उत्तराखंड के चमोली के हादसे से एक बार फिर यही साबित होता है कि दुर्घटनाओं के रूप में ऐसी घटनाएं लगातार होती रहती हैं और उसके बाद भी व्यवस्थागत उदासीनता का सिलसिला कायम रहता है। हादसे में सोलह लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बारे में यह सवाल भी उठता कि जब रात में करंट के कारण एक व्यक्ति की मौत हो गई थी तो उसके कई घंटे के बाद भी वहां अन्य जगह पर बिजली कैसे प्रवाहित हो गई।
होना यह चाहिए था कि पहली घटना का पता चलते ही सबसे पहले वहां बिजली के संपर्क को पूरी तरह काट दिया जाना चाहिए था। सामान्य स्थितियों में भी अगर बिजली की मामूली समस्या को ठीक करना होता है तो पहले वहां बिजली का संपर्क काटा जाता है ताकि लोग सुरक्षित रहें। लेकिन एक व्यक्ति की मौत हो जाने के बाद भी वहां बिजली को पूरी तरह काटना सुनिश्चित नहीं किया गया। किसी भी हादसे का पहला सबक यह होना चाहिए कि कम से कम उसके बाद ऐसी सटीक व्यवस्था की जाय जिससे उस तरह की घटना का दोहराव न हो।
सुरक्षा इंतजामों में मामूली लापरवाही की भी कीमत किस रूप में सामने आती है, इसके उदाहरण अक्सर देखने को मिल जाते हैं। विडंबना यह है कि ऐसे हादसे लगातार होने के बाद भी इनसे कोई सबक नहीं लिया जाता है। ऐसे में घटनास्थल पर हुई लापरवाही के लिए वहां तैनात किसी कर्मचारी को जिम्मेदार माना जा सकता है लेकिन उसके ऊपर के तंत्र में निरीक्षण, जांच आदि से जुड़े समूचे तंत्र का क्या कर्तव्य होता है।
किसी हादसे के बाद की औपचारिक कार्रवाई से हादसों पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता। उस स्थिति से बचने के लिए ठोस इंतजाम करने होंगे जिससे समय रहते गड़बड़ी का पता लग सके और उसे सही किया जा सके।