अंशुमाली रस्तोगी
7 से 14 तारीख तक का सप्ताह वेलेंटाइन वीक नहीं, ये ‘बाजार का वीक’ है। वेलेंटाइन यानी बाजार। बाजार ने इतनी खूबसूरती से प्यार के सप्ताह पर कब्जा किया कि सब उसकी गिरफ्त में आ गए। इस भेड़-चाल का हम सभी हिस्सा हैं। मुझे नहीं पता, वेलेंटाइन वाले प्यार कितने दिनों तक टिक पाते हैं। पर हां इतना अवश्य कह सकता हूं कि जब, बाजार की आड़ में, आपने प्यार के एहसास को ही सप्ताह में बांट दिया, फिर प्यार लायक कुछ बचता नहीं। बाजार ने अपने इशारों पर आपको नचाया और आप खुशी-खुशी नाच लिए। नाच रहे हैं।
अभी क्या है, सबकुछ ‘इंस्टेंट नूडल’ जैसा है। दो मिनट में प्यार, इजहार, किस, लड़ाई, मनाई और सेक्स। यहां प्यार की अनुभूति के लिए जगह ही नहीं। न खतों-किताब की बातें। न छत-छत की लुका-छिपी। न दर्द का मीठा एहसास। प्यार लव के रास्ते होता हुआ, व्हाट्सअप, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर आ गया।
बाजार ने क्या कुछ और कितना कुछ बदल डाला है, फिर प्यार भी भला क्योंकर अछूता रह पाता।
‘सच्चा प्यार’ के जमाने लद चुके हैं। प्यार बाजार में तब्दील हो गया है। दाम मनमाफिक होंगे तो चलेगा; नहीं तो दूसरी दुकान देखी जाएगी।