उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में एक हँसते- खेलते परिवार ने दो मासूमों को एक साथ खो दिया। इसके बाद माँ बांप आंसुओं के सैलाब को रोक न सकें। दरअसल गरीबी, अंधविश्वास और तंत्र -मंत्र की भेंट चढ़ें दो मासूम भाई बहन के जाने से चौबीस घंटे में पूरा परिवार उजड़ गया। बता दें कि परिजनों ने डॉ. की बजाय झाड़-फूंक पर भरोसा किया जिसकी कीमत दोनों मासूमो ने अपनी जान देकर चुकाई।
मिली जानकारी और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कुशीनगर जनपद के पडरौना कोतवाली थानाक्षेत्र के ग्राम जरार निवासी ओमप्रकाश राजभर मजदूरी का काम कर घर चलता है। जिसके चार वर्षीय मासूम बेटे नीतीश (4) को उल्टी बुखार हुआ था। पिता ने किसी दुकान से दवा लाया लेकिन मासूम को दवा देता उससे पहले पास के रहने वाले एक तांत्रिक ने बच्चे को ठीक करने का दावा किया । मासूम के ऊपर कई दुष्ट काली शक्तिओ के होने का हवाला देते हुए परिजनों से कुछ देर में नीतीश को पूर्णतः ठीक करने का दावा कर तन्त्र मन्त्र शुरू किया।
तांत्रिक ने इलाज के नाम पर बच्चे की बेरहमी से उसके मुंह पर चप्पल रगडा और बरी तरह पीटा जब बच्चे की हालत खराब होने लगी तो तांत्रिक अपने परिवार समेत भाग गया। ओमप्रकाश की अर्थिक स्थिति बिल्कुल खराब होने के कारण आसपास के लोगो ने चन्दा जुटाकर जिला अस्पताल भेजा।
नीतिश की हालत गम्भीर देखते हुए डॉक्टरों ने उसे गोरखपुर के लिए रेफर कर दिया जिसके बाद आर्थिक तंगी से जूझ रहा परिवार उसे वापस घर लेकर जाता मासूम ने दम तोड़ दिया। अभी परिजन मासूम नीतीश के ही दुःखो से नही उबर पाए थे तभी नीतीश की 6 वर्षीय बड़ी बहन की तबियत भी खराब हो गई। तांत्रिकों ने उसका भी झाड़फूंक किया जिससे उसकी भी तबियत खराब हो गयी। परिजन बच्चे का शव और बीमार बच्ची को लेकर जिला अस्पताल पहुंचे, जिसके बाद परिजन आरोपी तांत्रिको पर कानूनी कार्यवाही के लिए पुलिस में गुहार लगाई।
सूचना के बाद पहुची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। दूसरी ओर बीमार बेटी को भर्ती कराया गया, लेकिन इलाज के अभाव में उसने भी शुक्रवार देर रात दम तोड़ दिया। चौबीस घंटे में अपने दो बच्चों को गंवा देने वाले मां.बाप के आँसू रुकने का नाम नही ले रहा। पिता ने बताया कि तंत्र मंत्र के चक्कर में डॉक्टर की बजाय तांत्रिक पर यकीन कर लिया था नतीजा जिन बच्चों को कलेजे से लगाकर रखना था उन्हें आज कफन में लपेटना पड़ा। सरकार ने तो हमे पहले ही हमपर कोई ध्यान नही दी क्योकि करीब 25 साल से गांव मे रहने के बावजूद ना तो हमारे परिवार के पास आधार कार्ड हैए ना ही राशन कार्ड है, ना ही कोई सरकारी दस्तावेज । मेरा स्तर बेहद गरीबी में है जिसके कारण बच्चों जिला अस्पताल पहुंचाने में भी गांव के लोगों ने चंदा देकर सहयोग किया पर क्या किया जाए हमारा घर में तो अंधेरा छा गया।