सूई ,सुआ, सुनार
शिव कुमार चौहान
ऊब गया है पिंजरे में
बैठे बैठे अब तोता।।
नौ मन मिर्च_ टमाटर खाए
अब खाता है गोता।।
कहता है तोड़ूंगा अब मै
पिंजरे का दरवाजा।
अब से मैं आजाद रहूंगा
साथ हमारे आ जा।।
सच में तोते को पाला नहीं जा सकता। दूसरे पक्षी तो पाले जा सकते हैं किंतु तोते को पकड़कर पिंजरे में डाला जा सकता है किंतु जैसे ही पिंजरे का दरवाजा खुला तोता फिर पकड़ में नहीं आता। आदमी की आवाज की नकल करने वाला तोता फिर आदमी की आवाज की नकल नहीं करता।
पुरानी कहावत है
सुई सुआ सुनार
यह बहुत चालाक होते हैं। किसी के नहीं होते। मौका मिलते ही निकल भागते हैं। भारतीय तोता खासतौर से पिंजरे में रहना पसंद नहीं करता किंतु अपनी सुंदरता के कारण सदियों से मनुष्य उसे पिंजड़े में बंद करता आया है।
प्रेमचंद की एक कहानी है आत्माराम।
बुंदेलखंड के एक गांव बेंदो की कहानी। बेंदों गांव में महादेव सुनार नाम का एक आदमी रहता था। जिसने एक तोता पाल रखा था आत्माराम। एक दिन किसी लड़के ने तोते के पिंजड़े का दरवाजा खोल दिया। तोता खपरैल पर जा बैठा। आत्माराम तोता को पकड़ने के लिए
सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता।
राम के चरन चित्र लागा।।
कहता हुआ उसके पीछे पीछे जाता है।
शाम तक तोता उसके पास नहीं आता।
रात में तोता आम के एक बाग में एक पेड़ की फुनगी पर बैठ जाता है। महादेव सुनार उसी पेड़ के नीचे पिजड़ा लिए बैठा है। रात को चोर सोने की मोहरों से भरा एक कलसा लेकर आते हैं और दीपक जला कर बटवारा करने लगते हैं। महादेव सुनार चिलम की आग मांगने के लिए उनके पास आवाज लगाता है तो चोर सोने की अशर्फियां से भरा कलसा छोड़ कर भाग जाते हैं। भोर होते ही तोता भी पिजड़े में आ जाता है। महादेव सुनार के दिन बहुर जाते हैं। वह सोने की अशर्फियां भरा कलसा छिपा देता है और तोते को लेकर घर आ जाता है। तीर्थ यात्रा पर जाता है। ब्रह्म भोज करता है और गांव में मंदिर तालाब बनवाता है।
महादेव सुनार का आत्माराम तोता भले ही पिंजड़े में वापस लौट आता है पर और किसी का तोता पिजड़े से निकलने के बाद कभी वापस नहीं आता। भारतीय तोतों की 5 प्रजातियां पाई जाती हैं। तोता गर्म जलवायु में पाया जाता है। भारत पाकिस्तान बांग्लादेश और श्रीलंका में भारतीय तोते पाते पाए जाते हैं। जो करीब 10 से 12 इंच तक लंबे होते हैं। हरे पंख लाल देढ़ी चोंच और गले में काले लाल रंग का कंठ पाया जाता है। यही भारतीय तोते की पहचान है। अपने पंजे से आम मिर्च आदि पकड़कर कुतर कुतर कर खाना तोते की खास पहचान है। तोते झुंड में रहना अधिक पसंद करते हैं और बहुत शोरगुल करते हैं। भारत में तोते को मिट्ठू, टुईया भी कहते है। कुछ तोतों की चौथी पीली भी होती है।फरवरी से अप्रैल तक तोतों का प्रजनन काल होता है। महुआ अथवा आम के पेड़ की कोटर में अथवा खोखले वृक्ष में तोती दो अथवा चार अंडे देती है। करीब 30 दिन बाद अंडे में से बच्चे निकलते हैं। जब तक बच्चों के कंठ नहीं निकल आता नर और मादा बच्चों की देखभाल करते हैं और उड़ना सिखाते हैं। कुछ बहेलिए तोतों को पकड़कर पिजड़े में डालकर तोता पालने वालों को बेचते हैं। कई शहरों में तोता मंडी हो लगती हैं जहां पर तोता खरीदे और बेचे जाते हैं। भारत सरकार ने तोता खरीदने और बेचने पर रोक लगा रखी है। 7 साल की सजा का प्रावधान है पंछियों के खरीदने और बेचने पर फिर भी कुछ लोग तोते को और उन पंछियों पशुओं को खरीदते और बेचते हैं।
वैसे तो दुनिया भर में 400 तरह के तोते पाए जाते हैं। जिन्हें खरीदा और बेचा जाता है। चिड़िया घरों में तोते की विभिन्न प्रजातियां देखी जाती हैं। रंग बिरंगे तोते सभी को पसंद आते हैं। किंतु ने पिजड़े में नहीं डालना चाहिए। आजाद पंछी सभी को अच्छे लगते हैं।
बिहारी का दोहा है
पराधीनता दुख महा, सुख जग में स्वाधीन
सुखी रमत सुख वन विषय, कनक पींजरा दीन।।
मरत प्यास पिंजरा परे, सुआ समय का फेर।
आदर दे दे बोलियत बायस बलि की बेर।।
तोते की सुंदरता है उसके बंधन का कारण बनती है। तोते को लेकर भारतीय साहित्य में अनेक कथाएं कविताएं प्रचलित है तोता मैना की तो कहानियां आदिकाल से ही दुनिया भर में प्रसिद्ध रही हैं। आज तोता संकट के दौर में गुजर रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण तोतों के झुंड नहीं दिखाई पड़ते हैं। तोतों के लिए इस गर्मी में अपनी छत पर पानी रखिए पेड़ों पर भी पानी लटकाने का इंतजाम कीजिए। ताकि प्रकृति द्वारा प्रदत्त इन सुंदर पंछियों को बचाया जा सके।