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    कानपुर में कराहती गंगा

    ShagunBy ShagunJanuary 2, 2023 ब्लॉग No Comments7 Mins Read
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    Post Views: 70

    पंकज चतुर्वेदी

    कभी कानपुर के चमडा कारखाने वहां की शान हुआ करते थे, आज यही यहाँ के जीवन के लिए चुनौती बने हुए हैं .. एक तरफ नमामि गंगे के दमकते इश्तेहार है तो सामने रानिया, कानपुर देहात और राखी मंडी, कानपुर नगर आदि में गंगा में अपशिष्ट के तौर पर मिलने वाले क्रोमियम की दहशत है। वह तो भला हो एन जी टी का जो क्रोमियम कचरे के निबटान के लिए सरकार को कसे हुए हैं. यह सरकारी अनुमान है कि इन इलाकों में गंगा किनारे सन 1976 से अभी तक कोई 122800 घन मीटर क्रोमियम कचरा एकत्र है . विदित हो क्रोमियम ग्यारह सौ सेंटीग्रेड तापमान से अधिक पर पिघलने वाली धातु है और इसका इस्तेमाल चमड़ा, इस्पात, लकड़ी और पेंट के कारखानों होता है. यह कचरा पांच दशक से यहा के जमीन और भू जल को जहरीला बनाता रहा और सरकारे कभी जुर्माना तो कभी नोटिस दे कर औपचारिकताएं पूरी करती रहीं. हालात यह हैं कि हिमाचल से पावन हारा के रूप में निकलती गंगा कानपुर आते- आते कराहने लगती है , सरकारी मशीनरी इसमें गंदगी रोकने के संयंत्र लगाने पर खर्चा करते हैं जबकि असल में इसके किनारों पर कम कचरा उपजाने की बात होना चाहिए .

    कानपुर में गंगा नदी में अब 2 पतली धाराओं में पानी बचा है। बालू में बच्चे खेल रहे हैं। दूर तक सूखा… #Kanpur #Ganga #environnement @NBTLucknow pic.twitter.com/DrtLsvCZtM

    — Praveen Mohta (@MohtaPraveenn) December 23, 2022

    सन 2021 का एक शोध बताता है कि कानपुर में परमट से आगे गंगाजल अधिक जहरीला है. इसमें न सिर्फ क्रोमियम की मात्रा 200 गुना से अधिक है, बल्कि पीएच भी काफी ज्यादा है. यह जल सिर्फ मानव शरीर को नहीं बल्कि जानवर और फसलों को भी नुकसान पहुंचा रहा है. यह खुलासा छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के बायोसाइंस एंड बायोटेक्नोलॉजी विभाग ;बीएसबीटी विभाग की ओर से हुई जांच में हुआ है. विभाग के छात्र और शिक्षकों ने नौ घाटों पर जाकर गंगाजल का सैंपल लिया. इनकी जांच कर टीम ने रिपोर्ट तैयार की है जो काफी चौंकाने वाली निकली है. कन्नौज के आगे गंगाजल की स्थिति बहुत अधिक भयावह नहीं है मगर परमट घाट के आगे अचानक प्रदूषण और केमिकल की स्थिति बढ़ती जा रही है.

    मार्च 2022 में कानपुर के मंडल आयुक्त द्वारा गठित एक सरकारी समिति ने स्वीकार किया कि परमिया नाले से रोजाना 30 से 40 लाख लीटर, परमट नाले से 20 लाख और रानीघाट नाले से 10 लाख लीटर प्रदूषित कचरा रोजाना सीधे गंगा में जा रहा है. कानपुर में गंगा किनारे कुल 18 नाले हैं. इनमें से 13 नालों को काफी पहले टैप किए जाने का दावा किया गया है. हकीकत यह है कि अक्सर ये नाले ओवरफ्लो होकर गंगा को गंदगी से भर रहे हैं. टैप नालों में एयरफोर्स ड्रेन, परमिया नाला, वाजिदपुर नाला, डबका नाला, बंगाली घाट नाला, बुढ़िया घाट नाला, गुप्तार घाट नाला, सीसामऊ नाला, टेफ्को नाला, परमट ड्रेन, म्योर मिल ड्रेन, पुलिस लाइन ड्रेन और जेल ड्रेन शामिल हैं. बिना टैप किए गए नालों में रानीघाट नाला, गोलाघाट नाला, सत्तीचौरा नाला, मैस्कर और रामेश्वर नाला शामिल हैं.

    क्रोमियम की सीमा से अधिक मात्रा जाजमऊ और वाजिदपुर में भयावह हालात पैदा किये हैं. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पानी में क्रोमियम की मात्रा 0.05 होनी चाहिए. कन्नौज से लेकर गंगा बैराज तक स्थिति लगभग सामान्य है मगर जाजमऊ और वाजिदपुर में अचानक क्रोमियम की मात्रा खतरनाक होती जा रही है. 85 गांवों के करीब पांच लाख लोगों की जिंदगी में जहर घोल दिया है. किसी परिवार में गोद सूनी है तो किसी गर्भ से उपजा नवजात मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग है. इसके अतिरिक्त भूजल में क्रोमियम की मौजूदगी ने सैकड़ों लोगों को कैंसर की सौगात बांटी है. क्रोमियम युक्त पानी ने धरती को भी बंजर किया है. इलाके में पैदावार घट गई है और फसल भी पकने से पहले मुरझाने लगती है.

