जी के चक्रवर्ती
आज यूक्रेन और रूस के मध्य पहले व्याप्त तनाव और फिर युद्ध की स्थिति के कारणों को समझने के लिए हमे रुस के आज से 30 वर्ष पुराने इतिहास में झांकना पड़ेगा।
8 दिसंबर, वर्ष 1991 को रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने सोवियत संघ के 15 घटक देशों में से तीन नेताओं जिसमे पहला यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति लियोनिड एम क्रावचुक, द्वितीय बेलारूस के नेता स्तानिस्लाव शुश्केविच और स्वयं रूस के नेतृत्व ने सम्मिलित रूप से एक साझा बयान जारी किया था जिसे बेलावेझा समझौता भी कहते हैं।
दरअसल 15 गणतांत्रिक राज्यों के गुटों का समूह सोवियत संघ रातोंरात टूट गया और यह इतना बड़ा विखंडन था कि रूस आज 30 वर्षो के बाद भी इसके झटको से रूस को सामना करना पड़ता था इस स्थिति से उबरने में उसे इतना लंम्बा समय लग गया।
20वीं की अर्थव्यवस्था, विचारधारा से लेकर इस सदी के इतिहास और तकनीकी रूप से उन्नती के सर्वोच्च पद पर रहने वाला दुनिया को प्रभावित करने वाला एक शक्तिशाली देश सोवियत संघ, एक ही रात में ताश के पत्तों की तरह बिखर गया?
दुनिया का एक ऐसा साम्राज्य जिसने हिटलर को परास्त किया, जिसने अमरीका के साथ एक लम्बे समय तक शीत युद्ध किया और परमाणु होड़ में हिस्सा लेने के साथ ही वियतनाम और क्यूबा की क्रांतियों में भी एक अहम भूमिका निभाने वाला देश सोवियत संघ के विघटन के 30 वर्षों के बाद रूस को फिर से उसके खोये हुये स्तर तक तक पहुंचा कर उसे पुनः विश्व का महाशक्ति बनाने वाला नेता व्लादिमीर पुतिन ने अपनी कूटनीतिक हैसियत से सम्पूर्ण दुनिया को परिचय कराया।
अभी रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध शुरू हुये दो दिन भी नही गुजरे होंगे कि यूक्रेन के राष्ट्रपति रूस के राष्ट्रपति पुतिन से बातचीत करने की बात करने लगे हैं, दरअसल यूक्रेन कभी रूस का ही हिस्सा हुआ करता था जिसके कारण रूस अब उसे पुनः अपने मे शामिल करने वाली बात जैसा कि अभी अभी उसने दो छोटे-छोटे देशों डोनेट्स्क और लुहान्स्की पर कब्जा कर अपने मे मिलाया, दरअसल पुतिन फिर से इन सभी देशों को अपने मे शामिल कर एक बार पुनः दुनिया मे सोवियत संघ के रूप में अपने आप को स्थापित करना चाहते है।
यह बात तो स्वयं यूक्रेन के लिए एक अच्छी बात साबित होती लेकिन यूक्रेन के नाटों देशों में शामिल हो जाने के बाद रूस के लिए ऐसा करना संभव नही होता ऊपर से रूस की सीमाएं यूक्रेन से लगी होने से वह हमेशा हमेशा के लिये नाटों देशों से घिर जाता इसलिये बह यूक्रेन के नाटों में शामिल होने वाली बात का विरोध कर रहा हैं स्वयं यूक्रेन द्वारा इस बात को स्वीकार न किये जाने से एक तना-तनी वाली स्थिति उत्पन्न हुई, वैसे स्वयं यूक्रेन भी भलिभांति यह जनता समझता था कि रूस के साथ युद्ध में वह कितने दिनों तक टिक सकता है? लेकिन अभी तक अमेरिका और नाटो देशों ने उसे जरूरत पड़ने पर सैनिक एवं युद्ध सामग्रियां उपलब्ध कराने वाली बातों से बरगलाता रहा लेकिन वास्तविकता ठीक इसके उलट था।
वहीं यदि सही अर्थों में कहा जाये तो यूक्रेन पर रूस द्वारा युद्ध नही थोपा गया बल्कि स्वयं यूक्रेन ने ही अपने लिये युद्ध का रास्ता चुना है यदि समय रहते यूक्रेन के समझ मे यह बात आ जाता तो नाहक ऐसी स्थिति उत्पन्न ही नही हुई होती। खैर जैसा कि हम सभी को पता है कि वर्ष 1991 से पहले रूस सोवियत संघ हुआ करता था और शीत युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा सोवियत संघ के टुकड़े करवा कर विश्व में अपना वर्चस्व स्थापित कर स्वयं को एक शक्तिशाली देश के रूप में उभरा।
वहीं रूस पिछले 30 वर्षों से विखंडित सोवियत संघ बने रहने के लिये मजबूर हुआ लेकिन पुतिन ने अपने रणनीतिक सूझ-बूझ से अपने देश की स्थिति को पूर्व अवस्था में पहुंचा देने वाली बातों से रूस के विरोधी ब्रिटेन अमेरिका, जापान जैसे देशों को यह बात रास न आना स्वभाविक सी बात है।