वीरेन्द्र जैन
हॅसी ठिठोली करते थे पीड़ा पर गैरों की
अब समझे जब फटी बिंबाई खुद के पैरों की
उसने ही भीतर घुस कर के
चक्रव्यूह भेदा
तुमने दे वरदान किया जो
भस्मासुर पैदा
अब घबरायी फिरती टोली चोर लुटेरों की
अब समझे जब फटी बिंबाई खुद के पैरों की
खून पसीना सिंची हमारी
फसल चराने को
पाले तुमने कई जानवर
हमें डराने को
खतरनाक हो गई सवारी लेकिन शेरों की
अब समझे जब फटी बिंबाई खुद के पैरों की
सोचें दूर दृष्टि से पहले
पीछे चरण धरें
काश हमारे काका भी
कुछ शिक्षा ग्रहण करें
बन्दर को रखवाली सोंपें नहीं मुंडेरों की
अब समझे जब फटी बिंबाई खुद के पैरों की