सन 2006 में नेताजी ने एमएलसी बनाकर इनकी कर्त्तव्यनिष्ठता का सम्मान किया। 2012 में दोबारा इन्हें एमएलसी बनाया गया। संगठन की मजबूती को लेकर दिनरात एक करने वाले समाजवाद के इस सिपहसलार को 2013 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद संसदीय सामाजिक सद्भवाना समिति का चेयरमैन बनाया गया। साथ ही पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी नरेश चंद्र उत्तम को सौंपी गयी। और पिछले वर्ष 2016 के उत्तरार्द्ध में सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद पर आकर संगठन को एक नयी मजबूती प्रदान की।
संगठन में ईमानदार एवं कर्त्तव्यनिष्ठ लोगों की कद्र खुद के संगठन के अलावा भी होती है बशर्ते उसकी महात्वाकांक्षाएं खुद के लिए न होकर संगठन के हित व उसके विकास के लिए हो। आज के भौतिकतावादी युग में ऐसे आदर्श की छाप कुछ विरलों में ही होती है और यही शख्स आगे आने वाली पीढ़ी को एक आदर्श मार्ग प्रशस्त करते हैं। अपने सहयोगियों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत का कार्य करते हैं। जिससे संगठन को निरंतर प्राणवायु मिलती रहती है और संगठन हमेशा स्वस्थ व मजबूत बना रहता है। नरेश चंद्र उत्तम के इन्हीं सद्गुणों की वजह से यह पंक्तियां अनायास ही निकल पड़ती हैं-
सांसें जिनकी समाजवाद हैं, धड़कनों में नेताजी का नाम है।
वह लहुरी सराय का बेटा, नरेश चंद्र उत्तम उनका नाम है।।