अवध क्षेत्र के अंतर्गत ही पुण्य धोपाप धाम स्थित है। जहाँ मर्यादा पुरुषोत्त्म श्री राम के पाप धुले हैं। इसलिये यह धाम श्री राम के अनुयायियों के लिये अति पावन हो जाता है। ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी का ही वो दिन था, जब धरा पर माँ गंगा अवतीर्ण हुईं और उसके बाद से हर ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी व हस्त नक्षत्र पर गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाने लगा। राजा भागीरथ के साठ हजार पूर्वजों के पापों को हरने के बाद माँ गंगा धरा में जीव कल्याण के लिये बस गयीं। गंगा दशहरा पर ही भगवान श्री राम ने भी अपने पापों से मुक्ति पायी।
धोपाप धाम उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में स्थित है। यह वाराणसी-लखनऊ नेशनल हाईवे पर स्थित कोतवाली लम्भुआ से 8 किलोमीटर दूर गोमती नदी के किनारे पर है। बताया जाता है कि गंगा दशहरा के इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने रावण वध के बाद अपने ऊपर लगे ब्रह्म-हत्या के पाप को यहां धोया था इसलिए तब से आज तक हर गंगा दहशरा पर यहां मेला लगता है और हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु गोमती में स्नान कर मोक्ष की प्राप्ति करते हैं।
क्यों पड़ा धोपाप धाम का नाम:
धोपाप धाम का नाम धोपाप क्यों पड़ा इसके पीछे एक गहरा रहस्य है। धोपाप धाम का अर्थ है एक ऐसी पावन स्थली जहां सभी पापों का नाश हो जाता है। धोपाप धाम का वर्णन पद्म पुराण में किया गया है। इसमें बताया गया की त्रेता युग में लंकापति रावण का वध करके भगवान श्री राम अयोध्या वापस आए तो पूरे अवध में बड़ी धूम-धाम से खुशियां मनायी गयीं। लोग बहुत खुश थे क्योंकि अंहकारी व आतताई रावण के वध से सम्पूर्ण धरती को उसके अत्याचारों से मुक्ति मिली थी तथा जन-जन के प्रिय श्री राम अवध क्षेत्र में वापस आ गये थे। लेकिन राम जी का मन महापंडित रावण के मारे जाने के बाद भी व्याकुल था। इस व्याकुलता को जब उन्होंने अपने राजगुरू वशिष्ठ जी के समक्ष रखा तो उन्होंने इस पाप से मुक्ति का हल भी बताया। सरयू और गंगा की महत्ता तो गुरू वनवास से पहले ही बता चुके थे। श्री राम के वनवास के बाद गुरू वशिष्ठ ने अवध क्षेत्र में ही बहने वाली नजदीक दूसरी नदी गोमती की महत्ता के बारे में बताया। ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिये उन्होंने गंगा दशहरा का दिन ही उचित जाना। क्योंकि तब भी वो सारे योग बन रहे थे जो गंगा के अवतीर्ण होने पर बन रहे थे। माँ गंगा ने प्रभू राम के पूर्वजों को तारा था। आदि माँ गंगा गोमती पर गंगा दशहरा के दिन स्नान कर व गंगा जी की स्तुति करने के बाद प्रभू राम ने दीप भी जलाया और अपने ऊपर लगे ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पायी। उस वक्त यह नगर दीपनगर के नाम से विख्यात था।
तब से यह पावन स्थली धोपाप धाम के नाम से विख्यात हो गई। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी तिथि पर विशाल जनसमूह धोपाप धाम में आकर गोमती की पावन धारा में अपने पापों को तिलांजलि देता है।
यहाँ समय-समय पर मंदिर व मूर्तियाँ बनती रहीं हैं और समय के साथ खंडहर भी होती रही हैं। आज जो धोपाप धाम में भगवान श्री राम का विशाल मंदिर व मूर्तियाँ स्थापित हैं वो दियरा स्टेट के राजा जगदीश प्रताप शाही की प्रभु राम के प्रति आस्था का प्रतीक है।
सम्पूर्ण अवध में धोपाप के महत्व को कुछ इस तरह से समझाया गया है कि ग्रहणे काशी, मकरे प्रयाग। चैत्र नवमी अयोध्या, दशहरा धोपाप। अगर वर्ष भर में ग्रहण स्नान काशी में, मकर संक्रान्ति स्नान प्रयाग में, चैत्र मास नवमी तिथि का स्नान अयोध्या में और ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी तिथि स्नान धोपाप धाम में कर लिया जाय तो अन्य किसी जगह जाने की आवश्यकता ही नहीं है। बस इतने मात्र से ही मनुष्य को सीधे बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। – अलका शुक्ला