नवेद शिकोह
लखनऊ के स्वाद की दुनिया शोकाकुल हो गई। दुनिया-ए-फानी से भले ही सवा सौ साल पुरानी टुंडे कवाब के मालिक हाजी रईस साहब रुखसत हो गए पर उनको विरासत में मिली कवाबों की रेसिपी का जादू दुनिया में लखनऊ को एक ख़ास पहचान दिलाता रहेगा। दिल के दौरान पड़ने से 85 वर्षीय हाजी रईस का शुक्रवार इंतेकाल हुआ था, आज उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा। आज देशभर में टुंडे कवाब की दुकानें बन होंगी।
कवाब के स्वाद के इस तिलिस्म को अब टुंडे की तीसरी पीढ़ी संभालेगी। सवा सौ साल पहले हाजी मुरीद अली ने कुछ ख़ास किस्म के मसालों से एक अलग किस्म के जायके के कवाब तैयार किए थे। मुरीद विकलांग थे। बचपध में वो पतंग उड़ाते समय छत से गिरने गए थे और उनका एक हाथ बेकार हो गया था। लखनऊ की आम भाषा में जिस तरह एक पैर खराब होने वाले को लंगड़ा कहते हैं वैसे ही एक हाथ ना होने या खराब होने वाले को फूहड़ ज़बान में टुंडा कहा जाता था। इसलिए मुरीद जब मुरीद के कवाब मशहूर हुए तो उसे टुंडे के कवाब कहा जाने लगा।
जिस तरह आगरा का ताजमहल शाहजहां की मोहब्बत को ज़िन्दा रखें है वैसे ही टुंडे के कवाबों का ज़ायका टुंडे कवाबी हाजी साहब और उनके बुजुर्गों का नाम ज़िन्दा रखेगा। स्वाद की अद्भुत रेसिपी का एजाद करने वाले टुंडे साहब के चर्चित कवाबों का इतिहास और जायक़े की विरासत को ज़िन्दा रखने वाले उनकी पीढ़ियों से जुड़े तमाम क़िस्से हैं।
स्थानीय से लेकल अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने नवाबों के शहर की पहचान टुंडे कवाबी पर बेइंतहा लिखा। लखनवी शीरी ज़बान में हाजी रईस टुंडे नाम पड़ने के किस्से दिलचस्प तरीक़े से बयान करते थे। उनसे ख़बरनवीसों का पुराना रिश्ता था। वो कहते थे कि बचपन से वो अपने वालिद टुंडे की रेसिपी के राज़ को अपने सीने में दफन किए हैं और उनके बाद उनकी अगली पीढ़ी उनकी विरासत को आगे बढ़ाएगी।
शुक्रवार को 85 बरस के हाजी रईस टुंडे कवाबी की हृदयाघात ने जिन्दगी छीन ली लेकिन उनके दिल में दफन अद्भुत कवाबो़ की रेसीपी का राज़ मरते दम तक कोई नहीं छीन सका।
एक दफा एक अख़बार के संवाददाता ने टुंडे साहब से पूंछा कि आपको टुंडे कवाबिया को किसी दूसरे नाम या ख़िताब से संबोधित किया जाए तो वो क्या हो ! उन्होंने पत्रकार जवाब दिया कि जिस तरह आप ख़बरों को संवाद देते हो और संवाददाता कहलाते हो ऐसे ही हम एक अलग और बेजोड़ स्वाद के दाता हैं। इसलिए हमें आप स्वाददाता कह सकते हो।
जिन ख़ासियतों ने लखनऊ को दुनिया में पहचान दिलवाई उनमें टुंडे के कवाब का विशिष्ट स्थान है। दशकों का इतिहास गवाह है कि दुनिया की बड़ी से बड़ी कोई भी शाकाहारी हस्ती जब भी लखनऊ आई उसने टुंडे के कवाबों का ज़ायका जरूर लिया। विश्व की कोई भी नामचीन हस्ती जब कभी भी लखनऊ आती है तो उसके दिल में टुंडे के ख्वाब खाने की ख्वाहिश ज़रूर होती है।