जी के चक्रवर्ती
दुखद बात है कि आखिरकार रूस-यूक्रेन के मध्य चल रहा युद्ध रुकने का नाम ही नही ले रहा है। ऐसा बताया जा रहा है कि यूक्रेन के शहरों पर रूसी हमले पहले से और तेज हो गये हैं और अब रूस युक्रेन के मारियुपोल शहर में लगातार हमला कर रहा है जिससे मारियुपोल शहर के 80 फीसदी तक रिहायशी क्षेत्र पूरी तरह बर्बाद हो चुकने के बाद भी न तो युक्रेन राष्ट्रपति झुकने को तैयार हैं और नही रूस युद्ध रोकने को तैयार है जबकि इन दोनों देशों के मध्य अभी तक कई दौर की बातचीत भी हो चुकी है एक और बात यह भी है इस बातचीत के अंश बाहर खुल कर सामने भी नही आ पाया है क्योंकि रूस द्वारा मीडिया पर नकेल कस रखी है जिससे मारियुपोल शहर में जख्मी लोग किसी प्रकार के मदद पाने की आशा में फंसे हुए है।
वहीं यूक्रेन का कहना है कि रूस अब यहां के आम नागरिकों को भी निशाना बनाने लगा है। इस बात की सत्यता इसी बात से झुठलाया जा सकता है कि यदि रूस को यूक्रेन को मिटाना होता तो शायद यह काम रूस के लिए मात्र 3 ही दिनों तक का समय पर्याप्त होता, लेकिन रूस द्वारा शुरू से ही युक्रेन पर धीमी गति से प्रहार किया गया जिसके कारणों में पहला तो यही होगा कि यूक्रेन में भारत सहित दुनिया के अनेको देशों के हजारों की संख्या मे छात्र छात्राएं यहां पढ़ाई करने के लिये आये हुये थे ऐसे में रूस द्वारा हमले तेज करने से बहुत संख्या में विदेश छात्र- छात्राओं की जान जा सकती थी।
दूसरी सबसे बड़ी बजह यह यह भी रही होगी कि इन छात्रों के मृत्यु होने पर यह मामला अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी उठने लगता। रूस के यूक्रेन पर जोरदार हमला न करने का दूसरा सबसे बड़ा कारण यह समझ मे आता है कि यूक्रेन के नागरिकों के जानमाल का कम से कम नुकसान हो क्योंकि एक समय यूक्रेन सोवियत संघ का ही हिस्सा हुआ करता था।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिरकार यूक्रेन के राष्ट्रपति की ऐसी कौन सी प्रतिज्ञा या हठ है कि जेलेन्सकी किसी भी स्थिति में झुकने को तैयार नही है तो फिर शायद यह कहना अनुचित नही होगा कि जेलेन्सकी की जिद की वेदी पर निरीह युक्रेन वासियों की बली क्यों चढ़ाई जा रही है? क्या कोई व्यक्ति बिना नागरिकों वाले देश का राष्ट्रपति कहला कर अपने आप को धन्य समझेगा? पता नही यह छोटी सी बात जेलेन्सकी को समझ मे क्यों नही आ रही है? कि अपनी ही जिद के आगे उसे अपने ही देश के नागरिकों के जान-माल की बलि चढ़ानी पड़ेगी और आगे आने वाले भविष्य कहलाने वाले उन छोटे-छोटे बच्चों की जान की भी कोई परवाह नही है।
दूसरी तरफ यदि हम रूस की बात करें तो रूस ने युक्रेन के रिहायशी इलाकों पर हमले वाली बात से सदैव स्पष्ट तौर पर इनकार करता रहा है। हाँ वहीं रूस ने “फेसबुक” ट्विटर जैसे शोसल साइडों पर कड़ी कार्रवाई करते इन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। रूस की सेंसरशिप एजेंसी रोसकोम्नाडजोर ने फेसबुक पर रूसी मीडिया के साथ भेदभाव बरतने का आरोप भी लगाया है। “द कीव इंडिपेंडेंट” नाम से प्रकाशित होने वाली एक रिपोर्ट के अनुसार रूस सरकार की सेंसरशिप एजेंसी ने फेसबुक पर पूरी तरह से बैन लगा दिया है।
वहीं एक खास बात यह भी है कि रूस भारत की मुख्य धारा की मीडिया से भी अच्छा ख़ासा नाराज़ है। भारत में स्थित रूसी दूतावास ने कहा है कि भारतीय मीडिया यूक्रेन संकट को लेकर भारत के लोगों को सही और वस्तुनिष्ठ जानकारी जनता के मध्य परोंसे।
आज की परीस्थिति में यदि यूक्रेन को जीत भी हासिल हो भी जाये या किसी प्रकार का समझौता दोनों देशों के बीच हो जाये तो क्या वह पूर्व की स्थिति को पुनः हासिल कर सकता है? यदि हासिल कर भी ले तो शायद उसके लिये वह इतना बड़ा मूल्य चुका चुका होगा तो अन्त में यही कि आखिरकार इतने दिनों तक किये युद्ध से जेलेन्सकी को क्या हासिल होगा?