लखनऊ, 25 सितम्बर, 2021: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और डॉ संजय निषाद की निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) ने मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। माना जा रहा है कि इससे यूपी की सियासी तस्वीर बदल सकती है। यूपी विधानसभा की करीब 160 से अधिक सीटों पर निषाद, केवट और मल्लाह जातियों की काफी संख्या है। इन सीटों पर निषाद वोट बैंक किसी भी राजनैतिक दल की हार और जीत में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
यही वजह है कि भाजपा, सपा सहित यूपी के सभी दल निषादों से जुड़े छोटे दलों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इसी बीच भाजपा ने बाजी मारते हुए शुक्रवार को डॉ संजय निषाद के साथ गठबंधन कर सपा, बसपा और कांग्रेस को हैरानी में डाल दिया है।
यूपी में निषाद, मल्लाह, बिंद, कश्यप और केवटों की 153 उपजातियां रहती हैं। गोरखपुर, संतकबीरनगर, महराजगंज, कुशीनगर, बलिया, गाजीपुर, जौनपुर, भदोही, कौशांबी, चित्रकूट, मीरजापुर, सीतापुर, बहराइच और खीरी सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य और बुंदेलखंड के 18 से ज्यादा जिलों में इनकी काफी बड़ी आबादी रहती है।
इन जिलों की 160 से अधिक ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां निषाद समाज का साठ हजार से लेकर एक लाख तक वोट बैंक है। इनकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2016 में निषादों की लड़ाई के लिए मैदान में उतरी निषाद पार्टी ने एक साल बाद ही यानी 2017 में विधानसभा की दो सीटें जीती थी और पार्टी को विधानसभा चुनाव में तकरीबन साढ़े पांच लाख वोट मिले थे।
सन 2016 में निषादों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर डॉ संजय निषाद ने निर्बल इंडियन शोषिक हमारा आम दल (निषाद पार्टी) का गठन किया। निषाद पार्टी कुछ दिनों तक यूपी में केवटों की सर्वमान्य पार्टी रही, लेकिन आज ऐसा नहीं है। वर्तमान में राष्ट्रीय महान गणतंत्र पार्टी, फूलन सेना, नवलोक पार्टी, निषाद सेना, राष्ट्रीय एकलब्य सेना, भारतीय मानव सेना पार्टी और सर्वदलीय निषाद-केवल संघ जैसे संगठन निषादों के बीच अच्छी पैठ बना चुके हैं।
निषादों में अच्छी पैठ रखने वाली फूलन देवी के पति उपेंद्र कश्यप की देखरेख में गठित जलवंशी मोर्चा भी यूपी में आ चुका है। इन सब के साथ बिहार में राजनीति करने वाली पार्टियां वीआईपी पार्टी और हम भी यूपी में अपना आमद दर्ज करवा चुकी हैं। निषाद जातियों की राजनीति करने वाले सभी दल वर्तमान में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलित हैं। उनकी मांग है कि निषाद समुदाय की जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए।