उपेन्द्र नाथ राय
जेपी आंदोलन और आपात काल हर व्यक्ति के जेहन में आज भी गुंजता रहता है। हर जानकार यह भी जानता है कि जेपी आंदोलन में चेहरा जय प्रकाश नारायण जी थे लेकिन उसकी पूरी शक्ति राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ था और फायदा उठाने के लिए मुलायम सिंह, लालू यादव जैसे नेता रहे, जिनकी राजनीति जेपी आंदोलन के बाद चमक गयी और उन्होंने समयानुसार जातिगत राजनीति को भारतीय समाज में थोप दिया। लेकिन उसी आंदोलन के बीच धीरे-धीरे जनसंघ भी बढ़ता गया और आज भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सबके सामने है। इसका कारण है, भाजपा ने कभी मूल वजूद नहीं छोड़ा, अपनी विचारधारा से समझौता समयानुसार जरूर किया लेकिन उसके दिल-दिमाग में राष्ट्रवाद पनपता रहा, भाजपा के लोग समय का इंतजार करते रहे और समय आते ही राम मंदिर आंदोलन हो या कश्मीर में धारा 370 समाप्त करने का मामला, सब निस्तारण कर दिया।
जेपी आंदोलन के याद आने की एक वजह है, वाराणसी में विवादित ज्ञानवापी मस्जिद में भगवान का शिव का मिलना। इसके साथ ही मथुरा, मध्यप्रदेश के कई जगहों पर धीरे-धीरे आततायी मुगल काल के समय में तोड़े गये मंदिरों के प्रति जनता का आक्रोश पनपना। इन सबमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आगे नहीं है, वह पीछे से वैसे ही लगा हुआ है, जैसे जेपी आंदोलन में लगा हुआ था। उस आंदोलन में भी पूरा का पूरा कार्य संघ के लोग करते थे, लेकिन संघ आज भी उसे अथराइज्ड रूप से अपने को उसका कर्ताधर्ता नहीं स्वीकार करता।
भगवान शिव की महिमा भी ऐसी ही है, नंदी को बाहर कर खुद विवादित स्थल में पहुंच गये। वे हिन्दू समाज को यह बताते रहे कि देखो, हमारी नंदी हमें देख रही है लेकिन तुमको मैं नहीं दिख रहा। अंत में वाराणसी की महिलाओं की चेतना जगी और वे उसके लिए आंदोलित हो उठीं। उसका परिणाम आज सबके सामने है। ज्ञानवापी में कोर्ट द्वारा कराये गये सर्वे में जगह-जगह मंदिर के प्रतिबिम्ब दिखाई दिये हैं। अब यह लौ बुझनी नहीं है, यह तो तय हो चुका है। इसके साथ ही यह भी तय हो चुका है कि हिन्दू समाज भी जग गया है।
यही जगाने की प्रतिरक्षा में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इतने दिनों से पड़ा था। पहले हिन्दु समाज के सभी बिंदू को उठाने के लिए जैसे आरएसएस को अगुवा बना दिया जाता था, जबकि अपने अधिकार के लिए अपना भी कर्तव्य निभाना हर व्यक्ति का दायित्व होना चाहिए। शुरु में संघ के लोगों ने इसे किया भी लेकिन शायद ऐसा आभास हुआ होगा कि इससे पूरा समाज नहीं, सिर्फ संघ आगे बढ़ रहा है और संघ का काम जगाना है। खुद को हाइलाइट करना नहीं। इस कारण उसने इस आंदोलन में खुद को पीछे करके जनभावना को जागृत किया और आज हकीकत है कि चाहे किसी दल का नेता क्यों न हो लेकिन किसी हिन्दू से पूछे तो वह अपने शिव को मुक्त कराने के लिए तड़प रहा है। दिल उद्वेलित हो रहा है। हां, अखिलेश जैसे कुछ नेता भले ही बाहर से एक संप्रदाय को संतुष्ट करने के लिए भाजपा पर आरोप मढ़ रहे हों, लेकिन हकीकत तो यही है कि उनका दिल भी गवाही नहीं दे रहा होगा।
