पंकज चतुर्वेदी
सन 2016 से राज्य के पर्यावरण को निरापद बनाने के लिए कड़े कदम उठाने वाला सिक्किम आगामी 01 जनवरी 2022 से प्लास्टिक बोतल में बंद पानी से पूर तरह मुक्त हा जाएगा। याद करें इससे पहले सन 2016 से राज्य के प्रमुख पर्यटन गांव लाचेन में यह प्रयोग सफल हो चुका है। सिक्क्मि ऐसा राज्य है जहां थर्मोकोल के डिस्पोजबल बर्तन और सरकारी समारोह में छोटी पानी की बोतलों पर पूरी तरह पाबंदी सफल रही है। लासेन गांव तो दुनिया में मिसाल बना था। सिक्किम सरकार ने राज्य की विभिन्न दुकानों पर रखें बोतलों के स्टॉक को 31 दिसंबर तक समाप्त करने के आदेश दिए है। यही नहीं राज्य ने राज्य के हर एक निवासी और प्रत्येक पर्यटक को शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवाने का भी वायदा किया है।
सिक्किम की इस घोषणा के पीछे लासेन गांव में सफल प्रयोग का उत्साह है। एक छोटा सा गांव, जिसकी पूरी आजीविका, समृद्धि और अर्थ व्यवस्था, पर्यटन के जरिये चलती हो, वहां के लेागों ने जब महसूस किया कि यदि प्रकृति है तो उनका जीवन है और उसके लिए जरूरी है कि वैश्विक रूप से हो रहे मौसमी बदलाव के अनुसार अपनी जीवन शैली में सुधार लाया जाए और फिर ना तो कोई सरकारी आदेश और ना ही सजा का डर, सन 2012 में एकसाथ पूरा गांव खड़ा हो गया था कि उनके यहां ना तो बोतलबंद पानी की बोतल आएगी और ना ही डिस्पाजेबल थर्माकोल या प्लास्टिक के बर्तन। पूरा गांव कचरे को छांटने व निबटाने में एकजुट रहता है। तिब्बत (चीन) से लगते उत्तरी सिक्किम जिले में समुद्र तल से 6600 फुट की ऊंचाई पर लाचेन व लाचुंग नदियों के संगम पर स्थित इस कस्बे का प्राकृतिक सौंदर्य किसी कल्पना की तरह अप्रतीम है।
राज्य सरकार ने इसे ‘‘हेरीटेज विलेज’’ घोषित किया व कुछ घरों में ठहराने की येाजना के बाद यहां 30 होटल खुल गए ।पैसे की गरमी के बीच लोगों को पता ही नहीं चला कि कब उनके बीच गरमी एक मौसम के रूप में आ कर बैठ गई। पूरे साल भयंकर मच्छर होने लगे। बरसात में पानी नहीं बरसता और बैमौसम ऐसी बारिश होती कि खेत- घर उजड़ जाते। पिछले साल तो वहां जंगल में आग लगने के बाद बढ़े तपमान से लेागों का जीना मुहाल हो गया। यह गांव ग्लेशियर के करीब बनी झील शाको-चो से निकलने वाली कई सरिताओं का रास्ता रहा है। डीजल वाहनों के अंधाधुंध आगमन से उपजे भयंकर धुएं से सरिताओं पर असर होने लगा है। यहां के कई परिवार आर्गेनिक खेती करते हैं और बढ़ते प्लास्टिक व अन्य कचरे से उनकी फसल पर विपरीत असर पड़ रहा था, कीट का असर, अन्न कम होना जैसी दिक्कतों ने खेती को घेर लिया।
जब हालात असहनीय हो गए तो समाज को ही अपनी गलतियां याद आईं। उन्होनंे महसूस किया कि यह वैष्विक जलवायु परिवर्तन का स्थानीय असर है और जिसके चलते उनके गांव व समाज पर अस्तित्व का संकट कभी भी खड़ा हो सकता हे। सन 2012 में सबसे पहले गांव में प्लास्टिक की पानी की बोतलों पर पाबंदी लगाई गई। समाज ने जिम्मा लिया कि लोगों को साफ पेय जल वे उपलब्ध कराएंगे। उसके बाद खाने की चीजें डिस्पोजेबल पर परोसने पर पाबंदी हुई। यह सब कुछ हुआ यहां के मूल निवासियों की पारंपरिक निर्वाचित पंचायत ‘जूमसा’ के नेतृत्व में । जूमसा यहां का अपना प्रषासनिक तंत्र है जिसके मुखिया को ‘पिपॉन’ कहते हैं और उसका निर्णय सभी को मानना ही होता है। गांव के प्रत्येक होटल व दुकानों को स्वच्छ आरओ वाला पानी उपलब्ध करवाया जा रहा है और पैक्ड पानी बेचने को अपराध घोशित किया गया हे। गांव में आने से पूर्व पर्यटकों को बैरियर पर ही इस बाबत सूचना के पर्चे दिए जाते हैं व उनके वाहनों पर स्टीकर लगा कर इस पाबंदी को मानने का अनुरोध होता हे। स्थानीय समाज पुलिस प्रत्येक वाहन की तलाषी लेती है,ताकि कोई प्लास्टिक बोतल यहां घुस न आए।
सिक्क्मि सरकार को अपने जल संसाधनों पर पूरा भरोसा है कि वह पूरे राज्य को लासेन बना लेगे। राज्य में 449 ग्लेषियर है जिनमें जेयो चू का क्षेत्रफल 80 वर्गकिलोमीटर , गोमा चू का 82.72 वकिमी, रंगयोग चू का 71.15 और लांचुग का 49.15 वर्गकिमी है। ऊंचाई पर स्थित 534 वेट लैंड हैं। तीस्ता जैसी विषाल नदी के अलावा अन्य 104 नदियां हैं। आज भी गंगटोक शहर की पूरी जलापूर्ति रोत चू नदी के बदौलत है। यह 3800 मीटर ऊंचे टमजे ग्लेशियर निकलती है। तीसता छोम्बो चू नाम से खंगचुग चो नामक ग्लेशियर से निकलती हैं, इसकी कई सहायक नदियां हैं और यह आगे सिलिगुड़ी में मैदान पर बहने लगती है। इसका सिक्किम की सीमा में जल ग्रहण क्षेत्र 805 वर्गकिमी है। राज्य में नौ गरम पानी के सोते भी हैं। समाज के साथ-साथ राज्य सरकार का प्रयास रहा है कि ग्लेषियर से निकल रही जल धाराओं मे प्रदूशण ना हो। जाहिर है कि इस तरह का स्प्रींग वाटर किसी भी पैक्ड बोतल वाले पानी की तुलना में अधिक षुद्ध और लाभकारी होगा।
वैसे लोसन के उदाहरण को केरल के कई पर्याटन स्थलों पर अपनाया गया है। जब कोई पौने नौ लाख आबादी वाले सेनफ्रांस्सिको षहर को प्लास्टिक बोतल बंद पानी से मुकत्किया जा सकता हैतो भारत में कई अन्य श हर व छोटे राज्य क्यों इस दिशा में कदम नहीं उठा रहे द्य इससे राज्य में प्लास्टिक का कचरे से निबटान का संकट कम तो होगा ही, आम लोगों में प्रकृति के प्रति अनुराग भी बढेगा।