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    जाजमऊ इलाके के शेखपुर, वाजिदपुर, प्योंदी, जाना, अलौलापुर जैसे तमाम गांव है, जहां ग किसी महिला के गर्भ ठहरने पर ख़ुशी से अधिक तनाव होता है . चूँकि यहाँ टेनरियों ने वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट के जरिए जलशोधन के बजाय क्रोमियम युक्त पानी को सीधे गंगा नदी में बहाया है. सख्ती हुई तो अधिकांश टेनरियों ने रिवर्स बोरिंग के जरिए भूजल में प्रदूषित पानी मिलाना शुरू कर दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि गंगा के किनारे तीन.चार किलोमीटर के दायरे में भूजल में क्रोमियम की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंच गई. एक दर्जन गांवों में सरकार ने भूजल के पेयजल के रूप में रोक भी लगाई है. जल का कोई विकल्प न होने के कारण मजबूरी में ग्रामीण भूजल का इस्तेमाल करते हैं. इसके चलते शिशुओं को विकलांग रूप में पैदा होने की बहुतेरी घटनाएं सामने आई हैं.


    एक तथ्य यह भी

    ऐसा नहीं कि काम नहीं हुआ है सरकार ने अपने स्तर पर काफी काम किया है यह हम नहीं तस्वीरें बोलती है जैसे यह तस्वीर 29 दिसम्बर 2022 की है जिसे मिनिस्ट्री ऑफ़ जल शक्ति ने अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर किया है इसमें बताया गया है कि सदियों से माँ गंगा के प्रदूषण का पर्याय रहा सीसामऊ नाला को विकसित कर अब सेल्फी प्वाइंट बना दिया है।

    कानपुर वोट क्लब आम जनता के लिए खुल गया। यहाँ शाम को गंगा आरती के साथ लेजर लाइट शो भी होता है जिसे देखने हज़ारों की संख्या में लोग आते हैं । इस जगह का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी ने किया था।

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    उन्नाव जनपद में गंगा कटरी में आबाद कालूखेड़ा, त्रिभुवनखेड़ा, बंदीपुरवा, लखापुरा, जैसे एक दर्जन गांवों में दर्जनों कैंसर रोगी हैं. जब यह पता चला कि केंस्र्ग्रस्त अधिकांश लोग तम्बाखू या धुम्रपान करते ही नहीं हैं तो तीन साल पहले राज्य सरकार ने अध्ययन कराया. मालूम हुआ कि कैंसर फैलने का असल कारण भूजल में क्रोमियम है. गंगा किनारे आबाद 85 गांवों में भूजल में क्रोमियम की मौजूदगी ने फसलों को भी बर्बाद कर दिया है. ट्यूबवेल से सिंचाई करने पर फसल झुलस जाती है.

    गंगा की समस्या केवल जल-मल या रसायन के मिलने से पानी कि गुणवत्ता गिरना मात्र नहीं है – जलवायु परिवर्तन के दौर में अनियमित बरसात और जंगल कटाई व् शहरीकरण के कारण यह बार बार रास्ता बदल रही है इसके तटों पर कटाव बध्रहा है , इसकी जैविक संपदा समाप्त हो रही है . आज गंगा को दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में छठे स्थान पर रखा गया है .

    गंगा के किनारे खेतों को अधिक अन्ना उगाने का चस्का लगा है और इसके लिए जहरीले रसायन को धरती में झोंका जाता है . अनुमान है कि नदी तट के करीब हर साल सौ लाख टन उर्वरकों का इस्तेमाल होता है जिसमे से पांच लाख टन बहकर गंगा में मिल जाता है . 1500 टन कीटनाशक भी मिलता है . सैकडों टन रसायन, कारखानों, कपडा मिलों, डिस्टलरियों, चमडा उद्योग, बूचडखाने, अस्पताल और सकडों अन्य फैक्टरियों का निकला उपद्रव्य गंगा में मिलता है . 400 करोड लीटर अशोधित अपद्रव्य, 900 करोड अशोधित गंदा पानी गंगा में मिल जाता है . नगरों और मानवीय क्रियाकलापों से निकली गंदगी नहाने-धोने, पूजा-पूजन सामग्री, मूर्ति विसर्जन और दाह संस्कार से निकला प्रदूषण गंगा में समा जाता है . भारत में गंगा तट पर बसे सैकडों नगरों का 1100 करोड लीटर अपशिष्ट प्रतिदिन गंगा में गिरता है . इसका कितना भाग शोधित होता होगा, प्रमणित जानकारी नहीं है .

    गंगा में उद्योगों से 80 प्रतिशत, नगरों से 15 प्रतिशत तथा आबादी, पर्यटन तथा धर्मिक कर्मकांड से 5 प्रतिशत प्रदूषण होता है . आबादी की बाढ के साथ, पर्यटन, नगरीकरण और उद्योगों के विकास ने प्रदूषण के स्तर को आठ गुना बढाया है . ऐसा पिछले चालीस वर्ष में देखा गया ऋषिकेश से गंगा पहाडों से उतरकर मैदानों में आती है, उसी के साथ गंगा में प्रदूषण की शुरूआत हो जाती है. धर्मिक, पर्यटन, पूजा-पाठ, मोक्ष और मुक्ति की धारणा ने गंगा को प्रदूषित करना शुरू किया, हरिद्वार के पहले ही गंगा का पानी निचली गंगा नहर में भेजकर उ०प्र० को सींचता है. नरौरा के परमाणु संयंत्र से गंगा के पानी का उपयोग और रेडियोधर्मिता के खतरे गम्भीर आयाम हैं . प्रदूषण की चरम स्थिति कानपुर में पहुंच जाती है, चमडा शोधन और उससे निकला प्रदूषण सबसे गम्भीर है . उस समूचे क्षेत्र में गंगा के पानी के साथ भूमिगत जल भी गम्भीर रूप से प्रदूषित है .

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