एक राष्ट्र-एक चुनाव पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी उच्चस्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में जो सिफारिशें दी हैं, वे देश की बिखरी चुनाव व्यवस्था को एकरूपता और समन्वित स्वरूप देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती हैं। समिति की रिपोर्ट में मुख्य बात यह है कि पहले चरण में लोकसभा और विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जाएं।
इसके बाद दूसरे चरण में नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव को लोकसभा व विधान सभा चुनाव के साथ ऐसे समन्वित किया जाए कि नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव लोकसभा-राज्य विधान सभाओं के चुनाव के 100 दिनों के भीतर पूरे हो जाएं। चुनावों को नियमित करने के लिए कोविंद समिति ने यह भी कहा है कि त्रिशंकु सदन होने या अविश्वास प्रस्ताव के कारण सरकार गिर जाने या ऐसी किसी स्थिति में नए सिरे से चुनाव कराए तो जाएं लेकिन नई सरकार बचे कार्यकाल को ही पूरा करेगी। यही नियम विधानसभाओं पर भी लागू हो। इसके लिए संविधान के कई प्रावधानों में संशोधन की सिफारिश भी की गई है।
समिति ने तो अपनी रिपोर्ट दे दी है पर इसकी सिफारिशें अमल में लाने के लिए भाजपा को प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने की जरूरत होगी क्योंकि इसमें उसे कई स्तरों पर बड़ी चुनौतियां भी मिलेंगी। इन सिफारिशों का कई राजनीतिक दलों और प्रबुद्ध लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा है।
हाईकोर्ट के तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों का तर्क है कि इससे लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति पर अंकुश लग सकता है तथा यह लोकतंत्र के सिद्धांतों के विपरीत है। सभी चुनाव एक साथ कराने से क्षेत्रीय मुद्दों को नुकसान पहुंचेगा। कई राजनीतिक दलों का कहना है कि यह व्यवस्था देश के संघीय ढांचे को हमेशा के लिए खत्म कर देगी। जबकि भाजपा का कहना है कि बार-बार चुनावों से सरकारी खजाने और राजनीतिक दलों पर अतिरिक्त भार पड़ता है। दोनों पक्षों के तर्क सैद्धांतिक और व्यावहारिक स्तरों पर मजबूत हैं जिसका अर्थ यह है कि इस विषय पर अभी और व्यापक मंथन होना चाहिए।