विनोद छाबड़ा
रेहाना सुल्तान, ये नाम सत्तर के सालों में बॉलीवुड में बहुत तेज़ी से उभरा. और इसका कारण है, ‘चेतना’ (1970) के बोल्ड सीन। यानी ऐसे लगभग नग्न दृश्य जिसे आमतौर पर कोई खलनायिका या गई-गुज़री छोटी-मोटी एक्ट्रेस भी करने से सीधे ही मना कर दे. लेकिन पूना फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट से एक्टिंग का कोर्स करके आयी रेहाना तो सहर्ष तैयार हो गयी जब डायरेक्टर बीआर ईशारा ने उन्हें ‘चेतना’ की कहानी सुनाई।
एक वेश्या सीमा है जिसे अनिल (अनिल धवन) सभ्य समाज में पुनः स्थापित करना चाहता है। वो हां भी कर देती है, लेकिन कुछ दिनों बाद मना कर देती है क्योंकि वो गर्भवती है, जिसका पिता कौन है, उसे नहीं मालूम। वो नहीं चाहती थी कि अनिल की समाज में फ़ज़ीहत हो. अंततः वो ज़हर खा लेती है…मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूंगा सदा….28 दिनों में बनी इस फिल्म का मेसेज था, हर वेश्या औरत भी होती है। इसके डायलॉग भी बहुत बोल्ड थे…इंसान शैतान के साथ जी सकता है, जानवर के साथ जी सकता है, पर देवता के साथ नहीं जी सकता… मैंने इतने ज़्यादा नंगे मर्द देखे हैं कि अब मुझे कपड़े पहने हुए मर्दों से नफरत हो गयी है…हमें मां बहन कहने वाले बहुत मिलते हैं लेकिन बीवी बनाने वाले नहीं…पोस्टर भी ज़बरदस्त था। ए शेप में दो नंगी टांगे और उस पर लिखा था – The naked truth of dressed up society. समाज को झकझोर दिया था इसने। मगर ये सवाल अपनी जगह बन रहा कि सीमा को मारना ज़रूरी था क्या?
रेहाना के मशहूर होने का दूसरा कारण रहा, मशहूर राइटर राजिंदर सिंह बेदी की ‘दस्तक़’ (1970), जो वस्तुतः ‘चेतना’ से पहले बनना शुरू हुई थी. सलमा और हमीद (संजीव कुमार) को रेड लाइट एरिया में किराये का मकान मिला। लेकिन यहाँ रहना उनके लिए मुसीबत बन गया. आये दिन मुजरा सुनने वाले दरवाज़े पर दस्तक़ देने लगे…माई रे मैं कासे कहूं पीर अपने जीया की…हम हैं मता-ए-कूचा ओ बाज़ार की तरह…बैयां न धरो ओ बलमा…रेहाना को बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवार्ड ‘उर्वशी’ मिला. इसमें भी कुछ बोल्ड दृश्य थे जो उस दौर के समाज के लिए अजूबा थे। दो राय नहीं कि रेहाना में गुणी अभिनेत्री के समस्त लक्षण थे। मगर चेतना और दस्तक के नग्न दृश्य उनके लिए मुसीबत बन गए। उस पर नंगी टांगों वाली चेतना गर्ल का ठप्पा लग गया. जो ऑफर आता, स्क्रिप्ट में न्यूड दृश्य ज़रूर पिरो कर ले आता।
बताते हैं एक प्रोड्यूसर इस कदर उनके पीछे पड़ गया कि रेहाना को दो महीने के लिए अदृश्य होना पड़ा। और वो तभी वापस आयीं जब उस प्रोड्यूसर ने किसी अन्य नायिका को साइन कर लिया।
19 नवंबर 1950 को जन्मी रेहाना बहाई मुस्लिम समाज से है। तंग गलियों में पली-बढ़ी होने के बावजूद वो तंग नज़रिये की नहीं रही। चेतना में दिए बोल्ड सीन के बारे रेहाना ने सफाई दी थी कि उन्हें तो बस स्कर्ट थोड़ी ऊपर करनी पड़ी थी। बोल्ड तो सब्जेक्ट और उसका ट्रीटमेंट था। चेतना के बाद ऐसी फिल्मों की बाढ़ आ गयी। सेंसर बोर्ड ने जम कर कैंची चलाई। गॉसिप मंडी में ख़बरें उड़ीं कि सेंसर जिन न्यूड सीन को काट देता है वो बाहर ग्रे मार्किट में उपलब्ध होते हैं।
रेहाना का फ़िल्मी कैरीयर बहुत लंबा नहीं रहा, कुल 41 फ़िल्में की. उनकी राकेश पांडे के साथ ‘दिल की राहें’ का सब्जेक्ट दिमाग को कुरेदने वाला रहा। दो अलग धर्मों के प्रेमी-प्रेमिका हैं। प्रेमी शादी करना चाहता है मगर प्रेमिका धर्म बदलने की शर्त रखती है। प्रेमी तैयार हो जाता है। मगर फिर अचानक प्रेमिका इंकार कर देती है। उसे मां की सलाह याद आती है – जो अपना धर्म छोड़ सकता है वो कभी तुझे भी छोड़ देगा…रस्मे उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे…लेकिन सवाल ये उठा कि अलग अलग धर्मों के पति-पत्नी एक छत के नीचे क्यों नहीं रह सकते।
रेहाना ने अपने से 16 साल बड़े बी.आर.ईशारा से 1984 में शादी कर ली, जो हिमाचल प्रदेश से भाग कर आये शुद्ध ब्राह्मण थे, रोशन लाल शर्मा, चप्पल पहनने वाला फक्कड़ आदमी, जिसे रेहाना के पिता ने पहली नज़र में रिजेक्ट ही कर दिया था। ईशारा ने 35 फ़िल्में डायरेक्ट की, लेकिन प्रॉपर्टी नहीं बनाई. रेहाना का अपना बंगला और चार कारें भी कड़की से निपटने में बिक गयीं। उन्होंने कोई बच्चा पैदा नहीं किया, हमारी तरह उसे नरक न भोगना पड़े। छोटे भाई को ही उन्होंने बेटा माना. रेहाना की कुछ यादगार फ़िल्में हैं, मन तेरा तन मेरा, तन्हाई, सवेरा, हार-जीत, प्रेम पर्वत, खोटे सिक्के, एजेंट विनोद, बंधन कच्चे धागों का। एक पंजाबी फिल्म भी की, पुत्त जट्टां दे।
सुना है इन दिनों रेहाना की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। पति ईशारा की लंबी चली बीमारी में सारी जमा-पूंजी ख़त्म हो गयी। राजेश खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, अनिल धवन आदि मित्रों और फिल्म राइटर एसोसिएशन ने मदद भी की. लेकिन हालत बिगड़ती ही चली गयी। जुलाई 2012 में ईशारा की मृत्यु हो गयी. रेहाना टूट गयी। भाई के साथ खोला रेस्तरां भी नहीं चला। सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन उन्हें मदद करता रहा। रेहाना काम करना चाहती है। 2013 में वो ‘इंकार’ में चित्रांगदा सिंह की मां बनी दिखी भी, लेकिन फिर गायब हो गयीं। एक मुद्दत से कोई खबर नहीं है। गुमनामी में जी रही है। किसी मित्र को जानकारी हो तो कृपया अवगत कराये।