दोस्तों, ‘जय संतोषी मां’ एक कालजयी फिल्म है, क्योंकि इसके टक्कर की धार्मिक फिल्म आजतक नहीं बनी है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ‘जय संतोषी मां’ फिल्म देखने के लिए गांव से लोग बैलगाड़ियों में भर-भर कर आते थे और चप्पल उतार पर सिनेमाघर के अंदर जाते.
उधर स्क्रीन पर आरती होती तो इधर जनता अपनी थाल सजाकर आरती करने लगती. बकायदा इंतजाम करके आते थे, और थियेटर्स के बाहर भी फूल-माला-पूजा-प्रसाद का इंतजाम होता था. फिल्म खत्म होने पर सिनेमाघरों के बाहर बकायदा प्रसाद बांटता था.
सिनेमाघरों के बाहर कुछ दुकानदारों ने तो संतोषी माता की फोटो फ्रेम और व्रतकथा की किताब बेच कर खूब कमाई की थी. वहीं कुछ लोगों ने जूते-चप्पल रखने का स्टॉल लगाकर खूब कमाई की थी. यही नहीं सिनेमाघरों में दर्शक सिक्के चढ़ाते थे जो कर्मचारियों की अलग से कमाई हो जाती थी.
दोस्तों, 15 अगस्त 1975 को सिर्फ अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार स्टारर ‘शोले’ ही रिलीज नहीं हुई थी, बल्कि आस्था से भरपूर फिल्म ‘जय संतोषी मां’ भी रिलीज हुई थी. जहां भारी भरकम बजट और मल्टी स्टारर फिल्म ‘शोले’ ने तहलका मचा दिया था, वहीं बेहद कम बजट में साधारण एक्टर्स के साथ बनी फिल्म ने आस्था का सैलाब ला दिया था. इस फिल्म को देखने के लिए दूर दूर से लोग बैलगाड़ी पर आते थे. वहीं इसकी प्रशंसा सुनकर लता मंगेशकर ने अपने घर पर ही देखने का इंतजाम करवाया था.
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