मायावती मुख्तार को टिकट न देकर दूसरे मुस्लिम नेता से कर सकती हैं भरपाई
उपेन्द्र
यूपी विधानसभा का चुनाव अभी छह माह है लेकिन राजनीतिक सरगर्मी अभी से चरम पर पहुंच रही है। दल-बदल का काम भी शुरू हो गया है। अभी मतदाता किस करवट बैठेगा, यह तो भविष्य की गर्त में है लेकिन एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की यूपी की राजनीति में प्रवेश ने कई पार्टियों के प्रमुखों की नींद उड़ा दी है। सब चुप्पी साधकर औवेसी की गतिविधियों पर नजर बनाये हुए हैं।
उधर पूर्वांचल में मुस्लिम मतदाता ओवैसी के साथ रहेगा या अंसारी बंधुओं के साथ यह भी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। एक तरफ ओवैसी यूपी में डेरा डालकर जनसभाओं के जरिये मुसलमानों को अपने पक्ष में करने के लिए जी-जान से जुटे हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ अंसारी बंधु अपनी राजनीतिक विसात के लिए एक-दल से दूसरे दल में हमेशा आते-जाते रहते हैं। ओबैसी ने सौ सीटों पर लड़ने के ऐलान के साथ ही यूपी में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं।
बाहुबली मुख्तार अंसारी के भाई सिबतुल्लाह अंसारी ने एक सप्ताह पूर्व समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये। वहीं शुक्रवार को मायावती ने मुख्तार अंसारी को आगामी विधानसभा का टिकट नहीं दिये जाने का ऐलान कर दिया।
शिवपाल ने जब अंसारी बंधुओं को सपा में शामिल कराया तो भड़के थे अखिलेश
पिछले लोकसभा चुनाव से पूर्व अखिलेश यादव का अंसारी बंधुओं के सपा में शामिल होने के कारण ही अपने चाचा शिवपाल यादव से खटपट हो गयी थी और अंतत: शिवपाल सपा से बाहर हो गये। इसके बाद ही चुनाव से कुछ समय पहले ही अंसारी बंधु बसपा में शामिल हो गये। राजनीति में कोई किसी का स्थायी मित्र अथवा दुश्मन नहीं होता। इसको चरितार्थ करते हुए अखिलेश यादव अंसारी बंधुओं पर फिदा हो गये और सिबतुल्लाह अंसारी को सपा में शामिल कर लिया।
मुख्तार के लड़के अब्बास को मऊ से लड़ा सकती है सपा
माना जा रहा है कि मुख्तार अंसारी के लड़के अब्बास को समाजवादी पार्टी घोसी से टिकट देगी और विधानसभा चुनाव में पूरा अंसारी परिवार (अफजाल अंसारी अभी बसपा से सांसद हैं।) सपा के साथ रहेगा। मायावती सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक नफा-नुकसान के अनुसार ही अपना स्टेंड हर समय बदलती रहती हैं। यही कारण है कि 1996 में मुख्तार बसपा के टिकट पर विधायक बने।
फिर बसपा से हो गया था विवाद
इसके बाद भाजपा के समर्थन से ही बसपा की सरकार बनी थी। उस समय मुख्तार अंसारी जब जेल से बाहर आये तो मायावती ने जेड प्लस की सुरक्षा दिया था। इसी को लेकर भाजपा से विवाद हुआ और समर्थन वापस लेने के कारण बसपा की सरकार गिर गयी। इसके बाद 2002 में मायावती से अनबन के कारण उन्हें बसपा छोड़ना पड़ा। 2002 में बसपा ने घोसी से मनोज राय को टिकट दिया। (वर्तमान में मनोज राय भाजपा से जिला पंचायत अध्यक्ष हैं।)
अंसारी बंधु भी देखते हैं सिर्फ नफा-नुकसान
अंसारी बंधुओं की भी सिर्फ राजनीति के आगे कोई अपना स्टेंड नहीं है। उनको विचारधारा से भी कुछ लेना-देना नहीं है। वहीं मुख्तार के बाहर होने से बसपा के खिलाफ मुसलमानों में कोई गलत मैसेज न जाय, इसके लिए मऊ से मुख्तार के खिलाफ मायावती ने सालिम अंसारी को लड़ाया। उनके सीट हारने पर मायावती ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया।
उधर ओवैसी बिगाड़ रहे खेल
उधर मुस्लिम समाज को भाजपा के खिलाफ भड़काकर वोट बैंक के रूप में प्रयोग करने वाली सपा, बसपा व कांग्रेस की नींद ओवैसी ने हराम कर दी है। इसको लेकर ये सभी पार्टियां मंथन कर रही हैं और नफा-नुकसान के आंकलन में जुटी हुई हैं। विश्लेषकों के अनुसार अखिलेश यादव वे ओबैसी से आगे चलकर समझौता भी कर सकते हैं।