जी के चक्रवर्ती
19 नबम्बर 2021 को गुरुपर्व गुरुनानक जयंती के दिन देश के प्रधान मंत्री द्वारा तीन कृषि बिल कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हुये देश वासियों से क्षमा मांगते देख कर इस बात ने सबको चौका दिया है। पिछले 12 महीनों से दिल्ली के सीमाओं पर किसान द्वारा चलाये जा रहे इस आंदोलन के सामने सबसे पहली बार केंद्र सरकार को झुकते हुये देखा गया है।
एक समय इसी पार्टी के लोगों और भाजपा प्रायोजित मीडिया कर्मी के लोगों ने इन आंदोलनरत किसानों को आतंकवादी, उग्रवादी, खालिस्तानी, टुकड़े-टुकड़े गैंग, मुठ्ठी भर किसान और भी न जाने किन-किन वाक्यों से किसानों को संबोधित किया गया।
जब से दिल्ली के सीमाओं पर किसानों के इस आंदोलन में सरकार के लिए सबसे बड़ा नाक का प्रश्न यह था कि इन किसानों को किसी भी तरह से चाहे वह डरा-धमका कर या प्रताड़ित कर किसी भी तरह इस आंदोलन को छिन्न-भिन्न कर समाप्त करवा दिया जाय।
वर्ष 2021 के शुरुआती दिनों यानिकि जनवरी फरवरी के हाड़ कपाऊ ठंडक में पानी बरसते दिनों में दिल्ली की सीमाओं में खुली सड़कों पर टेंट में डटे रहकर और अपने प्राणों की आहुति देकर जो त्याग, बलिदान और तपस्या किया वास्तव में उसे बारम्बार नमन भी किया जाय तो शायद कम होगा। इस तरह की विद्रूप परिस्थितियों में भी संघर्ष को जारी रखने वाली बात निश्चित रूप में इतिहास में दर्ज होने वाली ही बात है।
अब सवाल यह है कि तीन कृषि बिल कानूनों के वापस लिये जाने के घोषणा करने की विश्वसनीयता क्या है? जैसा कि किसान नेता योगेंद्र यादव द्वारा कहा गया कि इस पार्टी के लोगों विशेषतः प्रधानमंत्री द्वारा कहे जाने बात की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाया है। जहां तक तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की बात है तो उसे निरस्त करने की कार्यवाही सत्रहवीं लोकसभा का सातवां सत्र सोमवार, 29 नवंबर, 2021 से प्रारभ होने वाले सत्र में इन कानूनों की निरस्त करने के प्रस्ताव पेश कर प्रक्रिया पूरी की जायेगी।
ऐसे में आन्दोलन रत किसानों के नेता राकेश टिकैत व गुरुनाम सिंह चढूनी का कहना है कि जब तक यह कानूनों को रद करके न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाला कानून नही बनाया जाएगा तब तक किसान आंदोलन समाप्त कर अपने-अपने घर वापसी नही करेंगें।
सरकार द्वारा कृषि बिल कानूनों को निरस्त करने की घोषणा से यह प्रश्न उठने लगा है कि अब तक सरकार द्वारा जिस कानून को किसानों के हित में होने की बात कह रही थी यदि वास्तव में ऐसा ही था तो इन तीन कानूनों को सरकार को वापस लेने की आवश्यकता क्यों पड़ी? यदि यह बिल किसानों के हित में होते तो कहीं न कहीं सरकार इस बिल पर बहस करवा कर इसे किसानों की हितैसी बिल साबित करने की चेष्टा अवश्य करती, इससे यही बात साबित होती है कि आरम्भ से सरकार द्वारा कही जा रही बात में कोई दम नही था, बल्कि सरासर गलत था।
इस तरह की बातों से विश्व मे अपनी शाख से पहचाने जाने वाले भारत देश के प्रधानमंत्री द्वारा इस स्तर पर बोला गया गलत बात से देश की शाख को ही गहरा आघात लगने के साथ ही देश को शर्मसार करने वाली ही बात कही जाएगी और इसके साथ ही साथ मौजूदा सरकार पर से देश की जनता का भरोसा एवं विश्वास ही उठ जाने वाला है बल्कि उठ ही गया है। जिस प्रकार से भाजपा द्वारा देश मे आगामी वर्ष होने वाले पांच राज्यो के विधान सभा चुनावों के मद्देनजर तीन कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा की है उससे देश की जनता के बीच इस पार्टी और इसके नेतृत्व पर सहानिभूति उत्पन्न होने के बजाये देश की जनता का इस पार्टी से विमुख होना स्वाभाविक सी बात है। जिसका प्रभाव आगामी वर्ष देश के पांच राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव में पड़ना तय सी बात है।