पुराने जमाने की बात है। एक दिन शंकर और पार्वती विमान में बैठकर आकाश मार्ग से कही जा रहे थे नीचे निगाह गई तो देखा दो आदमी बुरी तरह आपस में झगड़ रहे है। उनमें एक धोबी था दूसरा ब्राहम्ण। धोबी ब्राह्मण को बुरा भला कह रहा था, तरह-तरह की गालियां दे रहा था। बेचारा ब्राह्मण जो शिव का परम भक्त था, चुपचाप सुन रहा था।
उसकी चुप्पी पर धोबी को और ताव आ रहा था। अंत में उसने कहा, “ब्राह्मण के बच्चे, तूने समझ क्या रखा है। मैं आज तेरी ऐसी खबर लूंगा कि तुझे छठी का दूध याद आ जायगा।” इतना कहकर उसने बांहे चढ़ाई और ब्राह्मण को मारने के लिए बढ़ा। यह देखकर पार्वती को ब्राह्मण पर दया आ गई। उन्होने शंकरजी से कहा, “स्वामी आप अपने भक्त की सहायता कीजिए। धोबी बड़ा क्रूर है। वह मानेगा नहीं।” शंकर बोले, “पार्वती, यह इनका आपसी मामला है। हम बेकार क्यों बीच में पड़ें।” पर पार्वती नहीं मानीं। विवश होकर शंकर ने विमान नीचे उतारने के लिए चालक को संकेत किया।
विमान नीचे उतरने लगा। इतने में वे देखते क्या है कि ब्राह्मण को भी क्रोध आ गया, और वह दांत पीसकर धोबी को गंदी-गंदी गालियां देने लगा। तब धोबी ने आगे बढ़कर उसके एक मुक्का जमा दिया। ब्राह्मण ने दो जमा दिये। यह देखकर पार्वती ने शंकर से कहा, “महाराज, अब मदद के लिए नीचे जाने की आवश्यकता नही है। ब्राह्मण जबतक ब्राह्मण था, वह आपकी सहायता का अधिकारी था। अब तो वह भी धोबी बन गया। दोनो एक ही जात के हो गये। चलिये, हम आगे चले।” इसके बाद शंकर पार्वती अपने रास्ते पर बढ़ गये।