गौतम चक्रवर्ती
अभी बीते वर्ष 2010 में अयोध्या मंदिर-मस्जिद का विवाद को सुलझे बहुत दिन नही गुजरे हैं क्योंकि इसका फैसला 30 सितंबर 2010 को सुनाया गया था तो आज दूसरी तरफ ज्ञानवापी मस्जिद या मंदिर का मामला इन दिनों देश में सुर्ख़ियों का विषय बना हुआ है। कहा जा रहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर का ही एक हिस्सा है जिसे तोड़कर मुगलों ने वहां मस्जिद का निर्माण करवाया था। कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करवाया गया है उसके बाद हिंदू पक्ष द्वारा यह दावा किया गया है कि ज्ञानवापी से शिवलिंग मिला है। जिसके बाद से यहां पर वजू करने पर कोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई है। जबकि मुस्लिम पक्ष की ओर से इस दावे का खंडन भी किया जा रहा है कि यहां दिखाई देने वाले पत्थर का शिवाकार जैसी दिखने वाला स्तूप को फव्वारा बताया जा रहा है।
दूसरी ओर अब हिंदू पक्षकारों ने काशी में स्थित विश्वनाथ मंदिर में बने नंदी के सामने की दीवार को हटाकर वहां भी सर्वे कराने की मांग की जा रही है। ऐसे में यह मामला अदालत में अभी और भी लंबा चलने के आसार है। वहीं यदि हम इतिहास के पन्नों में दर्ज तथ्यों की बात करें तो ऐसा कहा जाता है कि मुगल शासकों ने कई बार इस मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया।
औरंगजेब के शासन काल में एक बार मंदिर के निहत्थे पुजारियों पर हमला भी किया गया था। उस समय मंदिर के मुख्य पुजारी ने शिवलिंग को सुरक्षित बचाये रखने के लिए उसे लेकर स्वयं कुंए में कूद गए थे जिसके कारण पुजारी की मृत्यु हो गई थी लेकिन शिवलिंग कुंए में ही रह गया और औरंगजेब ने मंदिर के स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवा दिया लेकिन अहिल्या बाई होल्कर ने फिर से मंदिर का निर्माण करवाया था एक चीनी यात्री (ह्वेनसांग) के अनुसार उसके समय में काशी में सौ मंदिर हुआ करते थे, लेकिन मुस्लिम आक्रमणकारियों ने सभी मंदिर ध्वस्त कर मस्जिदों का निर्माण करवाया था। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने निर्माण करवाया था।
औरंगजेब के शासन के बाद मराठा शासक मल्हार राव होल्कर ने मस्जिद को तुड़वाकर फिर से शिव मंदिर का निर्माण नही करवा पाये तो उनके बाद उनकी बहू और इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर के स्वप्न में शिवजी ने दर्शनादेश के बाद उन्होंने मस्जिद के ठीक सामने वर्ष 1777 में वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद का मामला आज से 31 वर्षो से अदालत में चल रहा है, यह मामला सर्व प्रथम वर्ष 1991 में अदालत में पहुंचा। जिसमे हिंदू पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद मंदिर तोड़कर बनाई गई थी, इसलिए यहां दोबारा मंदिर निर्माण की आज्ञा दिया जाना चाहिये।
आज जहां ज्ञानवापी पर तरह -तरह की बातों हास्य, उपहास, परिहास्य जैसी बातें बोला एवं लिखा जा रहा है। उन्हें रोकने या बोलने से रोकने पर यह सुनने में आता है कि साहब हम तो नास्तिक है हमे महादेव, शिव और शिव लिंग जैसे कलाकृतियों या भगवान से क्या लेना देना हैं ठीक है यदि आपकी आस्था शिव और शिवलिंग पर नही है तो कोई बात नही लेकिन इस पत्थर की मूर्ति से देश के करोड़ो लोगों की आस्था-श्रद्धा जुड़ी हुई है। आज क्या उन करोड़ों लोगों की आस्था श्रद्धा को कुछ नास्तिक लोगों की बातों में आकर तिलांजलि देने से क्या इससे हमारे समाज में उथान हो कर जागरूकता और परिवर्तन आजायेगा ? अगर इसका उत्तर नही है तो आप यह स्वयं ही सोचिए कि आप क्या कर रहे हैं? हजारों वर्षो से हिंदुस्तान के करोड़ों जनता के दिलो दिमाग मे चली आ रही श्रद्धा, विश्वास आस्था जैसी मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत संस्कारों की तिलांजलि देने की बातें कह कर उनके आस्थाओं पर ठेस पहुँचा कर, आप समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
हमने आज तक जितना जीवन समाज मे जिया है और देखा जितना सुना है और जितना अनुभव किया है उसके अनुसार नास्तिकता न तो कोई धर्म है और नही उसकी कोई उपलब्धि है हाँ यह एक विचार धारा अवश्य है एसे विचार धारा का समाज मे स्थायित्व होना न होना उसकी प्रमाणिकता और सत्यता पर निर्भर करती है।
अभी दिल्ली विश्विद्यालय के एक प्राध्यापक के द्वारा ज्ञानवापी पर दिए गए कमेंट और शोशल मीडिया पर लिखी गई एक भड़काऊ पोस्ट लिखने के कारण उन पर थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई गई है तो दूसरी तरफ अहमदाबाद पुलिस ने AIMIM नेता रह चुके दानिश कुरैशी को भी गिरफ्तार कर लिया है।
यदि सही अर्थों में हम कहे तो क्या नास्तिकता समाज की उन्नति का मार्ग प्रसस्त करता है? और नही नास्तिकता प्रगतिशीलता का कोई मानक है कियूंकि निकृष्ट, धूर्त्त, और अपराधी एवं स्वार्थी किस्म के आस्तिक व नास्तिक दोनों ही प्रकार के लोग दोनों पक्षों के साथ मिल जाएँगे लेकिन एक विद्वान द्वारा किसी चीज का आलोचना और उपहास करने में बहुत बड़ा अंतर होता है और उस अंतर को समझते हुए भी यदि आप क्रांतिकारी दिखने पर आमादा हो जाते हैं तो यह आपकी स्वेक्षा पर निर्भर करता है।