Post Views: 221
कविता: वीरेन्द्र जैन
सामने दिखता नहीं दुश्मन
हवाओं से लड़ाई हो रही है
कौन पहचाने उसे
उसके कई चेहरे
पेट में अमृत घड़ा
उस पर लगे पहरे
भूल भ्रम में सब उसी के साथ
अपनी आस्थाओं से लड़ाई हो रही है
सामने दिखता नहीं दुश्मन
हवाओं से लड़ाई हो रही है