अब देखिए 18 मई को लखनऊ विश्वविद्यालय में एक अध्यापक को समाजवादी छात्र सभा के छात्रों के कोपभाजन का उस समय शिकार हो जाना पड़ा, जब वे भोले नाथ के मंदिर के बारे में कुछ अनर्गल बातें कर रहे थे। यह ठीक वहीं समय था, जब समाजवादी मुखिया अखिलेश यादव मीडिया के सामने भाजपा पर साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने का आरोप लगा रहा थे। उनका कहना था कि सर्वे का काम नहीं होना चाहिए। उनके इस वक्तव्य के बाद सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ कई निर्गुट लोगों के भी बयान आये।
इन सबको देखते हुए ऐसा लगता है कि अब 2024 का लोकसभा चुनाव तो भाजपा शिव के भरोसे लड़ लेगी। उसको इसके लिए बहुत मेहनत की जरूरत नहीं है। शिव की महिमा के आगे सभी मुद्दे गौंड़ हो जाएंगे। इसमें सबसे बड़ी बात है कि भाजपा इस काम में कुछ भी बोल नहीं रही है और भगवान भोले नाथ के शिवलिंग मिलने पर उसकी सिर्फ मौन स्वीकृति भर है। इसको भाजपा से जोड़कर देखने और समाज को दिखाने का काम खुद विपक्ष कर रहा है। विपक्ष जितना इसको उछालने का प्रयास करेगा, वह खुद ही धाराशायी हो जाएगा। आखिर भोले के त्रिनेत्र के आगे कौन टिक पाया है। भगवान भोले ही हैं, जब सभी देवता विपपान करने से भग गये तो वे पूरे जग को बचाने के लिए समुद्र मंथन से निकले विष का पान कर लिया और उनके गले में जाकर वह रूक गया, जिससे निलकंठ कहलाये।
भोले शिव पर केंद्रित विपक्ष की बौखलाहट भाजपा को आगे बढ़ाती जा रही है। हां, उस मुद्दे पर भाजपा भी जनभावनाओं को निहार रही है। लोगों के दिलों से निकल रही ज्वाला को वह खुद महसूस कर रही है। इस कारण वह इस मुद्दे को अब शांत रहने देना भी नहीं चाहती। आखिर फायदे का सौदे में वह क्यों शांति का अड़ंगा लगाए। यही कारण रहा कि एक बार ऐसा लगा कि वहां विवादित ज्ञानवापी का सर्वे नहीं हो पाएगा तो अचानक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बनारस पहुंच गये। जिस दिन सर्वे होना था, उसके एक दिन पूर्व ही उनका पहुंचा जाना और बिना मीडिया को जानकारी दिये वहां से निकल जाना अधिकारियों के लिए साहस का काम किया। दूसरे दिन से ही सर्वे का काम शुरू हो गया।
मीडिया के कुछ भी न कहने के बावजूद जनमानस में आज यह चर्चा का विषय बन गया कि योगी जी ने ही अधिकारियों कान भरे और दो बार से टल रहा सर्वे का काम शुरू हो गया। यह उसी तरह रहा, जैसे सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस के साथ प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी का फोटो वायरल हुआ और अयोध्या में मंदिर का फैसला आ गया। इसके बाद मीडिया ने उस मुद्दे पर कुछ नहीं दिया। देगा भी कैसे, उसका कोई प्रमाण तो था नहीं, लेकिन आम जनमानस के मन में यह बात घर कर गयी कि नरेन्द्र मोदी के कारण ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला हिन्दू जनभावना के अनुसार आया है।
(लेखक- वरिष्ठ पत्रकार हैं- मोबाइल नम्बर- 9452248330)